अल्लूरि सीताराम राजू, स्वतंत्रता संग्राम का गुमनाम नायक
माँ भारती को अंग्रेजी सत्ता की बेड़ियों से मुक्त करवाने में आदिवासियों ने अपना सर्वस्व लौटा दिया था ऐसे ही अनगिनत स्वतंत्रता प्रेमियों में एक नाम आता है ‘अल्लूरि सीताराम राजू का। जिनको मान्यम वीरुडु यानी जंगल का नायक कहकर सम्मानित किया जाता है। जिन्होंने अपने अभियान में आदिवासियों के बीच उनके अधिकारों के बारे में राजनीतिक चेतना पैदा करने और बाहरी प्रभावों के प्रति प्रतिरोध बनाने की कोशिश की।
कौन थे अल्लूरि सीताराम राजू ?
राजू का जन्म 4 जुलाई, 1897 को विशाखापट्टनम के पांडुरंगी गाँव में पिता वेंकटराम राजू तथा माता सूर्यनारायणम्मा के आँगन में सीताराम राजू की किलकारी गूँजी, जो आगे चलकर भारतवर्ष की आजादी का बिगुल बनी।
अंग्रेजों के खिलाफ नफरत की घुट्टी तो राजू को पिता ने बचपन में ही पिला दी थी। पिताजी अपने बच्चे को समझाते थे कि अंग्रेज कभी हमारे नहीं हैं और न ही होंगे। ये हमारे राष्ट्र को खोखला कर रहे हैं। बालक सीताराम के मन में यह बात घर कर गई। बड़े होते-होते उनके मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत कूट-कूटकर भर गई।
पिताजी के गुजर जाने के बाद अल्लूरि सीताराम राजू के चाचा श्री अल्लूरी रामकृष्णन राजू ने उनके देखभाल की जिम्मेदारी ले ली। उनके चाचा राम कृष्णम राजू”, पश्चिम गोदावरी जिले के नरसापुर में एक तहसीलदार थे वह अपने चाचा के साथ पश्चिम गोदावरी जिले के नरसापुर गांव में रहने लगे।
अल्लूरि सीताराम राजू ने अपने स्कूल की पढ़ाई टेलर हाई स्कूल’ से की। यह स्कूल उनके गांव नरसापुर में ही था और वहां उनका दाखिला उनके चाचा जी ने करवा दिया। मां के कहने पर अल्लूरि सीताराम राजू ने उच्च स्तर की पढ़ाई के लिए ‘श्रीमती एवीएन कॉलेज’ में दाखिला ले लिया था।
उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता था और सिर्फ अपनी मां के कहने पर ही उन्होंने कॉलेज में दाखिला लिया था। इसलिए पढ़ाई में मन नहीं लगने के कारण वह कॉलेज में फेल हो गए और उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था। जब उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया, तब उन्होंने कृष्ण देवी पीठ में ध्यान लगाया और फिर एक साधु का जीवन जीना शुरु कर दिया।
18 साल की उम्र में संन्यासी बनने से पहले अल्लूरि सीताराम राजू ने ज्योतिष, आयुर्वेद, हस्तरेखा विज्ञान और घुड़सवारी में विशेष रुचि ली। इन विधाओं में रूचि और जानकारी के कारण ही जब उन्होंने युवावस्था में आदिवासी समाज को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित करना शुरू किया, तो इन विधाओं की जानकारियों ने उसे अभूतपूर्व सहायता प्रदान की। देवी पीठ में ध्यान लगाने के बाद सीताराम राजू एक साधु का जीवन जी रहे थे।
महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित थे अल्लूरि सीताराम राजू
यह वह समय था, जब पूरे भारत में असहयोग आंदोलन चल रहा था। आन्ध्र प्रदेश में भी यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा तक पहुँच गया था।
अल्लूरि सीताराम राजू महात्मा गाँधी के विचारों से काफी प्रभावित हुए और खादी पहनना शुरू कर दिया। उन्होंने रम्मा विद्रोह में अपने सैनिकों के लिए खादी का ड्रेस कोड भी तय किया।असहयोग आन्दोलन को गति देने के लिए उन्होंने आदिवासियों को मद्यपान छोड़ने तथा अपने विवाद पंचायतों को हल करने की सलाह दी।
उन्होंने युवाओं और क्षेत्र के लोगों को अंग्रेजो के खिलाफ असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए इकट्ठा किया। किन्तु जब एक वर्ष में स्वराज्य का गाँधीजी का स्वप्न साकार नहीं हुआ, तो उन्होंने गाँधीजी की विचारधाराओं पर चलना बंद कर दिया।
इतिहास के पन्नों में गुमनाम हैं रम्या विद्रोह के कई नायक
इसके बाद उन्होंने क्षत्रिय के रूप में रम्पा क्षेत्र के आदिवासियों और वहां के सभी युवाओं को इकट्ठा किया और स्वतंत्र सैनिक संगठन की स्थापना की। उन्होंने सम्पूर्ण रम्पा क्षेत्र को क्रांतिकारी आन्दोलन का केंद्र बना लिया। फिर अल्लूरि सीताराम राजू मालाबार की जंगलों में रहने लगे और अपने संगठन के लोगों को गोरिल्ला तकनीक से कैसे लड़ा जाता है इसके बारे में सिखाने लगे।
इस विद्रोह में कई नायक थे जो इतिहास के पन्नों में आज गुमनाम हैं, ऐसा ही एक नाम है मोट्टादम वीरय्या डौरा का जो 1916 लगराई फितूरी के माध्यम से पूर्वी घाटों में विद्रोह करने वाले पहले विद्रोहियों में से एक था। भास्करुडु ने भूमि और श्रम के अधिकारों के बारे में जनता के बीच क्रांति पैदा कर राजू को मदद की थी।चिंतपल्ली तालुक में गुडेम के तहसीलदार बास्टियन भी एक क्रांतिकारी थे, जो सनातनम पिल्लई के साथ रम्मा विद्रोह से जुड़ गए थे।
मल्लू डोरा, अप्पाला स्वामी, मड्डी रेड्डी जैसे अल्लूरि सीताराम राजू के कुछ सहयोगी हैं, जिन्होंने देशी बंदूकों और पारंपरिक हथियारों से लड़ाई लड़ीगाम बंधु- येंदु पडालू और गोकिरी येरेसु भी रम्पा विद्रोह के पराक्रमी नायक थे। एक नाम गंतम डोरा का भी है। ये सभी विद्रोही उस अत्याचार के खिलाफ लड़ रहे थे, जिसके तहत विकास कार्यों के नाम पर आदिवासियों को लगातार विस्थापित किया जा रहा था। भूमि राजस्व में वृद्धि के लिए मुत्तादारों के अत्याचार भी बढ़ रहे थे।
अल्लूरि सीताराम राजू अपने अनुयायी आदिवासियों की सहायता से अंग्रेजो के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह करके स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के प्रयत्न आरम्भ कर दिए आन्दोलन को और तेज करने के लिए उन्हें आधुनिक शस्त्र की आवश्यकता थी। अल्लूरि सीताराम राजू जानते थे कि ब्रिटिश सैनिकों के सामने धनुष-बाण लेकर अधिक देर तक टिके रहना आसान नहीं था। इसलिए आरम्भ में उनका मुख्य उद्देश्य पुलिस थानों पर आक्रमण करके वहाँ से शस्त्र छीनना था, जिससे सशस्त्र विद्रोह को आगे बढ़ाया जा सके। अपने सैनिकों के साथ मिलकर उनका अंग्रेजों पर पहला हमला, चिंतापल्ली पुलिस थाने पर था, जिसमें उन्होंने अपने 300 सैनिकों के साथ भारी मात्रा में हथियार लूट लिए थे। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक बहुत सारे पुलिस थानों को लूट कर उनके हथियारों को अपने कब्जे में ले लिया।
अल्लूरि सीताराम राजू के विद्रोह में टुकड़ियों की अपनी-अपनी जिम्मेदारी थी। एक टुकड़ी को हथियार हासिल करने के लिए रखा गया था, तो दूसरी को फायरिंग का प्रशिक्षण दिया गया था। कुछ लोग अंग्रेजों की हरकतों के बारे में सचेत करने के लिए ढोल बजाने में लगे हुए थे। इस प्रकार राजू के नेतृत्व में आदिवासी लोगों को युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया।
इसके बाद उन्होंने नई तकनीकों वाले हथियारों को खरीदना भी शुरू कर दिया, जिससे अंग्रेजों की सेनाओं से लड़ा जा सके। उनके और उनके सैनिकों के बीच एकता और निडरता थी। इसी कारण अंग्रेज कई प्रयासों के बावजूद भी अल्लूरि सीताराम राजू और उनके संगठन के खिलाफ कोई सबूत या सफलता हासिल नहीं कर पाए। पुलिस को हर बार उनकी संगठित शक्ति के सामने पराजित होकर भागना पड़ा।
इस प्रकार, अपने जीवन में उन्होंने विभिन्न कौशल पर ध्यान केंद्रित किया और अपने अनुयायियों को जीवन जीने के तरीके के रूप में सांस्कृतिक संरक्षण और बलिदान का मार्ग अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया। अपने देश और लोगों के प्रति उनके अपार प्रेम ने उन्हें एक सच्चा नायक बना दिया। 22 अगस्त, 1922 से मई 1924 तक राजू के दल ने दसियों पुलिस थानों पर कब्जा करके हथियार लूट लिए क्रांतिकारी अल्लूरि सीताराम राजू ने अपना संगठन खड़ा करने के साथ उत्तराखंड के क्रांतिकारियों से सम्पर्क किया। यही नहीं, गदर पार्टी के नेता बाबा पृथ्वी सिंह को दक्षिण भारत की राजमहेन्द्री जेल से छुड़ाने का भरसक प्रयास किया।
और अंत में अल्लूरी सीताराम राजू की शहादत
अल्लूरि सीताराम राजू के आन्दोलन से तंग आकर ब्रिटिश सरकार ने अल्लूरि सीताराम राजू के आंदोलनों को रोकने के लिए ‘असम राइफल्स’ नाम से एक सेना का संगठन किया। ‘असम राइफल्स” का नेतृत्व उपेन्द्र पटनायक कर रहे थे। ‘असम राइफल्स ने अल्लूरि सीताराम राजू के संगठन के मुख्य लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लिया।
अंत में, अल्लूरि सीताराम राजू को भी अंग्रेजी सरकार ने पकड़ लिया। अंग्रेजो ने इन्हें एक पेड़ से बांध दिया और उनको दर्जनों गोलियां मारी। 7 मई, 1924 को कोय्युरु, मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (वर्तमान आंध्र प्रदेश, भारत) में अल्लूरि सीताराम राजू अंग्रेजो के खिलाफ इस लड़ाई में देश के लिए शहीद हो गए।
आज भी उस क्षेत्र में कोई भी अल्लूरि सीताराम राजू जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी को नहीं भूला और वहां के लोग अब भी उन्हें देवता जैसे पूजते हैं। नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने अल्लूरि सीताराम राजू को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था- मैं राष्ट्रीय आंदोलन के लिए अल्लूरी सीताराम राजू की सेवाओं की प्रशंसा करना अपना सौभाग्य मानता हूं। भारत के युवाओं को उन्हें एक प्रेरणा पुरुष के रूप में देखना चाहिए।
संदर्भ
तेजपाल सिंह धामा, दस गुमनाम क्रांतिकारी, आर्य खंड टेलीविजन प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में