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जूनागढ़ विलय के बाद कलकत्ता में दिया गया सरदार पटेल का प्रसिद्ध भाषण

आजाद हिन्दुस्तान में पाकिस्तान विभाजन के बाद, जूनागढ़ रिसायत को भारत में शामिल करने के बाद, 3 जनवरी 1948 को कलकत्ता मैदान में सरदार पटेल का जूनागढ़ विलय पर दिया गया भाषण

 

जब कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र जाने का समर्थन किया पटेल ने 

कल मैं इधर आया तो आज अखबार में, मैने देखा लंबी-चौड़ा बयान दिया जफरुल्ला साहब ने। उसमें जूनागढ़ को भी डाल दिया। जूनागढ़ को सलाह जफरुल्ला साहब में दिया था कि हाँ तुम पाकिस्तान में शरीफ हो जाओ, वह ठीक है तो उसका का नवाब को भोगना पड़ता है, कोई भी जफरुल्ला साहब को भोगना नहीं पड़ता और ये तो खाली बात तो है। जूनागढ़ का तो फैसला हो गया, अभी उसमें कोई चीज़ बनने वाली हैं नहीं, यू  एन नो में जाओ दुनिया पर जाओ, उसमें कोई चीज़ नहीं बन सकती है, वह तो हो गयी बात। अब जो जफरुल्लाह कहते हैं कि जो जूनागढ़ तो यू एन नो, में जाएगा यू एन नो में क्या जायेगा?

 

हाँ, कश्मीर पर यू एन नो  में गए हैं हमारे तरफ से। क्यों गए? हमें तो इस तरह से कहा कि भाई ये पाकिस्तान खुली लड़ाई करे तब तो अच्छा है लेकिन खुली लड़ाई नहीं करते। अपने आदमियों के पास लड़ाते हैं, अपने वहाँ से सारा सामान देते है, अपने वहाँ से सब हथियार देते हैं, अपने  वहाँ से जितना सामग्री चाहिए पूरी देते है, अपने वहाँ  से रास्ता देते हैं तो उससे तो खुला लगी लड़ाई करे तो अच्छा है ना करे तो हम दोनों उसमें पड़े हैं तो ठीक।   यू  एन नो पास जाओ। जाके वहाँ से कुछ हो ना हो, लेकिन वहाँ हम कहाँ तक बैठे रहेंगे? इस तरह से हम बैठे नहीं रह सकते।

 

कश्मीर का मामला तो अलग है, जूनागढ़ का मामला अलग? जूनागढ़ यू एन नो के पास जा नहीं सकता, क्योंकि जूनागढ़ कहते है कि आपने भी रास्ता दिया था, हमने किस को रास्ता दिया? हमने किसी को रास्ता दिया नहीं। वह जो जूनागढ़ के लोग थे, उन लोगों को अपने रास्ते से जाते थे, वहीं रास्ते गए। उसमें हमने किसने रास्ता दिया नहीं और हमने ना कोई-कोई चीज़ उसको दिया, कोई इतना साथ दिया और जूनागढ़ में एक मक्खी भी मारनी नहीं पड़ी। किसी के ऊपर कोई हथियार चलाना ही नहीं पड़ा। फिर क्या रहा? और खुद दीवान ने खुद आकर कहा कि मेहरबानी कर के हमारी हुकूमत ले लो, हम नहीं चला सकते और नवाब कराची जाकर बैठ गया।

जूनागढ़ में जनता ने फ़ैसला कर दिया था

फिर जूनागढ़ के बात  क्या करते हो?   तो ये चीज़ तो हो गयी? हाँ, हमने एक फैसला किया। कि भाई? ये तो में हमें एक काम करना चाहिए, कबूल करना चाहिए। इन रियासतों में एक काम करना चाहिए, तो जैसे लोगों का लोकमत हो, इस प्रकार करना चाहिए तो लोकमत जैसा  हैदराबाद  में  हो, कश्मीर में हो, हर जगह पर वह लोकमत  इस प्रकार करते हो। हमें कोई फैसला करने में एतराज नहीं है, लेकिन यदि कश्मीर में जो चलता है, इस तरह से चलता रहे तो फिर लोकमत करने की क्या जरूरत?

 

तो फिर लोकमत की जगह कह रही है तो हम तो कहते है कि हमारे पास आखिर हमारे सिपाही मरते रहे हैं। हमारा पैसा खर्च  करना पड़े और हमारे गाँव के गाँव जलाये जाएँ और वहाँ हिंदू और सिखों को तबाह किया जाए। तो फिर आकर लोकमत का रहे या फिर तो आकर हम बंदूक से ही लेना हो तो लेंगे और क्या करेंगे? दूसरी तरफ से नहीं हो सकता है तो नहीं। लेकिन हमने एक बात कही ।  कश्मीर हम छोड़ने वाले नहीं हैं कभी नहीं।

 

तो अब दूसरा आपको ये समझ में आएगा कि  ऐसी जब नाजुक हालत में हम पड़े हैं इस समय पर हम को क्यों तंग करते? आप। ऐसे ही जब हिंदुस्तान की हालत है और दुनिया की हालत भी ऐसी है देखो पड़। ऐसे ही जब हिंदुस्तान की नाजुक हालत है। तब हमें क्या करना? इस नाजुक हालत में हमें हमारी रहा है, हमारी हुकूमत से उसको ठीक नहीं करेंगे और उसको साथ नहीं देंगे तो हम को नुकसान होगा। इसलिए आज जिस जगह पर प्रांतों में हमारी हैं। उसको साथ देना है

तो मैं,  इतने लाखो आदमी आप जमा हुए हैं कलकत्ता में तो मैं आप लोगों को बड़ी अदब से कहना चाहता हूँ। आप लोग हिंदुस्तान की ऐसी नाजुक खाल उसमें इतने लाखो आदमी कलकत्ता में जमा हो गए हैं तो आपको ये हमारा मेसैज ले जाना चाहिए और सब कुछ बताना चाहिए की आज हमारी बहुत नाजुक हालत है उस हालत में हमें। ना कोई हड़ताल करनी चाहिए, ना कोई तूफान करने का कोई मौका पैदा करने चाहिए के काम करने।

हिन्दू राष्ट्र के खिलाफ़ पटेल

अब कई लोग कहते है कि भाई इधर हमारे सेक्युलर स्पेस चाहिए हिंदुओं का राज़? कौमी राज़ नहीं होना चाहिए।  हिंदुस्तान में तीन -चार लाख मुसलमान पड़े हैं, कौमी राज़ की बात नहीं है। लेकिन बात ये एक। ये हिंदुस्तान में जो मुसलमान पड़े हैं वह मुसलमान में काफी लोग कौन हैं? ज़्यादातर लोगों ने पाकिस्तान बनाने में साथ दिया।

ठीक भईया अभी ठीक है लेकिन अब। एक रोज़ में एक रात में क्या दिल बदल गया वह मुझे समझ में नहीं आता। कैसा बदल गया के एकदम से दो। आज मैं नहीं आता ये एक रोज़ मैं इन सब का कैसा बदल गया तो वह कहते हैं कि  हमारी वफादारी में शंका क्यों की जाती है? आपको सस्पेंशन क्यों आता है तो हम कहते है कि हमको क्यों पूछते हो आपके दिल को पूछो, बेहतर पूछो, हमको मत पूछो। वह हमको पूछने की बात नहीं है।

 

लेकिन हमने एक बात कही है ये आप ने पाकिस्तान बनाया, आप को मुबारक। हमें उसमें कोई दखल देना नहीं चाहते। जब दांत गिर जाये, इकट्ठा हो जाये तब गिर जाए तब फिर जाओ वहाँ तक हमें पीछे बुलाना ही नहीं, हम बैठे ठीक। ये कहते हैं क्या हम आकर पाकिस्तान और हम एक जाये एक हो जाए?

मैं कहता हूँ की मेहरबानी करके ऐसी बात ना करो, अब ऐसे रहने दो, उससे बहुत नुकसान है वहाँ बैठे रहने दो, करने दो उनको पाकिस्तान अच्छा बनाने दो। पाकिस्तान जब स्वर्ग बन जाएगा। हमको उसके ठंडी हवा लगेगी, ठीक है? तो आपको क्यों ऐसा कहते हो? उनको शंका पैदा होती है, ऐसी बात हम क्यों करें? मजबूत बनाओ, तगड़ा बनाओ पाकिस्तान।

 

हमारा पड़ोसी मजबूत होता है तो बहुत अच्छी बात है तो हम को कोई नुकसान नहीं है, वह ठीक है लेकिन बहुत दफ़े ऐसा कहा गया कि पाकिस्तान मिटाने के लिए उसको बर्बाद करने के लिए हमारे दुश्मन लोगों ने कौन-सी रस्सी की? मैं पाकिस्तान के लीडरों को बार-बार कहना चाहता हूँ कि पाकिस्तान का कोई भी दुश्मन हो और कोई भी कॉन्स्पिरेसी हो तो पाकिस्तान में पड़ी है।

 

बाहर कोई नहीं है वहाँ भीतर पड़ी है, जीतने दुश्मन है, वहाँ इधर कोई नहीं हैं, हम उनका कोई बुरा नहीं चाहते। क्यों हम बुरा चाहे? हमने राजी खुशी से तुम को दे दिया जाओ, तुम पाकिस्तान बनाओ। लेकिन यदि  हमारी आँख में धूल फेंकने के लिए कोई आवे तो हम कहते हैं कि इस तरह से हम नहीं चलने देंगे, ये काम नहीं चलेगा हम हमारा हिंदुस्तान बाकी का है उसको छोड़ दो। बाकी हिंदुस्तान को उनका काम करने दो, उसमें आप दखल मत दो तो हम आपके काम में दखल नहीं देंगे।

 

तो आप देख लीजिये हमने फैसला किया तो जितनी चीज़ थी उस चीज़ में उदारता से हमने उनको जितना इनका उत्साह का हिस्सा था, उससे ज्यादा भी देने के लिए हमने कोशिश की। लेकिन जब हमने उनका रुपया देने का किया। उस समय पर हमने कहा। इतना हिस्सा हमारा चाहिए तो हम देने के लिए आप का हक होना हो। ज्यादा हम देने के लिए भी तैयार लेकिन मैंने लिख के दिया था। उससे गोली चलानी हो। कश्मीर में तो हम इस तरह से रुपया नहीं लेंगे।

हाँ  हम खुशी से रुपया तो तब देंगे की जब ये फैसला सब हो जाएगा तो आपका रुपया है, हम उसमें कोई दखल नहीं देंगे। हमने आप आपके साथ मिल के देख रहे हैं।   तो एक-एक कंसर्न डिक्री है ये तो।  लेकिन आपस में बैठ के हमने फैसला कर दिया तो तुम्हारी डिक्री कब बजेगी? जब ये हुक्मनामा तो तब बजेगा जब हमारा फैसला हो जाएगा तो कश्मीर का फैसला हो जाए। उस रोज़ पैसा ले जाओ। तुम्हारे इस तरह से हम जब कहते हैं तो क्या हमारा पैसा नहीं देते हैं?

 

और वह कुछ अपने जो फैसला किया है उसमें से पलट जाना चाहते हैं। हमें कोई पलटने की हमारी नहीं है। होती तो हम करते क्यों जाओ कोर्ट में करो, इस तरह से काम नहीं किया तो हम बार-बार इन लोगों को सुनाना चाहते हैं कि तुम्हारे साथ हमारी कोई बुराइ नहीं है ना बुराई करना चाहते हैं तुम्हारे साथ। हमें कोई झगड़ा नहीं करना चाहता हूँ, लेकिन आप मेहरबानी करते हमको पड़े रहने दो,हमारा काम करने दो….

 

 

 

Editor, The Credible History

जनता का इतिहास, जनता की भाषा में

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