मुंशीगंज गोलीकांड

7 जनवरी 1921 को किसानों पर हुए गोलीकांड मुंशीगंज गोलीकांड के नाम से भी जाना जाता है।

अंग्रेजों के शासनकाल में रायबरेली जमींदारों और कोटेदारों का खासा वर्चस्व रहता था। जो किसानों को जमीन मुहैया कराकर उनसे अंग्रजों के लिए टैक्स वसूलते थे।

अंग्रेजों के शासनकाल में रायबरेली जमींदारों और कोटेदारों का खासा वर्चस्व रहता था। जो किसानों को जमीन मुहैया कराकर उनसे अंग्रजों के लिए टैक्स वसूलते थे।

किसान तत्कालीन तालुकेदार के अत्याचारों से परेशान होकर अमोल शर्मा और बाबा जानकीदास के नेतृत्व में एक जनसभा कर रहे थे। तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एजी शेरिफ से मिलकर दोनों नेताओं को गिरफ्तार करवा कर लखनऊ जेल भिजवा दिया था।

रायबरेली में एक तरफ सई नदी के छोर पर किसानों का अपने नेताओं के समर्थन में एक विशाल जनसमूह जुटने लगा। किसानों के भारी भीड़ और विरोध को देखते हुए नदी किनारे बड़ी मात्रा में पुलिस बल तैनात तक दिया गया था।

इस हालात को देखते हुए जवाहरलाल नेहरू ने भी मुंशीगंज का रुख किया, लेकिन पहुंचने से पहले ही उन्हें कलेक्ट्रेट परिसर के नजदीक ही रोक दिया गया। उन्हें नदी किनारे पहुंचने नहीं दिया गया।

अंग्रेजों ने पहले ही गोलीकांड की योजना बना ली थी। जवाहरलाल नेहरू को सिर्फ इसलिए नजरबंद कर लिया गया था ताकि कहीं नेहरू को गोली गई तो पूरा मामला गर्म हो जाएगा।

प्रशासन के कहने पर सभा में मौजूद सभी सैकड़ों निहत्थे किसानों पर अंग्रेजों ने गोलियां बरसा दीं। इसके बाद से वहां खून की नदी बह गई। इस गोलीकांड में करीब 700 से अधिक किसान मारे गए थे और 1500 से अधिक घायल हुए थे।

नाराज नेहरू ने नदी के उत्तरी किनारे पर लगभग तीन हजार किसानों के साथ सभा कर उनके अंदर जोश भरा था। सभी किसान फायरिंग के समय खेतों में छुपे थे, लेकिन नेहरू के भाषण को सुनने के लिए बाहर निकल पड़े।

जवाहरलाल नेहरू ने इस घटना को दूसरा जालियांवाला बाग हत्याकांड कहां और इस बर्बरता के बारे में देश-विदेश के अख़बारों में लेख लिखा। आठ जनवरी को घटना स्थल (मुंशीगंज) पर पहुंच कर शहीदों को प्रणाम किया था।