महात्मा गांधी अपनी आत्मकथा 'सत्य के प्रयोग' में लिखा है कि जॉन रस्किन की पुस्तक अंटु दिस लास्ट ने उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।
गांधीजी को यह पुस्तक उनके मित्र पोलाक ने दी, जब वे नेटाल के लिए ट्रेन से यात्रा कर रहे थे। पोलाक ने उन्हें कहा, "यह रास्ते में पढ़ने योग्य है, आपको यह पसंद आएगी।"
जब गांधीजी ने अंटु दिस लास्ट को पढ़ना शुरू किया, वे इसे छोड़ ही नहीं पाए। यह किताब इतनी प्रभावशाली थी कि जोहानिसबर्ग से नेटाल तक के 24 घंटे की ट्रेन यात्रा में उन्होंने इसे पढ़ डाला।
गांधीजी ने बताया कि उन्होंने पहले कभी रस्किन की कोई पुस्तक नहीं पढ़ी थी। उनकी पढ़ाई केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित थी, और उनके व्यस्त जीवन के कारण उन्होंने बहुत कम किताबें पढ़ीं।
अंटु दिस लास्ट से गांधीजी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसका गुजराती में अनुवाद किया, जो सर्वोदय के नाम से प्रकाशित हुआ। इस किताब ने उनके विचारों में गहराई से परिवर्तन किया।
गांधीजी का मानना था कि अंटु दिस लास्ट में उन्होंने उन सिद्धांतों का प्रतिबिंब देखा जो उनके अंदर गहराई से छिपे हुए थे। इसने उनके जीवन में रचनात्मक परिवर्तन लाया।
गांधीजी ने इन सिद्धांतों को समझकर अपने जीवन में लागू करने की ठानी। उनके अनुसार, इन सिद्धांतों पर अमल करना ही सच्चे जीवन की दिशा थी। उन्होंने इन्हें अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाया।