डॉ.अंबेडकर के खिलाफ चुनाव लड़े वाले “बालू पालवणकर”

7 साल के बालू पालवणकर ने 1892 में 4 रुपये महीने की तनख्वाह पर पूना के एक अंग्रेजी क्रिकेट क्लब में माली की नौकरी की। मैदान की देखभाल के दौरान उनकी गेंदबाजी ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया।

बालू की बाएँ हाथ की स्पिन गेंदबाजी ने अंग्रेजों को नाचने पर मजबूर कर दिया। उनकी शानदार गेंदबाजी ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।

19 मार्च 1876 को धारवाड़, कर्नाटक में जन्मे बालू ने सेना के फेंके हुए सामान से क्रिकेट खेलना सीखा। उनकी प्रतिभा को उच्च जातियों ने भी मान्यता दी, लेकिन उन्हें कप्तानी नहीं मिली क्योंकि वह दलित थे।

मैदान पर उनकी गेंदबाजी बेहतरीन थी, लेकिन बाहर उन्हें भेदभाव सहना पड़ा। उन्हें बाकी खिलाड़ियों से अलग बैठना पड़ता और चाय कुल्हड़ में दी जाती, जिसे तुरंत फेंक दिया जाता था।

1901 में बालू महाराजा ऑफ नटोर की टीम का हिस्सा बने। 1911 में इंग्लैंड दौरे पर उन्होंने 114 विकेट लिए, जिसमें 27 विकेट प्रथम श्रेणी मैचों में शामिल थे। कुल मिलाकर उन्होंने 33 प्रथम श्रेणी मैचों में 179 विकेट लिए।

बालू की प्रेरणा से उनके तीन भाई भी हिंदू जिमखाना की टीम में खेले। 1923 में उनके छोटे भाई विट्ठल को कप्तानी का मौका मिला और उन्होंने टीम को कई सफलताएँ दिलाईं।

महात्मा गांधी बालू पालवणकर के बड़े प्रशंसक थे। गांधी ने बालू की सफलता को अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई से जोड़ा।

बालू पालवणकर के असाधारण प्रदर्शन से डॉ. भीमराव अंबेडकर भी  खास प्रभावित थे और उन्हें दलितों का हीरो बताया करते थे। बाद में उनके और डॉ. भीमराव अंबेडकर के बीच भी मतभेद हुए ।

आगे चलकर वह हिंदू महासभा के टिकिट पर 1933 में बॉम्बे म्यूनिसिपैलिटी के चुनाव में खड़े हुए लेकिन हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद 1937 में बॉम्बे असेंबली के लिए वह कांग्रेस की ओर से अंबेडकर के खिलाफ चुनाव लड़े लेकिन फिर हार गए।

 4 जुलाई 1955 को उनका निधन हुआ, लेकिन भारतीय क्रिकेट में उनका योगदान अमर है।