जब गांधीजी और सुभाष ने सुलझाई टाटा स्टील के मज़दूरों की समस्या

जब देश स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था, टाटा भारत के औद्योगिक भविष्य को आकार देने में जुटे हुए थे।

गांधीजी और टाटा परिवार के संबंध 1909 में तब शुरू हुए, जब रतन जमशेदजी टाटा ने गांधीजी को आर्थिक सहायता के रूप में 25 हज़ार रुपये दिए।

1925 में, गांधीजी ने जमशेदपुर का दौरा किया और टाटा स्टील में यूनियन और प्रबंधन के बीच पैदा हुए मतभेदों को सुलझाने में सफलता प्राप्त की।

1928 में, सुभाषचंद्र बोस ने जमशेदपुर लेबर यूनियन की अध्यक्षता संभाली और टाटा स्टील में तालाबंदी के बाद प्रबंधन और मजदूरों के बीच समझौता कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

बोस ने प्रबंधन से श्रमिकों की शिकायतों को दूर करने और श्रमिक संघ को अनैतिक दलालों से बचाने की मांग की।

सुभाषचंद्र बोस ने टाटा कंपनी में भारतीयों की अधिकतम नियुक्ति पर ज़ोर दिया, जिसे टाटा परिवार ने सराहा।

महात्मा गांधी और सुभाषचंद्र बोस के प्रयासों ने टाटा परिवार के साथ मिलकर भारत में नई औद्योगिक संस्कृति का सूत्रपात किया।