मै तसलीम करता हूँ कि अब दुनिया में दूसरी सदी ईस्वी की ख़ौफ़नाक रूमी अदालतें और मध्य काल की पुर इसरार धार्मिक अदालतें वजूद नहीं रखते, लेकिन मै यह मानने के लिए तैयार नहीं कि जो जज़्बात उन अदालतों में काम करते थे, उनसे भी हमारे ज़माने को निजात मिल गयी है। वो इमारतें ज़रूर गिरा दी गयीं, जिनके अंदर ख़ौफ़नाक इसरार (राज़) बंद थे लेकिन इन दिलों को कौन बदल सकता है को इंसानी ख़ुदगर्जी और नाइंसाफ़ी के ख़ौफ़नाक राज़ों का दफ़ीना