क्या रवींद्रनाथ टैगोर ने जॉर्ज पंचम के सम्मान में लिखा था ‘जन गण मन...

27 दिसंबर 1911 को, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में पहली बार "जन गण मन" का गायन हुआ। यह अधिवेशन के दूसरे दिन का आरंभ था।

इसी वर्ष ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम अपनी पत्नी के साथ भारत दौरे पर आए।

"जन गण मन" के बाद जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में एक अन्य गीत गाया गया, जिसे रामभुज चौधरी ने हिंदी में रचा था और बच्चों ने "बादशाह हमारा" बोलों के साथ गाया।

कुछ ब्रिटिश समर्थक अखबारों ने यह भ्रांति फैलाई कि "जन गण मन" ब्रिटिश सम्राट की प्रशंसा में लिखा गया था।

1939 में, टैगोर ने एक पत्र लिखकर इन आरोपों को खारिज किया और कहा कि वह इस मूर्खता का जवाब देना अपनी बेइज्जती समझते हैं।

टैगोर ने राष्ट्रवाद पर एक पुस्तक भी प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने बताया कि सच्चा राष्ट्रवादी वही है जो दूसरों के प्रति आक्रामक नहीं होता।

आने वाले वर्षों में "जन गण मन" का राष्ट्रगान की तरह सम्मान बढ़ा, और कांग्रेस के अधिवेशनों की शुरुआत इसी गीत से होने लगी।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, "जन गण मन" को इसकी सरल और मधुर धुन के कारण भारतीय राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया, जो आज भी लोगों के मन पर गहरी छाप छोड़ता है।