महात्म गांधी के दोस्त मौलाना मजहरूल हक, जो हिन्दु मुस्लिम एकता के समर्थक थे

महात्मा गांधी और मौलाना मजहरूल हक की मित्रता लंदन में पढ़ाई के दौरान शुरू हुई और भारत लौटते वक्त वे एक ही जहाज में साथ आए।

गांधीजी के अनुसार, भारत लौटने के बाद उनकी यह दोस्ती और गहरी होती गई, और गांधीजी पटना स्थित मौलाना हक के घर को अपना घर मानने लगे।

चंपारण सत्याग्रह के समय मौलाना मजहरूल हक गांधीजी के सहायक के रूप में काम करते थे और अक्सर उनका साथ देने आते थे।

असहयोग आंदोलन में शामिल होकर मौलाना हक ने अपनी आरामदायक जीवनशैली को त्याग दिया और साधारण जीवन को अपना लिया।

पटना के पास स्थित सदाकत आश्रम मौलाना हक की रचनात्मक पहल का नतीजा था, जो बाद में बिहार विद्यापीठ के रूप में स्थायी शिक्षण और सांस्कृतिक केंद्र बन गया।

गांधीजी ने यंग इंडिया में 9 जनवरी 1930 को मौलाना हक को श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें एक महान देशभक्त, अच्छे मुसलमान, और दार्शनिक बताया।

मौलाना हक के निधन पर गांधीजी ने उनकी अनुपस्थिति को देश की वर्तमान स्थिति में एक बड़ी क्षति बताया।