नेताजी सुभाष चंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू: कितने नज़दीक, कितने दूर

जब कमला नेहरू टीबी के इलाज के लिए यूरोप गईं और नेहरू जेल में थे, सुभाष चंद्र बोस ने नेहरू को पत्र लिखकर सहायता का प्रस्ताव दिया।

28 फरवरी 1936 को स्विट्ज़रलैंड के लुज़ान में कमला नेहरू के निधन के समय सुभाष बोस, नेहरू, और इंदिरा गांधी मौजूद थे।

नेहरू के दुख के दिनों में सुभाष की उपस्थिति ने दोनों नेताओं के रिश्ते को और प्रगाढ़ कर दिया।

नेहरू की तरह सुभाष ने भी कांग्रेस अध्यक्ष बनने की आकांक्षा जताई, जिसका समर्थन रबींद्रनाथ टैगोर ने किया।

टैगोर ने सुभाष और नेहरू को कांग्रेस में आधुनिक सोच के प्रतिनिधि बताया और सुभाष को दोबारा अध्यक्ष बनाने की वकालत की।

गांधीजी सुभाष को दोबारा कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के पक्ष में नहीं थे।

मतभेद सुलझाने के लिए सुभाष ने नेहरू को एक लंबा पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा लगता है कि नेहरू उन्हें नापसंद करते हैं।

नेहरू ने सुभाष की स्पष्टवादिता की सराहना की और कहा कि उनके दिल में हमेशा सुभाष के लिए सम्मान और स्नेह रहा है। नेहरू ने यह भी स्वीकार किया कि सुभाष के काम करने के तरीके से वे हमेशा सहमत नहीं रहे।

सुभाष ने आजाद हिंद फौज की एक रेजिमेंट का नाम नेहरू के सम्मान में 'नेहरू रेजिमेंट' रखा।

सुभाष के विमान दुर्घटना में निधन की खबर सुनकर नेहरू रो पड़े और उनकी बहादुरी की प्रशंसा की। नेहरू ने कहा कि सुभाष की भारत की आजादी के लिए ईमानदारी पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता।

नेहरू ने आजाद हिंद फौज के सैनिकों के बचाव में लाल किला मुकदमे में 25 साल बाद वकील का गाउन पहना।

तमाम राजनीतिक असहमति के बावजूद नेहरू और सुभाष चंद्र बोस एक-दूसरे का गहरा सम्मान करते थे।