1919 में ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी रोलेट एक्ट पेश किया, जिसके तहत बिना मुकदमे के भारतीयों को सजा दी जा सकती थी।
इस एक्ट के विरोध में मदन मोहन मालवीय और मौलाना मजहरूल हक ने इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल से इस्तीफा दे दिया।
गांधीजी ने रोलेट एक्ट के विरोध में देशव्यापी हड़ताल और अहिंसात्मक आंदोलन शुरू करने की घोषणा की, जिसे सविनय अवज्ञा आंदोलन कहा गया।
फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में प्रदर्शन हिंसक हो गया, जिससे गांधीजी को गहरा आघात पहुंचा।
गांधीजी का मानना था कि हिंसा केवल बुराई को बढ़ावा देती है और अहिंसा ही बुराई के अंत का रास्ता है।
10 मार्च 1922 को "यंग इंडिया" में लिखे तीन लेखों के आधार पर गांधीजी को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।
न्यायाधीश ब्रूम फील्ड ने गांधीजी को 18 मार्च 1922 को राजद्रोह के अपराध में 6 साल की सजा सुनाई।t
न्यायाधीश ने तिलक के मामले का जिक्र करते हुए कहा कि वह गांधीजी को भारतीय इतिहास का महान देशभक्त मानते हैं।
गांधीजी ने कहा कि उनका नाम लोकमान्य तिलक के साथ जुड़ना उनके लिए गौरव का विषय है।
गांधीजी और उनके साथियों ने बिना हिंसा के आंदोलन करना, सजा को स्वीकार करना, और जमानत तक न लेना नैतिक नियमों के रूप में अपनाया, जो विश्व में अद्वितीय है।