डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्रता संग्राम में मौन मार्गदर्शन की तरह सक्रिय रहे और महात्मा गांधी उन्हें अपना अक्स मानते थे।
राजेंद्र प्रसाद पटना के सफल वकीलों में से एक थे, लेकिन गांधी जी के प्रभाव में आकर उन्होंने वकालत छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
राजेंद्र प्रसाद और महात्मा गांधी की पहली मुलाकात 1915 में कोलकाता में गांधी जी के सम्मान में आयोजित एक सभा में हुई थी।
जब गांधी जी चंपारण सत्याग्रह के लिए पटना पहुंचे, तो उन्होंने सबसे पहले राजेंद्र बाबू के घर जाने का प्रयास किया, लेकिन अनुपस्थिति के कारण उन्हें वहाँ रुकने नहीं दिया गया।
बाद में राजेंद्र प्रसाद चंपारण आंदोलन में गांधी जी के साथ पूरी तरह से जुड़ गए और उनका सहयोग किया।
एक बार गांधी जी ने बिहार में पदयात्रा के दौरान राजेंद्र प्रसाद के निवास पर रात्रि विश्राम का प्रयास किया, लेकिन विलंब के कारण वह बाहर दरवाजे पर ही सो गए।
इस घटना के बाद राजेंद्र बाबू ने अपना रईसी जीवन छोड़ दिया और पटना के सदाकत आश्रम को अपना स्थायी निवास बना लिया।
सदाकत आश्रम का निर्माण गांधी जी के मित्र और स्वतंत्रता सेनानी मौलाना मजहर उल हक ने कराया था।
राष्ट्रपति बनने के बाद, राजेंद्र प्रसाद को दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में रहना पड़ा
अपने जीवन के अंतिम दिन तक राजेंद्र प्रसाद सदाकत आश्रम में रहे, जो उनकी सादगी और देश सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का प्रतीक है।