क्या लिखा था
प्रेमचंद ने मधुशाला
की समीक्षा में
हरिवंश राय बच्चन
ने क्या भूंलू क्या याद करूं
किताब के भूमिका
में प्रेमचंद
के साथ एक मुलाकात का जिक्र करते हुए लिखते है
मुझे याद है मधुशाला के प्रकाशन के कुछ समय बाद, एक बार अकस्मात ही, प्रयाग में प्रेमचंद जी से भेंट हो गई थी।
प्रेमचंद ने हंस पत्रिका में मधुशाला पर एक छोटी समीक्षा लिखी थी।
बच्चन का अपना व्यक्तित्व , शैली, भाव और अपनी फिलासफी हैं
बच्चन के कविताओं की भावनाओं से हिन्दी अछूती थी
शराब की कल्पना भी जहाँ इस दुख भरे संसार से विरिक्ति की सूचक है, वहाँ धार्मिक कट्टरता और संकीर्णता से विद्रोह का भी इशारा करती है।
हमें आशा है कि बच्चन जी की मधुबाला कहीं निराशावाद की शराब न पिलाए?