शायर रघुपति सहाय अगर रघुपति सहाय नाम से आप वाकिफ नहीं हैं तो ‘फिराक गोरखपुरी‘ नाम तो जरूर सुना होगा। रघुपति सहाय को ही दुनिया सदी के महान शायर फिराक गोरखपुरी के नाम से जानती है।
स्वतंत्रता पाने की चाह में असहयोग आंदोलन में कूद पड़े, जिसकी वजह से उन्हें डेढ़ साल की जेल भी काटने पड़ी और 500 रूपए का जुर्माना भी भरना पड़ा
जेल से छूटने के बाद पंडित नेहरु ने उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस के दफ्तर में अवर सचिव की जगह दिला दी। बाद में नेहरू जी जब कमला नेहरू के इलाज के लिए यूरोप के दौर पर थे उन्होंने अवर स़चिव का पद छोड़ दिया
दिसंबर 1947 का, जब नेहरू जी आनंद भवन पहुंचे हुए थे। गेट पर बैठे रिसेप्शनिस्ट ने आर. सहाय के नाम की पर्ची अंदर भेज दी और फिराक साहब बाहर इंतजार करने लगे, करीब 15 मिनट बाद कोई जवाब नहीं आया। इसके बाद फिराक साहब भड़के गए
नेहरू जी बाहर आए लेकिन फिराक साहब अभी भी शांत नहीं थे। नेहरू जी ने बताया कि मैं करीब 30 वर्षों से आपको ‘रघुपति सहाय’ के नाम से पहचानता हूं। इसके बाद नेहरू जी उन्हें खुद अंदर ले गए
इंदिरा गांधी फिराक गोरखपुरी को राज्यसभा का सदस्य बनाना चाहती थीं।
फिराक ने यह कहकर अनुरोध ठुकरा दिया कि मोती लाल नेहरू के जमाने से उनके आनंद भवन से गहरे रिश्ते रहे हैं। आपका जो स्नेह मिला है, वह मेरे लिए एक नहीं सौ बार राज्यसभा सदस्य बनने के बराबर है।