बटुकेश्वर दत्त को असेंबली बम कांड में भगत सिंह के साथी के रूप में याद किया जाता है, लेकिन आजादी के बाद उन्हें वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे।
असेंबली बम कांड के बाद बटुकेश्वर दत्त को अंडमान की काला पानी जेल भेजा गया, जहां उन्हें और उनके साथियों को भयंकर यातनाओं का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
जेल में बिताए समय में दत्त ने समाजवादी साहित्य का गहराई से अध्ययन किया और मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित होकर एक पक्के समाजवादी बन गए।
1938 में जेल से रिहा होने के बाद, दत्त का कांग्रेस की तरफ रुझान बढ़ा, लेकिन वह क्रांतिकारी गतिविधियों के संपर्क में भी बने रहे और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया।
आजादी के बाद दत्त को जीविका चलाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उन्होंने सिगरेट कंपनी में एजेंट और बाद में टूरिस्ट एजेंट और बस परिवहन जैसे काम किए, लेकिन उन्हें सरकारी सहायता नहीं मिली।
1964 में बटुकेश्वर दत्त की तबीयत बिगड़ने लगी, और उन्हें पटना के सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया। उनकी दयनीय स्थिति पर ध्यान आकर्षित करने के बाद ही उन्हें इलाज मिल सका।
मृत्यु से पहले, दत्त ने अपनी अंतिम इच्छा जताई कि उनका अंतिम संस्कार हुसैनीवाला, पंजाब में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ किया जाए। पंजाब के मुख्यमंत्री ने यह इच्छा पूरी की।
जीवनभर गुमनामी और उपेक्षा में रहे बटुकेश्वर दत्त को उनके अंतिम संस्कार के समय जनसमूह से सम्मान मिला। उनकी अंत्येष्टि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के संग ही की गई।