जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीयों के दिलों में अंग्रेजों के प्रति गहरा आक्रोश भर दिया, जो असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि बनी।
रोलेट एक्ट (1919) के पास होने से ब्रिटिश सरकार को किसी भी भारतीय को बिना मुकदमे के जेल में डालने का अधिकार मिल गया, जिसने जनता में व्यापक असंतोष पैदा किया।
महात्मा गांधी ने इस असंतोष को संगठित कर 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू किया, जिसमें विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, सरकारी संस्थाओं से दूरी, और फैक्ट्रियों में काम बंद करना शामिल था।
चौरी चौरा में पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच झड़प हुई, जब एक पुलिसकर्मी ने आंदोलनकारी की गांधी टोपी को पैरों तले कुचला, जिससे भीड़ और अधिक उग्र हो गई।
स्थिति बिगड़ने पर पुलिस ने आंदोलनकारियों पर फायरिंग की, जिसमें 11 लोग मारे गए और कई घायल हुए। यह घटना आंदोलनकारियों को भड़काने का कारण बनी।
महात्मा गांधी को इस हिंसा की खबर मिली तो वे बहुत आहत हुए। उनका मानना था कि हिंसा असहयोग आंदोलन के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।
12 फरवरी 1922 को गांधी जी ने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया। उनके इस निर्णय से कांग्रेस के कई सदस्य असहमत थे, लेकिन गांधी जी अहिंसा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग रहे।
गांधी जी का विश्वास था कि अहिंसा से ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को वैश्विक समर्थन मिलेगा। उनकी इसी सोच ने 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई।