30 अप्रैल, 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में जज किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंका।
रातभर 24 मील पैदल चलने के बाद खुदीराम वैनी स्टेशन पहुंचे, जहां शिव प्रसाद सिंह और फतेह सिंह नामक सिपाहियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
खुदीराम पर मुजफ्फरपुर के सेशन कोर्ट में मुकदमा चला और 13 जून को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। 11 अगस्त 1908 को फांसी की तारीख तय की गई।
प्रसिद्ध संवाददाता उपेंद्रनाथ सेन ने फांसी की घटना की रिपोर्टिंग की।
11 अगस्त को सुबह 6 बजे, खुदीराम को फांसी दी गई। वे तख्ते पर दृढ़ता और मुस्कुराहट के साथ पहुंचे। रस्सी कसने के बाद जल्लाद ने तख्ता खिसकाया और खुदीराम की शहादत हो गई।
खुदीराम की शव यात्रा के लिए मार्ग तय किया गया था। हजारों लोग रास्ते के दोनों ओर फूल लेकर खड़े थे। श्मशान घाट तक फूलों की बारिश होती रही।
खुदीराम बोस की शहादत ने 11 साल के बाल सुभाष चंद्र बोस को गहरा प्रभावित किया, जिन्होंने खुदीराम की तस्वीरें अपने कमरे की दीवार पर चिपका दीं। यही बालक आगे चलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।