महात्मा गांधी और संगीत

महात्मा गांधी को लेकर दो तरह की छवियां आम हैं—एक, वे अड़ियल और जिद्दी इंसान थे; दूसरी, उनकी चश्मा, छड़ी और घड़ी जैसी वस्तुएं उनकी पहचान बन गई हैं।

गांधी जी मानते थे कि भारत की आजादी की लड़ाई संगीत के बिना अधूरी है।

उनके नित्य प्रार्थना में "वैष्णव जन तो तेने कहिए" और "रघुपति राघव राजा राम" जैसे भजन शामिल थे।

"वैष्णव जन तो तेने कहिए" भजन संत नरसी मेहता द्वारा रचित है, जिसकी धुन एस. सुब्बुलक्ष्मी और पंडित जसराज ने बनाई।

1940 में एक समारोह में एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी को हिंदी में "हरि तुम हरिजन के पीर" गाने का अनुरोध किया गया था।

सुब्बुलक्ष्मी के संकोच करने पर गांधी जी ने कहा कि उनका गाया हुआ भजन किसी और के गाने से बेहतर होगा।

एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी ने गांधी जी की प्रेरणा से हिंदी भजन गाए, जिससे उनका संगीत विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ।

1954 में एम.एस. सुब्बुलक्ष्मी को पद्मभूषण और 1998 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न, मिला। सुब्बुलक्ष्मी भारतीय संगीत क्षेत्र से भारत रत्न पाने वाली पहली महिला थीं।