महारानी लक्ष्मी बाई के वफ़ादार पठान स्वतंत्रता सेनानी

महारानी लक्ष्मी बाई की फ़ौज में बड़ी संख्या में मुसलमान पठान, छोटे एवं बड़े ओहदों पर पदस्थ थे, जो कि रानी के एक इशारे पर सैकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया करते थे।

शहीद ग़ुलाम ग़ौस एवं शहीद ख़ुदा बख़्स दोनों जांबाज़ पठान झांसी की रानी के तोपखाने में तोपची थे।

महारानी लक्ष्मी बाई को अपने वफ़ादार साथी ग़ुलाम ग़ौस और ख़ुदा बख़्श की शहादत पर बहुत ज़्यादा दुख हुआ। रानी ने उन दोनों साथियों के सम्मान में उन्हें अपने ही महल के अहाते में दफ़न करवाया।

महारानी लक्ष्मी बाई जब जंगे आज़ादी के मैदान में चारों ओर से दुश्मन अंग्रेज़ के मज़बूत घेरे में घिर गई

इस बीच सरदार बुरहानुद्दीन, अचानक बीच में कूद पड़ा। तलवारबाजी के माहिर सरदार बुरहानुद्दीन ने अपनी तलवारबाजी से वह कारनामा कर दिखाया कि अंग्रेजों को मैदान छोड़कर भागना पड़ा।

रानी लक्ष्मी बाई जब जंग के मैदान में बहुत ज्यादा घायल हो गई। घायल रानी का बदला लेने के लिए गुल मुहम्मद ने क़ातिल अंग्रेज पर अपनी तलवार से करारा वार कर उसके शरीर के दो टुकड़े कर दिये।

हालाँकि रानी भी सर का एक भाग कट कर आँख लटक जाने के कारण बेहोश हो कर ज़मीन पर गिर गई।

गुल मुहम्मद वीरांगना की लाश को बाबा गंगा दास की कुटिया के करीब घास के ढेर पर रखकर चिता को अग्नि दी।  आखिरी दम तक रानी का साथ देने वाले गुल मुहम्मद भी रानी के साथ भारतीय इतिहास में अमर हो गए।