रटवाने वाली शिक्षा पर डॉ राजेन्द्र प्रसाद का विरोध
राजेंद्र प्रसाद के बड़े भाई महेंद्र प्रसाद के कलकत्ता जाने पर राजेंद्र का नाम हथुआ के स्कूल में लिखवाया गया, जहां शिक्षा का तरीका रटवाने पर आधारित था, जो उन्हें असहज करता था।
स्कूल में छात्रों को पाठ रटने और अगले दिन सुनाने के लिए मजबूर किया जाता था, जबकि राजेंद्र प्रसाद रटने के बजाय विषय को समझने में विश्वास करते थे।
कक्षा में पाठ न सुना पाने पर राजेंद्र प्रसाद का मजाक उड़ाया जाता था, जिससे वह बहुत असहज महसूस करने लगे। इसके बावजूद, वह कोशिश करते रहे।
राजेंद्र प्रसाद ने आधी रात को उठकर इस तरीके को आजमाया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।
राजेंद्र प्रसाद इतने तनाव में आ गए कि वे बीमार पड़ गए। उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ।
जब उनके बड़े भाई महेंद्र प्रसाद कोलकाता से लौटे और राजेंद्र की हालत देखी, तो उन्होंने उनका नाम हथुआ से कटवाकर फिर से छपरा में लिखवा दिया, जहां शिक्षा का तरीका बेहतर था।
छपरा के स्कूल में राजेंद्र प्रसाद का व्यक्तित्व धीरे-धीरे निखरने लगा। वहाँ उन्हें समझने वाली और प्रेरणादायक शिक्षा का माहौल मिला, जो उनकी मानसिकता के अनुरूप था।
राजेंद्र प्रसाद ने शिक्षा में रटने के बजाय समझाने पर जोर दिया और ऐसे शिक्षकों को भी आड़े हाथों लिया, जो बच्चों को सिर्फ रटने के लिए कहते हैं। उन्होंने समझने वाली शिक्षा पद्धति की पैरवी की।