सरदार पटेल और बारडोली सत्याग्रह

अहमदाबाद के बारडोली तालुका में 1927 में कृषि कर 30% बढ़ा दिया गया, जो कानूनी रूप से आधारहीन था। किसानों ने इसे अन्यायपूर्ण माना।

किसानों ने इस बढ़े हुए कर के खिलाफ सरदार वल्लभभाई पटेल से मदद की गुहार लगाई। उन्होंने मुंबई के गवर्नर को पत्र लिखकर आदेश वापस लेने की अपील की, लेकिन कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला।

बारडोली के किसान सरकारी अन्याय के खिलाफ आंदोलन शुरू करने के लिए तत्पर थे और सरदार पटेल ने इसके लिए सहमति जताई।

बारडोली तहसील परिषद की बैठक 8 फरवरी 1928 को हुई, जिसकी अध्यक्षता सरदार पटेल ने की। इस बैठक में महादेव देसाई और आनंद स्वामी भी उपस्थित थे।

12 फरवरी 1928 को बारडोली में एक विशाल जनसभा आयोजित हुई। "वंदे मातरम" के नारों के साथ सत्याग्रह की औपचारिक शुरुआत की गई।

सरकारी अधिकारियों ने प्रेस में यह बयान जारी किया कि सरदार पटेल एक बाहरी व्यक्ति हैं और उनका बारडोली से कोई संबंध नहीं है।

सरदार पटेल ने स्पष्ट शब्दों में उत्तर दिया, "यह मेरा देश है। मैं जहां भी जाऊं, यह देश मेरा ही रहेगा। बाहरी तो अंग्रेज हैं, जिन्हें यहां से बाहर जाना चाहिए।"

महात्मा गांधी ने भी बारडोली सत्याग्रह का खुला समर्थन किया, जिससे आंदोलन को और बल मिला।

1928 में सरकार को बढ़ा हुआ टैक्स वापस लेना पड़ा। किसानों ने इस जीत का जश्न मनाया और बारडोली सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक ऐतिहासिक मोड़ बन गया।