गोरखपुर में मुक़दमा और पंडित नेहरू 

नेहरूजी पर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में मुक़दमा चला। मजिस्ट्रेट के सामने अपनी बात रखते हुए, उन्होंने एक ऐतिहासिक भाषण दिया,

“महोदय, मैं आपके सामने एक व्यक्ति के रूप में खड़ा हूँ जिसने उस सत्ता के खिलाफ़ अपराध किए हैं, जिसके आप प्रतिनिधि हैं। लेकिन मैं सिर्फ़ एक व्यक्ति नहीं हूँ, मैं वर्तमान दौर का एक प्रतिनिधि हूँ, राष्ट्रवाद का प्रतीक हूँ। मैंने ब्रिटिश सत्ता से मुक्ति और भारत के लिए आज़ादी हासिल करने का प्रण किया है।

 असल में मैं कटघरे में नहीं हूँ, बल्कि ब्रिटिश साम्राज्यवाद दुनिया की अदालत के कटघरे में है। आज, दुनिया में क़ानूनी अदालतों से बड़ी ताक़तें हैं – आज़ादी, भोजन, और सुरक्षा की माँगें, जो जनता को संघर्ष पथ पर ले जा रही हैं और इतिहास उनके द्वारा बनाया जा रहा है।

इतिहास एक दिन यह कहेगा कि सबसे बड़े ट्रायल के समय, ब्रिटिश सत्ता हार गई, क्योंकि वे बदलती दुनिया के साथ खुद को नहीं ढाल पाए। मेरे लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है कि इस मुक़दमे में मुझे क्या सज़ा मिलेगी।

एक व्यक्ति की क़ीमत बहुत कम है, वे आते-जाते रहते हैं। मैं भी चला जाऊंगा जब मेरा वक़्त आएगा। पहले भी 7 बार ब्रिटिश सत्ता ने मुझ पर मुक़दमे चलाए हैं और जेल भेजा है। मेरी ज़िंदगी के कई साल जेल में बीते हैं। अब अगर आठवीं या नौवीं बार ऐसा होगा, तो इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।

लेकिन यह छोटी बात नहीं है कि भारतमाता और उसकी लाखों संतानों के साथ क्या होगा। मेरे सामने मुद्दा यही है, और अंततः आपके सामने भी यही है। अगर ब्रिटिश सत्ता यह सोचती है कि वह उन्हें पहले की तरह उत्पीड़ित कर सकती है और उनकी इच्छा के विरुद्ध उन पर राज कर सकती है, तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल होगी।

मुझे इस बात की खुशी है कि यह मुक़दमा गोरखपुर में चल रहा है। गोरखपुर के किसान मेरे राज्य के सबसे गरीब और सबसे ज़्यादा उत्पीड़ित किसानों में से हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि मेरी गोरखपुर यात्रा और यहाँ के लोगों की सेवा करने की मेरी कोशिशों के चलते मुझे यह सज़ा मिल रही है।”

जेल होनी थी, जेल हुई। 11 महीने जेल में रहने के बाद, जब ब्रिटिश शासन ने 4दिसंबर 1941 को सत्याग्रह के नेताओं को रिहा किया, तब पंडित नेहरू और मौलाना आज़ाद भी जेल से बाहर आए।

पंडित नेहरू का यह साहस और जनता के प्रति अदम्य प्रेम पंडित नेहरू को अपने समय का सबसे लोकप्रिय नेता बनाता था।