उषा मेहता:जिन्होंने रेडियो को आज़ादी का हथियार बनाया

उषा मेहता ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गुप्त रूप से रेडियो प्रसारण की शुरुआत की और जनता को जागरूक किया। उन्होंने युवाओं में यह विश्वास भरा कि रेडियो तकनीक से स्वतंत्रता संग्राम को और मजबूत किया जा सकता है।

उषा मेहता का जन्म 25 मार्च, 1920 को सूरत के पास हुआ। उनके पिता ब्रिटिश राज में जज थे। आरंभिक पढ़ाई के बाद उन्होंने बंबई के विल्सन कॉलेज में दाखिला लिया।

उषा मेहता ने महज 8 साल की उम्र में 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया। यह उनकी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी की शुरुआत थी।

'भारत छोड़ो' आंदोलन में सक्रियता: 1942 में गांधीजी द्वारा ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन की घोषणा के बाद, उषा मेहता ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और इस आंदोलन में सक्रिय हो गईं।

14 अगस्त 1942 को कांग्रेस रेडियो ने गुप्त रूप से पहली बार प्रसारण किया। उषा मेहता ने समाचार और वार्ताएँ प्रसारित कीं। चटगांव बम हमले की जानकारी भी पहली बार इसी रेडियो से दी गई।

तीन महीने तक कांग्रेस रेडियो का सफल संचालन करने के बाद, अंग्रेजों ने इसका पता लगा लिया और नवंबर 1942 में उषा मेहता और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

उषा मेहता को अवैध वायरलेस टेलीग्राफ के इस्तेमाल के आरोप में चार साल की सजा सुनाई गई। वह अप्रैल 1946 तक जेल में रहीं।

आजादी के बाद उषा मेहता ने शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में कार्य किया। उन्होंने गांधीजी के विचारों पर पीएचडी की और बंबई विश्वविद्यालय में अध्यापन शुरू किया।

गांधीवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए उषा मेहता को कई प्रतिष्ठानों से जोड़ा गया। उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उनका निधन 2000 में हुआ।