जब प्रेमचंद ने मधुशाला की समीक्षा लिखी
प्रेमचंद ने हंस पत्रिका में मधुशाला पर एक छोटी समीक्षा लिखी थी।
बच्चन का अपना व्यक्तित्व , शैली, भाव और अपनी फिलासफी हैं
मधु, मधुशाला, साकी आदि भावनाएँ हिन्दी में अनोखी हैं
बच्चनजी की इन कविता में भी वही भावनाएँ हैं मगर कल्पना हिन्दी के लिए सर्वथा अछूती है
शराब की कल्पना भी जहाँ इस दुख भरे संसार से विरिक्ति की सूचक है, वहाँ धार्मिक कट्टरता और संकीर्णता से विद्रोह का भी इशारा करती है
हमें आशा है कि बच्चन जी की मधुबाला कहीं निराशावाद की शराब न पिलाए?