1857 की क्रांति के दौरान अज़ीज़न, जो कानपुर की एक नर्तकी थीं, ने वीरांगना बनकर देशप्रेम और त्याग का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया।
अज़ीज़न ने गंगा के पवित्र जल को साक्षी मानते हुए 1857 की क्रांति में हिस्सा लिया, जहां वह क्रांतिकारियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं।
कानपुर 1857की क्रांति का मुख्य केंद्र था, जहां नाना साहब और अजीमुल्ला खाँ ने क्रांति की योजना बनाई। अज़ीज़न इस क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थीं।
नाना साहब के शासन के आरंभ की खबर सुनकर अज़ीज़न का हृदय देशप्रेम से भर गया और उन्होंने उत्साहपूर्वक क्रांति में हिस्सा लिया।
अज़ीज़न ने घोड़े पर सवार होकर, पुरुष वेश में, क्रांतिकारियों के साथ जुलूस में हिस्सा लिया और लोगों को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित किया।
अज़ीज़न ने महिलाओं की एक सेना बनाई, जो पुरुषों के वेश में तलवारें लेकर सिपाहियों का हौसला बढ़ाती और घायल सिपाहियों की देखभाल करती थीं।
अंग्रेज अधिकारी कर्नल विलियम ने भी अज़ीज़न की बहादुरी और पुरुष वेश में सुसज्जित घोड़े पर सवार होने की चर्चा की, जिसे कानपुर के हजारों लोगों ने देखा था।
नाना साहब की पराजय के बाद अज़ीज़न को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया। जनरल हैवलॉक ने उन्हें माफी मांगने का अवसर दिया, लेकिन अज़ीज़न ने अंग्रेजों के विनाश की इच्छा जताई, जिसके बाद उन्हें गोलियों से भून दिया गया।
अज़ीज़न का बलिदान उन महिलाओं के लिए मिसाल है, जिनका देशप्रेम 1857 की क्रांति में दिखाई दिया, लेकिन उन्हें इतिहास में कम स्थानमिला है। अज़ीज़न जैसी वीरांगनाओं का त्याग अमर है।