दांडी मार्च की तैयारी के दौरान सरदार पटेल को एक जनसभा को संबोधित करने से रोका गया और गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने जेल में उनके साथ दुर्व्यवहार किया।
सरदार पटेल के भाषणों का सुनने वालों पर गहरा प्रभाव पड़ता था, जिससे गुजरात में क्रांति की लहर दौड़ने लगी। ब्रिटिश हुकूमत ने उनके भाषणों पर पाबंदी लगा दी।
7 मार्च 1930 को बोरसद के रास गाँव में एक जनसभा को संबोधित करने से पहले मजिस्ट्रेट ने उन्हें रोका और सरकारी आदेश की प्रति दी। आदेश मानने से इनकार करने पर उन्हें तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया।
भाषण देने की ज़िद के कारण उन्हें तीन महीने तीन सप्ताह की सज़ा सुनाई गई, जबकि उन्होंने एक शब्द भी नहीं बोला था। सरदार पटेल ने कोई प्रतिरोध नहीं किया और सज़ा चुपचाप स्वीकार कर ली।
सरदार पटेल की गिरफ्तारी पर पूरे देश और विशेष रूप से गुजरात में भारी आक्रोश उमड़ा। अहमदाबाद में 75,000 लोगों की सभा हुई, जहां लोगों ने स्वतंत्रता संघर्ष जारी रखने की शपथ ली।
रास गाँव के 500 लोगों ने सत्याग्रह में सक्रिय भाग लेने की शपथ ली। कई स्थानीय लोगों ने सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देकर असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया।
जेल में बंद सरदार पटेल का प्रभाव उनके स्वतंत्र भाषणों से भी अधिक दिखाई देने लगा। उनकी लोकप्रियता और जनता के प्रति प्रेम का यह प्रत्यक्ष प्रमाण था।
सरदार पटेल को जेल में अन्य कैदियों की तरह बहुत सीमित सुविधाएं मिलीं—ज्वार की दो रोटियाँ, थोड़ी दाल, और सोने के लिए सिर्फ एक कंबल।
गांधीजी ने जेल में सरदार के साथ हो रहे दुर्व्यवहार पर तीखी प्रतिक्रिया दी। इसके बाद सरदार पटेल को बेहतर भोजन और साहित्य प्रदान किया जाने लगा।
जेल में सरदार पटेल ने आत्मबल और हौसला बनाए रखा। गांधीजी के वक्तव्य और जनता के समर्थन से उनका मनोबल और भी मजबूत हो गया।