जब हरिवंशराय बच्चन ने गांधीजी को मधुशाला की पंक्तियां सुनाईं

हरिवंश राय को बचपन में 'बच्चन' कहा जाता था, जिसका अर्थ 'बच्चा' होता है। यही नाम बाद में उनकी पहचान बन गया।

1933 में हरिवंश राय बच्चन ने अपनी प्रसिद्ध कविता 'मधुशाला' लिखी। इस कविता को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बहुत प्रशंसा मिली, लेकिन इसके कुछ हिस्सों पर विवाद भी हुआ।

'मधुशाला' को लेकर कुछ लोगों ने हरिवंश राय बच्चन पर आरोप लगाए कि यह युवाओं को शराब की ओर आकर्षित कर रही है। इस कारण उन्हें धमकियां और फतवे भी मिले। यहां तक कि महात्मा गांधी से भी शिकायत की गई।

गांधीजी ने बच्चन जी से कहा कि वह अपनी कविता उन्हें सुनाएं। हरिवंश राय बच्चन ने गांधीजी के सामने 'मधुशाला' की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत कीं।

बच्चन जी ने कविता की कुछ पंक्तियाँ गांधीजी के सामने पढ़ीं, "बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला, पी लेने पर तो उसके मुँह पर पड़ जाएगा ताला, दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की, विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।"

गांधीजी ने कविता को ध्यान से सुना और फिर हंसते हुए कहा कि इसमें कोई आपत्ति की बात नहीं है। उन्होंने हरिवंश राय बच्चन का समर्थन किया और उन पर लगे आरोपों को खारिज कर दिया।

जब हरिवंशराय बच्चन को गांधी जी की हत्या का समाचार मिला। गांधीजी से अपने गहरे जुड़ाव के कारण इस नए दुःख ने उन्हें लगभग अवसाद की अवस्था में डाल दिया। गांधीजी की हत्या हरिवंशराय बच्चन को झकझोर दिया है

उन्होंने लिखा- बापू के प्रिय पद-भजनों को, आओ सब मिलकर गाएं, उनके शव के पास बैठकर करें रामधुन यह अविराम। रघुपति राघव राजाराम।।