जब जवाहरलाल नेहरू की आत्मकथा पर रविन्द्रनाथ टैगोर की टिप्पणी

अलमोड़ा जेल यात्रा के दौरान पंडित नेहरू ने अपनी आत्मकथा के कुछ अंश लिखे थे

जवाहरलाल नेहरू ने जेल के एकाकी जीवन में किताब लिखने का निर्णय लिया, ताकि समय का सदुपयोग कर सकें और देश की घटनाओं का लेखा-जोखा दे सकें।

नेहरू भारत में घटित हालिया घटनाओं और उनकी अपनी भूमिका पर चर्चा करना चाहते थे, जिससे पाठक उस समय के भारत को समझ सकें।

अपनी आत्मकथा की प्रस्तावना में उन्होंने लिखा कि उन्होंने इसे प्रश्नकर्ता के रूप में शुरू किया और यह भाव किताब के अंत तक बना रहा।

रवींद्रनाथ टैगोर ने पंडित नेहरू के किताब ओर टिप्पणी करते हुए कहा- “मैंने अभी-अभी तुम्हारी यह महान् पुस्तक पढ़कर समाप्त की हैं और मुझे तुम्हारी उपलब्धि पर गर्व हैं तथा मैं बहुत प्रभावित भी हूँ।

इसका विवरण मानवता के प्रवाह के साथ चलता है तथा वास्तविकता की गुत्थियों को सुलझाता है हुआ एक ऐसे व्यक्ति की तरफ ले जाता है, जो अपने कर्तव्यों से बड़ा और अपने आसपास से अधिक सच्चा है।”

जवाब में जवाहरलाल ने टैगोर को ‘गुरुदेव‘ के नाम से संबोधित करते हुए लिखा- ” आपने जो कुछ भी लिखा, उसने मेरे हृदय को छू लिया और इससे मुझे ताकत और प्रसन्नता भी मिली।

आपके आशीर्वाद की सहायता से मैं अपने विरोध की दुनिया का सामना कर सकूँगा। अब मेरा बोझ हलका होगा और मार्ग सरल होगा।‘