रवींद्रनाथ टैगोर ने पंडित नेहरू के किताब ओर टिप्पणी करते हुए कहा- “मैंने अभी-अभी तुम्हारी यह महान् पुस्तक पढ़कर समाप्त की हैं और मुझे तुम्हारी उपलब्धि पर गर्व हैं तथा मैं बहुत प्रभावित भी हूँ।
जवाब में जवाहरलाल ने टैगोर को ‘गुरुदेव‘ के नाम से संबोधित करते हुए लिखा- ” आपने जो कुछ भी लिखा, उसने मेरे हृदय को छू लिया और इससे मुझे ताकत और प्रसन्नता भी मिली।