टैगोर ने तुरंत गांधीजी से मिलने की इच्छा जताई, हालांकि साथियों ने उन्हें समझाया कि उनकी सेहत ठीक नहीं है, लेकिन टैगोर ने जिद कर ली कि वे गांधीजी से मिलकर ही रहेंगे।
टैगोर को गांधीजी से मिलने के लिए शरत चंद्र बोस के घर लाया गया, लेकिन गांधीजी दूसरी मंजिल पर थे और टैगोर बीमार होने के कारण सीढ़ियां नहीं चढ़ सकते थे।
वहां मौजूद सभी साथियों ने टैगोर की गांधीजी के प्रति सच्ची मोहब्बत को देखते हुए उन्हें कुर्सी पर उठाकर ऊपर ले जाने का निश्चय किया।
कुर्सी के चारों पायों को पकड़कर टैगोर को ऊपर ले जाया गया। पहला पाया जवाहरलाल नेहरू, दूसरा सुभाष चंद्र बोस, तीसरा शरत चंद्र बोस, और चौथा महादेव देसाई ने थामा।
टैगोर और गांधीजी की यह मुलाकात केवल दो व्यक्तियों की नहीं, बल्कि दो महान आत्माओं के गहरे संबंध और आपसी सम्मान का प्रतीक बन गई।