महिलाएं भी मजदूर आंदोलन का हिस्सा थीं
19 वीं सदी के अंत तक यूरोप और अमेरिका में औद्योगिक कामगारों के रुप मे औरतों ने अपनी जगह बना ली थी। हालांकि उनकी स्थिति और उनके काम की परिस्थितियां मर्दो की तुलना में बहुत बदतर थीं। मार्च 1857 में कपडा उद्योग में काम करने वाली औरतों ने बेहतर काम की परिस्थितियों, काम के 10 घंटे और बराबरी के अधिकार के लिए प्रदर्शन किया जिसका बुरी तरह दमन किया गया। मार्च 1908 में कामगार औरतों का एक और बडा प्रदर्शन हुआ। यह प्रदर्शन बालश्रम पर रोक और औरतों के मताधिकार की मांग को ले कर था। फिर दमन हुआ।
अंतर्राष्टीय महिला दिवस ने कामगारों के संघर्ष को ताकत दी। रूस की फरवरी क्रांति में इसने महत्वपूर्ण उत्प्रेरक का कार्य किया।
औरतों के साथ हर क्षेत्र में भेदभाव होता रहा है
महिलाओं के इस ऐतिहासिक संघर्ष को महिलाओं के संघर्ष के रुप में सीमित करके आंका जाता है जबकि वह भी उस व्यापक मजदूर आंदोलन का हिस्सा था जिसने पूरी दुनिया के मजदूरों को एक नई ताकत और दृष्टि दी थी। ठीक उसी प्रकार जैसे मई दिवस के संघर्ष को अनकहे ही पुरुष कामगारों का संघर्ष मान लिया जाता है। 8 मार्च का आंदोलन राजनीतिर्क आर्थिक और सामाजिक अधिकारों का संघर्ष था जो समूची मानवजाति से स्वयं को जोडता था। यह केवल ‘औरतों का मुद्दा’ नहीं था।उदाहरण के लिए जब 1866 में अमेरिका में ‘ नेशनल लेबर यूनियन की स्थापना हुइ थी तो बहुत सी महिला श्रमिक इसका हिस्सा थीं। अमेरिकी कांग्रेस ने 1868 में आठ घंटे के कार्यदिवस का जो कानून पास किया उसकी उत्प्रेरक नेता थीं बोस्टन की मेकेनिस्ट इरा स्टीवर्ड।
पिछले कुछ सालों से हम देख रहें है कि महिला दिवस को पत्नी दिवस के रुप में मनाना, कार्ड पर सुंदर कोमल कविताएं लिख कर देना, उपहार देना आदि का प्रचलन बढता जा रहा है। महिलाओ के जुझारु संघर्षों को बेहतर समाज के लिए होने वाले संघर्षो के हिस्से के रुप में नहीं देखा जाता। इस ऐतिहासिक संघर्ष ने यह साबित किया कि महिलाओं की भी राजनीतिक भूमिका है और इसे निभा सकने में वे सक्षम भी हैं। हालाॅकि महिला कामगारों के अधिकारों की हमेशा ही उपेक्षा हुई है।
आज भी उनके साथ पुरुष कामगारों की तुलना में अधिक शोषण और उत्पीडन हिंसा और गैरबराबरी का शिकार होना पडता है। संगठित असंगठित दोनों क्षेत्रों में लगभग यही स्थिति है। इस दृष्टि से महिला मजदूरों को दोहरा संघर्ष करना होगा। एक तरफ पितृसत्तात्मक शोषण से तो दूसरी ओर एक कामगार के रुप में।आज महिला कामगारों को संगठित करने की जरुरत को समझना होगा जो पितृसत्तात्मक मूल्यों को चुनौती देने के साथ ही व्यापक मजदूर आंदोलन का भी हिस्सा बनें।
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