क्रांतिमूर्ति दुर्गा भाभी का क्रांतीकारी जीवन
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में क्रांतिमूर्ति दुर्गावती वोहरा का नाम प्रथम पंक्ति की महिला क्रांतिकारियों में लिया जाता है।
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में क्रांतिमूर्ति दुर्गावती वोहरा का नाम प्रथम पंक्ति की महिला क्रांतिकारियों में लिया जाता है।
पसमान्दा मुसलमान और उनके दु:ख-दर्द को लेकर अरसे से संघर्ष कर रहे भूतपूर्व सांसद, पत्रकार, लेखक और जुझारू नेता अली
महात्मा गांधी अपने समय के उन व्यक्तियों में से है जो व्यक्तिवाद की सीमाओं के पार जाकर सामूहिकता की चेतना
ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान या बादशाह ख़ान उनलोगों में से थे, जो अविभाजित राष्ट्रवाद के साथ ही अविभाजित राष्ट्र
भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के पहले नेता थे जिन्होंने सांप्रदायिकता के साथ-साथ जाति के मसले पर गंभीर हस्तक्षेप किया।
मंगूराम, जिन्होंने पंजाब में ऐड-धर्म आंदोलन की नींव रखी थी और गदर पार्टी से भी जुड़े हुए थे। उनको लोग
अय्यंकालि उन जाति-विरोधी योद्धाओं में से थे, जिन्होंने ब्राह्मणवादियों और उनकी सत्ता से समानता का हक़ हासिल करने के लिए
विजयलक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु की बहन थीं। परंतु, उनकी अपनी एक अलग विशिष्ट पहचान
“गोदुताई” ठाणे-पालघर क्षेत्र में पुराने वर्ली लोगों के बीच एक प्रसिद्ध नाम है। यह एक उपनाम था, जो प्यार से
आदिवासी परंपराओं में एक फूलो-झानो मात्र नहीं हैं, उनके जैसी कई पुरखिन औरतें और वर्तमान समय में भी उनका निर्वाह
अबाला बोस , रेडियो साइंस के पितामह जगदीशचंद्र बोस की जीवन संगिनी थीं। उन्होंने देश की महिलाओं को सामाजिक कुरीतियों
भारत की अज़ादी की लड़ाई के दौरान कुछ लोग ऐसे भी रहे, जिन्होंने आज़ादी के साथ-साथ सामाजिक आंदोलनों को ज़रूरी
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों में हर वर्ग और समुदाय ने अपना योगदान दिया। देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में सबने अपनी-अपनी
आधी आबादी की दुनिया में कुछ महिलाओं ने अंधेरी दुनिया से बाहर निकलने के लिए पहले अपने अंदर की संभावनाओं
दुर्भाग्य है कि इतिहास अक्सर मर्दों का इतिहास बनकर रह जाता है। इसमें औरतों की भागीदारी के निशानात कहीं दर्ज़
सुचेता कृपलानी को अधिकांश लोग इस नाते ही जानते हैं कि उन्होंने एक लेक्चरर के तौर पर अपने करियर की
हंसा मेहता को भारत के संविधान सभा सदस्य रही, जिन्होंने 14 अगस्त 1947 की अर्द्धरात्री को सत्ता के हस्तांतरण के
देश में महिलाओं के अधिकारों को लेकर हुए आन्दोलन का एक लंबा इतिहास रहा है। जिसको आयात किया हुआ विमर्श
“गाँधी को पूर्वाग्रहों के लिए क्षमा किया जाना चाहिए और हमें उनका मूल्यांकन उनके समय और परिस्थितियों को ध्यान में
1857 की जन-क्रांति के समय अज़ीज़न कानपुर में नर्तकी थी। उनका वैभव घुघरुओं की रुनझुन और संगीत के सुमधुर स्वर
बिरसा विद्रोह दरअसल मुण्डा विद्रोह था। इस विद्रोह का आर्थिक उद्देश्य उन ज़मींदारों को, जिन्होंने मुण्डों की जमीन हथिया ली
कर्नल हैनेवे(Col Hannay) ईस्ट इंडिया कंपनी का एक अफसर था। कंपनी की आज्ञा से उसने 1778 में अवध के नवाब
भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन एक ऐसा जन आन्दोलन था जो जैसे-जैसे बढ़ता गया वैसे-वैसे उसकी शक्ति बढ़ती गई थी। यह
विद्यागौरी नीलकंठ न तो पितृसत्ता के ख़िलाफ़ विद्रोही थी न ही एक उत्साही नारीवादी, जैसा आज हम इस शब्द से
खुद पर आत्मविश्वास और हौसले के दम पर, असंभव लगने वाले काम को अंजाम दिया जा सकता है और सफलता
18वीं सदी में भारतीय शिक्षा के विषय पर गठित कमीशन जिसे भारतीय शिक्षा आयोग भी कहा गया। भारतीयों के शिक्षा
सामाजिक मुद्दों के लिए जीवन समर्पित करने वाली मृदुला साराभाई मृदला साराभाई वह महिला जो आजादी के आंदोलनों में सफेद
मार्क्स यदि जीवित होते तो 5 मई 2018 को 202 वर्ष के हो गए होते। तो क्या? क्या मार्क्स के
औपनिवेशिक भारत में जब आज का बांग्लादेश भारत का हिस्सा हुआ करता था, तब एक यूरोपियन क्लब के बोर्ड पर
कहा जाता है कि दुनिया का सबसे पुराना पेशा है देह-व्यापार. देह-व्यापार से उत्पन्न परिस्थितियों में ईर्ष्या-द्वेष बढ़ा. ऐसी हालत
मई दिवस यानी अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस। श्रम यानी सिर्फ़ मर्दों का श्रम? औरतों की मेहनत पर ध्यान क्यों नहीं जाता?
सत्यम सत्येन्द्र पाण्डेय आठ घंटे काम,आठ घंटे मनोरंजन और आठ घंटे आराम औद्योगिक पूंजीवादी क्रांति ने सामंतवादी उत्पादन संबंधों को
अंग्रेजी की पहली भारतीय महिला उपन्यासकार और सम्पादक- द इंडियन लेडीज़ मैगज़ीन –कमला सत्यानन्दन ने कहा था “रमाबाई भारत की
संविधान सभा में अहम भूमिका निभाने वाली महिला: अम्मू स्वामीनाथन अम्मू स्वामीनाथन संविधान तैयार करने के लिए 425
समय और समाज को सत्य का आईना दिखाती पंडिता रमाबाई समय और समाज की आलोचना करना कभी भी आसान नही