वो साल था तिरासी: चुनाव, थैचर और फिसड्डी टीम
[1983 के विश्वकप जीत की कहानी हर भारतीय में मन में दर्ज है, विशि सिन्हा सुना रहे हैं इस जीत के सफ़र के क़िस्से। आज पढ़िए चौथी क़िस्त]
चुनाव, थैचर और विश्वकप
यह वो दौर था जब ‘लौह महिला’ विशेषण का प्रयोग भारत में प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी के लिए किया जाता था तो इंग्लैंड में प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के लिए.
कंजर्वेटिव पार्टी की प्रमुख थैचर 1979 का चुनाव जीतकर पिछले चार वर्षों से देश की प्रधानमन्त्री रही थीं. और अब एक बार फिर वक़्त था चुनावों का. 9 जून को प्रस्तावित आम चुनाव ही उन दिनों मीडिया में चर्चा का केंद्र था. साल भर पहले, अर्जेंटीना के साथ हुए फ़ॉकलैण्ड द्वीप युद्ध जीतने और आर्थिक मोर्चे पर मंदी से देश को उबारने के वजूहात से मार्गरेट थैचर की लोकप्रियता शिखर पर थी और उनके पुनः चुनाव जीतने की संभावना प्रबल थी. ऐसे में जून में ही आयोजित हो रहे क्रिकेट वर्ल्ड कप को मीडिया की उतनी तवज्जो नहीं मिलने जा रही थी.
लन्दन के प्रमुख समाचार पत्र ‘द टाइम्स’ में नियमित रूप से चार पेज की जगह आज खेलों के लिए केवल दो पेज दिए गए थे, जिनमें से एक पर इंग्लिश फुटबॉल लीग (आजकल होने वाले ‘प्रीमियर लीग’ की पूर्ववर्ती) की कवरेज थी और केवल आधे पेज में क्रिकेट की खबरें थी. ज़िम्बाबवे की टीम द्वारा एक अभ्यास मैच में माइनर काउंटीज़ की टीम को पराजित करने की खबर छपी थी.
हमारे ग्रुप में सबसे कमजोर भारतीय टीम है
और साथ ही ज़िम्बाब्वे टीम के खिलाडी अली शाह का वक्तव्य भी छपा था जिसे हीथ्रो एअरपोर्ट से होटल आते समय टीम बस में सैयद किरमानी ने साथी खिलाड़ियों को पढ़कर सुनाया – “हमारे ग्रुप में सबसे कमजोर भारतीय टीम है”. ये वक्तव्य उस टीम के खिलाड़ी की तरफ से आया था जो पहली बार विश्वकप में खेलने के लिए अर्हता प्राप्त कर सकी थी और जिसे अपना पहला एकदिवसीय मैच खेलना अभी बाकी था.
विश्वकप के पूर्वावलोकन सम्बन्धी एक अन्य लेख में वेस्टइंडीज़, ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और न्यूज़ीलैंड टीमों को सेमीफाइनल में पहुँचने का दावेदार बताया गया था. भारतीय टीम के साथ दो बार की चैंपियन वेस्टइंडीज़, ऑस्ट्रेलिया और ज़िम्बाब्वे की टीमें ग्रुप – बी में रखी गई थीं, जबकि ग्रुप – ए में इंग्लैंड, पाकिस्तान, न्यूजीलैंड और श्रीलंका की टीमें थी.
सभी टीमों के ठहरने का प्रबंध वेस्टमोरलैंड होटल में ही किया गया था, जहाँ सड़क पार करते ही वो मैदान था जिसपर खेलने का सपना हर क्रिकेट खिलाड़ी देखता है और जिसे क्रिकेट का मक्का कहा जाता है – लॉर्ड्स का मैदान. 1975 वर्ल्ड कप के उद्घाटन मैच के बाद भारतीय टीम को लॉर्ड्स में एकदिवसीय मैच खेलने को नहीं मिला था और इस बार भी भारतीय टीम का कोई ग्रुप मैच लॉर्ड्स में नहीं आयोजित होने जा रहा था.
इंग्लैंड में भ्रमणकारी टीमों के लिए परिस्थिति-अनुकूलन का बहुत महत्त्व रहता है. पुराने दिनों में भ्रमणकारी टीमों को टेस्ट मैच खेलने से पूर्व काउंटीज़ से कई मैच खेलने होते थे, ताकि खिलाड़ी इंग्लैंड की परिस्थितियों के अनुकूल खुद को ढाल सकें. वर्ल्ड कप के समय भी कुछ अभ्यास मैचों का आयोजन किया गया था. भारतीय टीम के इंग्लैंड पहुँचने के हफ्ते भर पहले श्रीलंका और ज़िंबाबवे जैसी टीमें भी इंग्लैंड पहुँच चुकी थीं और लगातार अभ्यास मैचों में भाग ले रही थीं.
पहला अभ्यास मैच
इंग्लैंड पहुँचने के दो दिन बाद 3 जून को वुडसाइड, वॉटफ़ोर्ड में भारतीय टीम का पहला अभ्यास मैच न्यूजीलैंड से था. लन्दन से आधे घंटे की दूरी पर स्थित वॉटफ़ोर्ड का बियाबान में स्थित, लेकिन खूबसूरत ये मैदान एक-मंजिला पैवेलियन और दो-मंजिला क्लब हाउस की बिल्डिंग के अलावा पेड़ों से घिरा था, और एक तरफ कुछ रिहाइशी मकान थे.
न्यूजीलैंड टीम की तरफ से बल्लेबाजी की शुरुआत करने ग्लेन टर्नर और ब्रूस एडगर उतरे. ग्लेन टर्नर एकदिवसीय क्रिकेट में बड़ा नाम थे. एकदिवसीय क्रिकेट इतिहास का सबसे बड़ा स्कोर उनके ही नाम था – 171*. जब भी भारत के खिलाफ खेलते तो गेंदबाजों की शामत आ जाती. अब तक जिन चार एकदिवसीय मैचों में वे भारत के खिलाफ खेले थे, उनके स्कोर थे 114*, 63*, 52 और 43*, यानी 272 रन, इतनी ही औसत से.
जाहिर सी बात है कि भारतीय टीम इन सभी चार मैचों में पराजित हुई थी, जिनमें 1975 और 1979 वर्ल्ड कप के मैच भी शामिल थे. आज भी ग्लेन टर्नर, ब्रूस एडगर और मार्टिन क्रो ने भारतीय गेंदबाजों की अच्छी खासी धुलाई की. आस-पास के मकानों की छत से जाकर गेंद लानी पड़ी. टर्नर ने 43, एडगर ने 41 और क्रो ने 34 रन बनाए. हालांकि बाद में भारतीय गेंदबाजों ने स्थिति पर नियंत्रण पाया और न्यूजीलैंड को निर्धारित 55ओवर के अन्दर 246 रन पर ऑल आउट कर दिया.
भोजन भी समस्या था
लंच टाइम में पता चला कि आयोजकों की तरफ से लंच में केवल रोस्टेड चिकन और शेफर्ड्स पाई जैसी नॉन-वेज डिशेज़ ही हैं, जबकि भारतीय टीम में कई खिलाड़ी शाकाहारी थे. मैनेजर मानसिंह ने किसी तरह बेक्ड आलू, कुकीज़ आदि का प्रबंध किया, लेकिन आस-पास कुछ और उपलब्ध नहीं था.
मैच देखने आये कुछ दर्शकों में मौजूद एक भारतीय प्रशंसक – जिसका साउथहॉल में रेस्तरां था – ने फिर अपने रेस्तरां से खाना मंगवाया, जो घंटे भर बाद पहुँचा. भारतीय टीम जवाब में 212 रन ही बना पाई और 34 रन से हार गई. लांस केयर्न्स ने तीन विकेट लिया, जबकि इवान चैटफील्ड और इवान ग्रे ने दो-दो विकेट लिए.
अगले दिन भारतीय टीम एक और अभ्यास मैच खेलने एक दूसरे मैदान पर मौजूद थी जो कल की ही भाँति खूबसूरत, लेकिन बियाबान में स्थित था – लन्दन से 40 मील दूर बकिंघमशायर स्थित प्रिंसेस रिज्बोरो. आज का अभ्यास मैच माइनर काउंटीज़ टीम से था.
इन दोनों मैच में संधू के साथ सुनील वाल्सन को भारतीय आक्रमण की शुरुआत करने का मौक़ा मिला था. बढ़ई, किसान और सेल्समैन जैसे कार्यों से जीविका चलाने वाले सेमी-प्रोफेशनल खिलाड़ियों से बनी माइनर काउंटीज़ की टीम, अपेक्षानुरूप भारतीय गेंदबाजी के समक्ष कुछ ख़ास नहीं कर पाई और निर्धारित 50 ओवर में छः विकेट के नुकसान पर केवल 154 रन ही बना सकी. रवि शास्त्री सबसे सफल गेंदबाज रहे, उनका गेंदबाजी विश्लेषण था 10-6-10-3. संधू और जिमी ने एक-एक विकेट लिए, जबकि सुनील वाल्सन को कोई विकेट नहीं मिला.
साउथहॉल रेस्तरां वाले खेलप्रेमी की तरफ से आज शाही लंच का प्रबंध था, जिसमें कुछ गुजराती खेलप्रेमियों द्वारा लाये गए घर के बने थेपला और चूरमा भी शामिल कर लिए गए थे. इस शाही लंच के बाद ‘स्वीट डिश’ के रूप में भारतीय टीम को खुद को सर्व करना था 155 रनों का ‘हलवा’ लक्ष्य. लेकिन भारतीय टीम इस मामूली लक्ष्य को भी हासिल नहीं कर पाई और छः ओवर शेष रहते 135 रन पर ढेर हो गई.
टीम के आधे खिलाड़ी स्टम्प लाइन की गेंदें खेलने में चूके और बोल्ड या पगबाधा आउट हुए. श्रीकांत के बनाये 28 रन का स्कोर भारतीय टीम की तरफ से सबसे बड़ा स्कोर था. स्टीफन प्लम ने चार और फिलिप गार्नर ने तीन भारतीय खिलाड़ियों को आउट किया. गौरतलब है कि प्लम अपने पूरे करियर में सिर्फ पांच प्रथम श्रेणी मैच खेल पाए, जबकि ये वाले गार्नर तो एक भी नहीं. इस माइनर काउंटीज़ की टीम का कोई भी खिलाड़ी कभी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट नहीं खेल पाया, लेकिन उन्होंने भारतीय टीम को आज 19 रनों से पराजित कर दिया था.
बढ़ई, सेल्समैन और किसानों से बनी एक सेमी-प्रोफेशनल टीम ने भारतीय टीम को एहसास करा दिया था कि वे कितने पानी में हैं.
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विश्वरंजन हैं तो क़ानून के प्रोफेशनल लेकिन मन रमता है खेलों और क्राइम फिक्शन में। कई किताबें लिखी हैं और ढेरों लेख।