राज कुमार शुक्ल थे चंपारण आंदोलन के सूत्रधार
अप्रैल का महीना बिहार के चंपारण जिले के इतिहास में खास है क्योंकि अप्रैल महीने के दूसरे पखवाड़े में सन 1917 को महात्मा गांधी चंपारण के धरती पर कदम रखा और अंग्रजों के खिलाफ पहले सत्याग्रह का बिगुल फूंका..
जब गांधीजी राज कुमार शुक्ल से मिले………
दक्षिण अफ्रीका से आने के बाद महात्मा गांधी को भारतीय राजनीति में आम भारतीयों से जोड़ने में राजकुमार शुक्ल एक प्रमुख हस्ती के रूप में हमारे सामने आते है। आखिर कौन थे. रामकुमार शुक्ल, जिन्होंने चांपरण आंदोलन से महात्मा गांधी को जोड़ा। क्या हुआ था जब गांधीजी राज कुमार शुक्ल से मिले….
1915 में महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ्रीका में 21 सालों तक रहकर, भारत लौटते है। उस वक्त भारत से अधिक परिचित नहीं थे। गुरु गोपालकृष्ण गोखले के सलाह पर भारत से परिचित होने के लिए भारत-भ्रमण के लिए निकलते है। परंतु, भारत में अपनी राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों को कैसे आगे बढ़ाना है? इसको लेकर गहरे दंव्द में थे। गहरे दंव्द के मनोस्थिति में महात्मा गांधी दिसंबर 1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लिया। इसी अधीवेशन के आयोजन में उनकी मुलाकात हुई. राजकुमार शुक्ल से। इसी अधिवेशन में
राज कुमार शुक्ल ने कहा- यूरोपीय प्लांटर्स इतने ताकतवर हो गए है कि वे गरीब किसानों की दीवानी और फौजदारी तक के मुकदमें खुद तय कर रहे हैं और मनमाने ढ़ंग से उन्हें दंडित करते है। मुझे नहीं पता कि यहां आकर आपको अपनी कहानी सुनाने के बाद जब मैं वापस चंपारण जाऊंगा तो मेरा क्या हाल होगा।[i]
रामकुमार शुक्ल की जिद्द
राजकुमार शुक्ल. बिहार के पश्चिमोत्तर इलाका चंपारण, जिसकी सीमाएं नेपाल से सटती हैं। वहां के समृद्ध किसान थे, यहां पूरे देश में बंगाल के अलावा नील की खेती होती थी। अंग्रेज सरकार ने हर बीघे खेत में तीन कट्ठे जमीन पर नील की खेती किसानों से करवाती थी। किसानों को नील के खेती से कोई मुनाफा नहीं होता था और अंग्रेजों ने किसानों पर तरह-तरह के अजीब से कर भी डाल रखे थे। राजकुमार शुक्ल ने इस शोषण व्यवस्था के खिलाफ पुरजोर विरोध किया, जिसके एवज में उन्हें भी अंग्रेजों के प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा।
जब काफी प्रयास के बाद भी कुछ नहीं हुआ तो बाल गंगाधर तिलक से मिले, पर तिलक को लगता था कि नील की खेती का मुद्दा उनके बड़े मुद्दे यानी ब्रिटिश शासन से मुक्ति के मुद्दे से एक विचलन साबित होगा। [ii] इसके बाद राज कुमार शुक्ल ने गांधीजी से मिले।
महात्मा गांधी अपनी आत्मकथा ”सत्य के प्रयोग“ में बताते है कि – लखनऊ कांग्रेस में जाने से पहले तक मैं चंपारण का नाम तक न जानता था। नील की खेती होती है, इसका तो ख्याल भी न के बराबर था। इसके कारण लाखॊं किसानों को कष्ट भोगना पड़ता है, इसकी कोई जानकारी नहीं थी। आगे महात्मा गांधी बताते है, ’राजकुमार शुक्ल नाम के चंपारण के किसान ने वहां मेरा पीछा पकड़ा। वकील बाबू(ब्रज किशोर प्रसाद, बिहार के उस समय के नामी वकील और जयप्रकाश नारायण के ससुर) आपको सब हाल बताएंगे, कहकर वे मेरा पीछा करते जाते और मुझे अपने यहां आने का निमंत्रण देते जाते।
महात्मा गांधी पहली मुलाकात में राजकुमार शुक्ल से प्रभावित नहीं हुए और उन्होंने राजकुमार शुक्ल को टाल दिया। लखनऊ से कानपुर रवाना हुए। शुक्लजी ने यहां भी गांधीजी का पीछा किया।
इस बार गांधीजी ने कहा- जब उन्हें समय मिलेगा तो वे वहां जरूर आएंगे। गांधीजी अब अहमदाबाद अपने आश्रम लौट गए, लेकिन वहां भी उन्हें राज कुमार शुक्ल मिलने पहुंच गए। अब गांधीजी के पास कोई चारा नहीं था, उन्होंने कहा कि वे अप्रैल में कलकत्ता जांएगे और फिर उसके बाद वे बिहार आ सकते हैं।[iii]
इसतरह राज कुमार शुक्ल ने गांधीजी से बात करके उनके बिहार आगमन को सुनिश्चित किया। राज कुमार शुक्ल सात अप्रैल 1917 को गांधीजी को बिहार ले जाने के लिए कलकता पहुंचकर डेरा डाल दिया था। जाहिर है यह कहना गलत नहीं होगा कि राज कुमार शुक्ल ही महात्मा गांधी के चंपारण आंदोलन के सूत्रधार थे।
गांधीजी की पहली बिहार यात्रा और चंपारण आंदोलन
महात्मा गांधी 10 अप्रैल 1917 को कलकत्ता से पटना पहुंचे और अगले दिन उत्तर बिहार के सबसे बड़े शहर मुजफ्फरपुर पहुंचे। जहां उनके स्वागत के लिए मुजफ्फरपुर के स्थानीय कांलेज में इतिहास पढ़ा रहे जेबी कृपलानी(कृपलानी से गांधीजी पहले शांतिनिकेतन में मिले चुके थे. यहीं जेबी कृपलानी बाद में कांग्रेस के अध्यक्ष भी हुए) और उनके छात्रों ने किया। यहीं महात्मा गांधी की पहली मुलाकात राजेन्द्र प्रसाद से हुई। यही पर उन्होंने राज्य के कई बड़े वकीलों और सामाजिक कार्यकताओं के सहयोग से आगे की रणनीति तय की।
13 अप्रैल को गांधीजी कमिश्रर एल.एफ.मौशेंड से मुकालात की जिन्होंने गांधीजी के चंपारण जाने की सूचना डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट को भेजकर गांधीजी को आपराधिक दंड संहिता की धारा 144 के तहत चंपारण से गाधीजी को निर्वासित कर दिया।[iv]
15 अप्रैल को चंपारण के धरती पर महात्मा गांधी ने कदम रखा और यहां राज कुमार शुक्ल जैसे कई किसानों ने भरपूर सहयोग दिया। पीड़ित किसानों के बयानों को समझा और भारत में महात्मा गांधी का पहला अहिंसक आंदोलन प्रारंभ हुआ। बाद में 135 सालों से चंपारण में की जा रही नील के खेती से नीलहे किसानों को शोषण से मुक्ति मिली।
चंपारण किसान आंदोलन भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में मिल का पत्थर बनकर उभरा और साथ ही साथ संघर्ष का मजबूत प्रतीक बनकर।
राज कुमार शुक्ल के जिद्दी धुन ने महात्म गांधी को चंपारण आने के लिए मजबूर कर दिया। परंतु, भारत के राजनीतिक इतिहास में राज कुमार शुक्ल गुम सा हो गया। इतिहास में खो गए राज कुमार शुक्ल को गुम हो गए इतिहास से याद करने की आवश्यकता है।
संदर्भ-स्त्रोत
[i] बी.बी.मिश्रा, संपादक, सेलेक्टेड डाक्यूमेंटस आंफ माहत्मा गांधीज मूवमेंट इन चंपारण, 1917-18(पटना: गर्वमेंट आंफ बिहार,1963) पेन न०- 54-55
[ii] रामचंद गुहा, गांधी 1914-31, खंड-1, अनुवाद, सुशांत झा, हिंद पाकेट बुक्स, पेंगुइन रैडम हाउस इम्प्रिंट, 2018
[iii] भैरव लाल दास, संपादक, गाधीजी के चंपारण आंदोलन के सूत्रधार राजकुमार शुक्ल की डायरी(दरंभगा: महराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउंडेशन, 2014)
[iv] बी.बी.मिश्रा, संपादक, सेलेक्टेड डाक्यूमेंटस आंफ माहत्मा गांधीज मूवमेंट इन चंपारण, 1917-18(पटना: गर्वमेंट आंफ बिहार,1963) पेन न०- 58-62
जे एन यू से मीडिया एंड जेंडर पर पीएचडी। दो बार लाडली मीडिया अवार्ड। स्वतंत्र लेखन।
संपादक- द क्रेडिबल हिस्ट्री