जब पटेल ने कहा ‘ नेहरू सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं के नायक ‘
[सरदार वल्लभभाई पटेल (1875-1950) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे महत्त्वपूर्ण नेताओं में थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में और बाद में एक एकीकृत व स्वतंत्र भारत के निमार्ण में महत्ती भूमिका निभाई। वह नेहरू कैबिनेट में देश के प्रथम गृहमंत्री और उप-प्रधानमंत्री थे। दोनों नेता-नेहरू और पटेल-अक्सर बहुत से मुद्दों पर असहमत हो जाते थे।
यह मतभेद निजी और सार्वजनिक दोनों तरह से अभिव्यक्त होता था। फिर भी दोनों लोग एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे और भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में एक-दूसरे के द्वारा किए गए योगदान को खुलकर सराहते-स्वीकारते थे। यह आलेख इसी बिन्दु को दर्शाता है।]
जवाहरलाल महान कृतित्व के भव्य इतिहास के खुली पोथी है
जवाहरलाल और मैं साथ-साथ कांग्रेस के सदस्य, आज़ादी के सिपाही, कांग्रेस की कार्यकारणी और अन्य समितियों के सहकर्मी, महात्मा जी के–जो दुर्भाग्य से हमें बड़ी जटिल समस्याओं के साथ जूझने को छोड़ गए हैं-अनुयायी और इस विशाल देश के शासन प्रबन्ध के गुरुतर भार के वाहक रहे हैं। इतने विभिन्न प्रकार के कर्मक्षेत्रों में साथ रहकर और एक-दूसरे को जानकर हममें परस्पर स्नेह होना स्वाभाविक था।
काल की गति के साथ यह स्नेह बढ़ता गया है और आज लोग कल्पना भी नहीं कर सकते कि जब हम अलग होते हैं और अपनी समस्याओं और कठिनाइयों का हल निकालने क एलिए उन पर मिलकर विचार नहीं करते, तो हमें यह दूरी कितनी खलती है।
परिचय की इस घनिष्ठता, आत्मीयता और भ्रातृतुल्य स्नेह के कारण मेरे लिए यह कठिन हो जाता है कि सर्व-साधारण के लिए उसकी समीक्षा उपस्थित कर सकूं। पर देश के आदर्श, जनता के नेता, राष्ट्र के प्रधानमंत्री और सबके के लाड़ले जवाहरलाल को, जिनके महान कृतित्व का भव्य इतिहास सबके सामने खुली पोथी–सा है, मेरे अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।
दृढ़ और निष्कपट यौद्धा की भांति उन्होंने विदेशी शासन से अनवरत युद्ध किया। युक्तप्रांत के किसान-आंदोलन के संगठन-कर्ता के रूप में पहली दीक्षा पाकर वह अहिंसात्मक युद्ध की कला और विज्ञान में पूरे निष्णात हो गए। उनकी भावनाओं की तीव्रता और अन्याय या उत्पीड़न के प्रति उनके विरोध के शीघ्र ही उन्हें गरीबी पर जिहाद बोलने के लिए बाध्य कर दिया।
दीन के प्रति सहज सहानुभूति के साथ उन्होंने निर्धन किसान की अवस्था सुधारने के आन्दोलन की आग में अपने को झोंक दिया। क्रमश: उच्च के उच्चतर शिखरों पर पहुँचा दिया है। पत्नी की बीमारी के कारण की गई विदेश-यात्रा ने भारतीय राष्ट्रवाद-सम्बन्धी उनकी भावनाओं को एक आकशीय अन्तराष्ट्रीय तल पर पहुँचा दिया।
यह उनके जीवन और चरित्र के उस अन्तर्राष्ट्रीय झुकाव का प्रारंभ था जो अन्तर्राष्ट्रीय अथवा विश्व-समस्याओं के प्रति उनके रवैये में स्पष्ट लक्षित होता है। उस समय से जवाहरलाल ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा; भारत में भी और बाहर भी उनका महत्त्व बढ़ता ही गया है। उनकी वैचारिक निष्ठा, उदार प्रवृत्ति, पैनी दृष्टि और भावनाओं की सचाई के प्रति देश और विदेशों की लाख-लाख जनता ने श्रद्धांजलि अर्पित की है।
उत्तरदायित्व के भार के कारण जवाहरलाल को बड़ी तेजी के साथ बूढ़े होते देखा है
अतएव यह उचित ही था कि स्वतंत्र उषा से पहले के गहन अन्धकार में वह हमारी मार्गदर्शक ज्योंति बनें और स्वाधीनता मिलते ही जब भारत के आगे संकट पर संकट आ रहा हो तब हमारे विश्वास की धुरी हों और हमारे जनता का नेतृत्व करें। हमारे नये जीवन के पिछले दो कठिन वर्षों में उन्होंने देश के लिए जो अथक परिश्रम किया है, उसे मुझसे अधिक अच्छी तरह से कोई नहीं जानता।
मैंने इस अवधि में उन्हें अपने उच्च पद की चिन्ताओं और अपने गुरुतर उत्तरदायित्व के भार के कारण बड़ी तेजी के साथ बूढ़े होते देखा है। शरणार्थियों के सेवा में उन्होंने कोई कसर नहीं उठा रखी और उनमें से कोई कदाचित ही उनके पास से निराश लौटा हो।
कामनवेल्थ की मंत्रणाओं में उन्होंने उल्लेखनीय भाग लिया है और संसार के मंच पर भी उनका कृतित्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रहा है। किन्तु इस सबके बावजूद उनके चेहरे पर जवानी की पुरानी रौनक कायम है और वह सन्तुलन, मर्यादा-ज्ञान और धैर्य, मिलनसारी, जो आन्तरिक संयम और बौद्धिक अनुशासन का परिचय देते हैं, अब भी ज्यों के त्यों हैं।
निस्सन्देह उनका रोष कभी-कभी फूट पड़ता है, किन्तु उनका अधैर्य, क्योंकि न्याय और कार्य-तत्परता के लिए होता है और अन्याय को सहन नहीं करता, इसलिए यह वस्फोट प्रेरणा देनेवाले ही होते हैं और मामलों को तेजी तथा परिश्रम के साथ सुलझाने में मदद देते हैं। ये मानो सुरक्षित शक्ति है, जिसकी कुमुक से आलस्य, दीर्घसूत्रता और लगन या तत्परता की कमी पर विजय प्राप्त हो जाती है।
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कुछ स्वार्थ-प्रेरित लोगों ने हमारे बीच भ्रान्तियाँ फैलाई
आयु में बड़े होने के नाते मुझे कई बार उन्हें उन समस्याओं पर परामर्श देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है जो शासन-प्रबन्ध या संगठन के क्षेत्र में हम दोनों के सामने आती रही है। मैंने सदैव उन्हें सलाह लेने को तत्पर और मानने को राजी पाया है।
कुछ स्वार्थ-प्रेरित लोगों ने हमारे विषय में यह भ्रान्तियाँ फैलाने में यत्न किया है और कुछ भोले व्यक्ति उनपर विश्वास भी कर लेते हैं, किन्तु वास्तव में हम लोग आजीवन सहकारियों और बन्धुओं की भांति साथ काम करते रहे हैं और एक-दूसरे के मतामत का सर्वदा सम्मान किया है जैसा कि गहरा विश्वास होने पर ही किया जा सकता है।
उनके मनोभाव युवा उत्साह से लेकर प्रौढ़ गम्भीरता तक बराबर बदलते रहते हैं और उनमें वह मानसिक लचीलापन है जो दूसरे को झेल भी लेता है और निरुत्तर भी कर देता है। क्रीड़ारत बच्चों में और विचार-संलग्न बूढ़ो में जवाहरलाल समान भाव से भागी हो जाते हैं। यह लचीलापन और बहुमुखता ही उनके अजस्त्र यौवन का, उनकी अदभुद स्फूर्ति और ताजगी का रहस्य है।
उनकी महान और उज्ज्वल व्यक्तित्व के साथ इन थोड़े-से शब्दों में न्याय नहीं किया जा सकता। उनके चरित्र और कृतित्व का बहुमुखी प्रसार अंकन से परे हैं। उनके विचारों में कभी-कभी गहराई होती है जिसका तल न मिले; किन्तु उनके नीचे सर्वदा एक निर्मल पारदर्शी खरापन और यौवन की तेजस्विता रहती हैं और इन गुणों के कारण सर्वसमान्य-जाति धर्म देश की सीमाएँ पार कर-उनसे स्नेह करते हैं।
स्वाधीन भारत की इस अमूल्य निधि का हम आज, उनकी हीरक जयन्ती के अवसर पर अभिन्नदन करते हैं। देश की सेवा में और आदर्शो की साधना में वह निरन्तर नई विजय प्राप्त करते रहें।
14 अक्टूबर 1949
वल्लभभाई पटेल
संदर्भ
नेहरू अभिनंदन ग्रंथ से, 14 अक्टूबर 1949