स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रीयकरण क्यों जरूरी है – राजकुमरी अमृत कौर
राजकुमारी अमृत कौर (1889-1964) भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री और महिलाओं के हित की निरंतर समर्थक थीं। वह अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के संस्थापक, जिसके बारे में उनका तर्क था कि उसे स्वायत्त रहना चाहिए। राजकुमारी अमृत कौर महिलाओं के मतदान के अधिकार के लिए अग्रणी प्रचारक, खेल प्रेमी थीं। वह स्वतंत्रता आंदोलन में उभरी महान महिलाओं में से एक थीं।
वह महिलाओं की शिक्षा, खेल में उनकी भागीदारी (वह एक टेनिस उत्साही थीं, जिन्हें एक घंटे के टेनिस के बदले गांधीजी से एक घंटे की कताई के लिए बातचीत करनी पड़ती थी) और उनकी स्वास्थ्य देखभाल में दृढ़ विश्वास था। उन्होंने भारतीय तपेदिक एसोसिएशन, सेंट्रल लेप्रोसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की, लीग ऑफ रेड क्रॉस सोसाइटीज़ के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की उपाध्यक्ष और सेंट जॉन्स एम्बुलेंस सोसाइटी की कार्यकारी समिति की अध्यक्ष थीं।
जब लोकसभा में उठा स्वास्थ्य सेवाओं के राष्ट्रीयकरण का सवाल
भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की संस्थापक सदस्य भी थीं और उन्होंने पटियाला में राष्ट्रीय खेल संस्थान की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह एक टीम लीडर थीं, जो एम्स के लिए न्यूजीलैंड और स्वीडन जैसे विविध देशों से धन जुटाने में सक्षम थीं। लोकसभा में देश स्वास्थ्य सेवाओं के राष्ट्रीयकरण के सवाल पर राजकुमारी अमृत कौर ने कहा-
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की अपर्याप्तता के बारे में काफी कुछ कहा जा चुका है। मुझे यह बताया गया है कि जब तक आर्थिक समस्या का समाधान नहीं होता, तब तक कुछ नहीं किया जा सकता। मनुष्य के प्रयास की भी कुछ सीमाएं होती हैं। इसलिए मैं अपने माननीय विपक्षी मित्र की इस बात से सहमत हूं कि शहरी लोगों को या अन्य देशों में जो यथासंभव सुविधाएं दी जा सकती हैं, वे ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं दी जा सकतीं।
धनाभाव के कारण हमें भिन्न-भिन्न मानदंड रखने पड़ते हैं। मैंने सदैव निवारक पहलू पर सर्वाधिक जोर दिया है। मेरे विचार में ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सहायता तथा राहत के लिए चल औषधालयों तथा छोटे अस्पतालों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
डाक्टरों को पर्याप्त वेतन मिलना ही चाहिए
मैं यह भी जानती हूं कि डाक्टरों को ग्रामीण क्षेत्रों में बसाने में कठिनाई होती है। किसी डाक्टर से बहुत कम मासिक तनख्वाह पर ग्रामीण क्षेत्रों में जाने की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? मुझे इस बारे में कोई संदेश नहीं है कि छोटे अस्पताल बनाए जाने चाहिए और यह कि चल अस्पतालों का अधिकाधिक उपयोग होना चाहिए और सरकारी सेवा में निजी प्रैक्टिस न करने वाले, किंतु अच्छी तनख्वाह पाने वाले डाक्टर होने चाहिए। जब तक डाक्टरों को पर्याप्त वेतन नहीं दिया जाता, तब तक अच्छे डाक्टर नहीं मिल सकते और न अच्छा कार्य हो सकता है। हमें किसी के लिए भी असंभव सेवा शर्ते नहीं बनानी चाहिए।
पिछले से पिछले वर्ष जब मैं ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री से बात कर रही थी तो उन्होंने कहा था कि यदि हम इस रूपरेखा को लेकर कार्य करें तो हमें निश्चित रूप से कठिनाई होगी क्योंकि चिकित्सा व्यवसाय में हर जगह निहित स्वार्थ हैं।हमें उसका मुकाबला करना होगा। निहित स्वार्थ को हटाना होगा क्योंकि जनकल्याण की बात पहले आती है। मेरा विश्वास है कि हमें अपनी स्वास्थ्य सेवाओं का राष्ट्रीयकरण करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति स्वास्थ्य सेवा के लिए कुछ-न-कुछ योगदान कर सकता है।
सदस्यों ने और अधिक डाक्टरों की बात की है। मेरी सी अधिकारिक डाक्टर बनाने में रुचि नहीं है, जो शहरों में ही रहें और गांवों में न जाएं। मेरी रुचि उनमें है कि स्वयं ग्रामीणों में से ही लोग चिकित्सा सहायक तथा नर्सिग सहायक के रूप में प्रशिक्षित किए जाएं जो डाक्टरों के अनुदेशों को क्रियान्वित करेंगे जो काफी शिक्षित होंगे और यह सुनिश्चित करने के लिए काफी प्रशिक्षित होंगे कि डाक्टर द्वारा निर्देशित समस्त सेवा लोगों को उपलब्ध कराई जाए।
मेरा विश्वास है कि स्वास्थ्य की विशाल समस्या को हल करने का यह सही तरीका है। समस्या का समाधान हमारे अपने अपने ही हाथों में ही है। और मैं उनमें से नहीं हूं जो अपने लोगों की प्रतिभा और परंपरा के विरुद्ध जा रहे है। हम सभी स्वस्थ्य राष्ट चाहते हैं। हम स्वस्थ्य बच्चे और स्वस्थ युवक चाहते है।
जब हमारे यहां के लोग कमजोर होंगे और बीमारियों से मर रहे होंगे, तो इस देश में कोई उत्पादन नहीं हो सकता। इस देश में कोई विकास नहीं हो सकता। मुझे अपनी सामुदायिक परियोजानों से काफी आशाएं हैं, जिसमें गांवों के लिए समुचित योजनाएं होगी, जिससे कि स्वास्थ्य की परिस्थितियां, नालियों की व्यवस्था, मल-जल-निकास व्यवस्था, शौचालयों को सुधारा जा सके और ग्रामीणों को वह सारी चीजें उपलब्ध कराई जानी चाहिए जिससे कि स्वास्थ्य और जीवन स्तर में सुधार हो सके।
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संदर्भ
1 जुलाई 1952 को लोकसभा में दिया गया उनके भाषण का अंश
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