वो साल था तिरासी –गयाना के मैदान पर होली के दिन दीवाली
[1983 यानी वह साल जब भारत पहली बार एकदिवसीय क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीत के लाया था। वह भी तब जब किसी को इसकी कोई उम्मीद नहीं थी। विशि सिन्हा उस जीत के बहाने क्रिकेट के उस दौर को याद कर रहे हैं। पढ़िए दूसरी कड़ी।]
दर्शकों के लिए सीट भी नहीं थी
आज भारत में होली का त्यौहार मनाया जा रहा था. कोई सौ बरस पहले भारतीय मूल के कुछ लोग गयाना आ बसे थे, वे आज गयाना में रंगों के इस त्यौहार को मना रहे थे. गयाना के बर्बिस स्थित एल्बायन स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में आज भारतीय टीम इस दौरे का दूसरा एकदिवसीय मैच वेस्ट इंडीज़ से खेलने जा रही थी. बर्बिस को गयाना का ‘शुगर बेल्ट’ भी कहते हैं. एल्बायन में हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मैच आयोजित होने शुरू हुए थे – छः वर्ष पूर्व पाकिस्तान और दो वर्ष पूर्व इंग्लैंड की टीमें यहाँ खेल चुकी थी.
मैच से पूर्व दोनों टीमों के खिलाड़ी हेलीकॉप्टर से यहाँ पहुँचे. मैच के बाद उन्हें पुनः हेलीकॉप्टर से ही त्रिनिदाद लौट जाना था. एल्बायन एक कस्बा हुआ करता था, जिसकी बहुसंख्य जनसंख्या भारतीय मूल की थी. सो भारतीय टीम का मैच देखने करीब पंद्रह हजार दर्शक आ गए. दर्शकों के लिए अस्थाई बेंच बनाई गई थी, जो इतनी बड़ी तादाद में आये दर्शकों के लिए ऊँट के मुंह में जीरा सरीखी थी. लेकिन दर्शकों को खड़े रहकर मैच देखने में भी कोई ऐतराज नहीं था.
बेजान पिच घायल गार्नर जोश में भारत
उपलब्ध समय में सिर्फ 47 – 47 ओवर का ही मैच संभव था.
चोटिल होने की वजह से जोएल गार्नर आज के मैच में नहीं खेल सकते थे लिहाज़ा उनकी जगह नवोदित पेसर विंस्टन डेविस को पदार्पण का मौक़ा मिल रहा था. गयाना में ही जन्में और पले-बढ़े विंडीज़ कप्तान क्लाइव लॉयड की अनुभवी नज़रों से धीमी-बेजान पिच छिपी न रह सकी थी, फिर भी उन्हें अपने तेज गेंदबाजों पर भरोसा था कि कैसी भी पिच हो, वे प्रतिपक्षी बैटिंग लाइन-अप को तहस -नहस कर देने में सक्षम हैं. लिहाजा टॉस जीतकर उन्होंने भारतीय टीम को बैटिंग करने का न्योता दिया.
उधर पोर्ट ऑफ़ स्पेन टेस्ट में स्पर्धात्मक प्रदर्शन के बाद भारतीय टीम में एक नई ऊर्जा का संचार हुआ था.
उत्साह में था गावस्कर का प्रशंसक
एल्बायन स्टेडियम में मौजूद दर्शकों में पोर्ट ऑफ़ स्पेन से आया मोहम्मद भी शामिल था. उसे उम्मीद थी कि इस सीरीज में अब तक खामोश चल रहे सनी के बल्ले को यहाँ बातें करते देखने को मिलेगा. और इस बार उसे निराश नहीं लौटना पड़ा. नॉन-स्ट्राइकर एंड पर रवि शास्त्री पहली बार टीम की ओपनिंग करने जा रहे थे. हमेशा की तरह गेंदबाजी की शुरुआत करने जा रहे थे माइकल होल्डिंग .
सामना करने जा रहे सनी को कुछ याद आया. 1976 के पोर्ट ऑफ़ स्पेन टेस्ट की चौथी पारी में भारतीय टीम ने इतिहास में सबसे बड़े लक्ष्य – 406- को हासिल कर विंडीज़ को पराजित किया था.उसके बाद सीरीज केआखिरी – किंग्स्टन – टेस्ट में क्लाइव लॉयड के निर्देश पर विंडीज़ तेज गेंदबाजों ने शरीर को लक्ष्य बना शॉर्ट पिच बाउंसर गेंदों की बौछार कर दी.
हालात ऐसे हुए कि दूसरी पारी में भारतीय टीम के पाँच विकेट गिरने पर, सिर्फ 12 रनों की लीड पर पारी घोषित करनी पड़ी, क्योंकि उस टेस्ट में पाँच भारतीय खिलाड़ी अस्पताल में भर्ती करने पड़े थे जिनमें टीम के तीन प्रमुख बल्लेबाज थे – गुंडप्पा विश्वनाथ, अंशुमान गायकवाड और बृजेश पटेल. इनकी चोटों के लिए मुख्यरूप से जिम्मेदार थे माइकल होल्डिंग, जिन्हें अम्पायर डिकी बर्ड ने ‘व्हिस्परिंग डेथ’ यूं ही नहीं कहा था.
‘व्हिस्परिंग डेथ’ ने आज के मैच की पहली गेंद डाली और सनी ने चौका जड़ दिया. कुछ तो नया हुआ था आज एल्बायन में. होल्डिंग ने चार ओवर के शुरूआती स्पेल में 28 रन लुटाये.
शतक से चूके सनी
दोनों बम्बईया ओपनर्स ने पहले विकेट के लिए 93 रन जोड़े. रवि शास्त्री 30 रन बनाकर मैल्कम मार्शल का शिकार बने. उधर तेजी से रन बनाते हुए सनी नाइंटीज़ में पहुँच गए. टेस्ट मैचों में 26 शतक जड़ चुके सनी क्या एकदिवसीय मैचों में शतक जड़ने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन सकेंगे? अफ़सोस! वो रन आउट हो गए 90 के ही स्कोर पर. पैवेलियन वापस लौटते समय सनी का दर्शकों ने तालियाँ बजाकर अभिनन्दन किया.
कपिल का कमाल
ये क्या? कप्तान कपिल देव चौथे नंबर पर खुद बल्लेबाजी करने उतर रहे हैं. पांचवें गेंदबाज के रूप में अंशकालिक स्पिनर्स गोम्स और रिचर्ड्स बीच के ओवर कर रहे हैं तो संभवतः इस मौके को भुनाने के लिए कपिल ने यह निर्णय लिया. और क्या खूब फला ये निर्णय. कपिल ने केवल 22 गेंदों पर अर्ध-शतक जड़ दिया – एकदिवसीय मैचों में तब तक का दूसरा सबसे तेज अर्ध-शतक.
महीना भर पूर्व ही न्यूजीलैंड के लांस केयर्न्स ने सबसे तेज अर्ध-शतक लगाया था – ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मेलबर्न में सिर्फ 21गेंदों पर. अर्ध-शतक के बाद भी कपिल का चौके-छक्के लगाकर विध्वंस करना जारी रहा. एंडी रॉबर्ट्स ने कपिल देव को आखिरकार जब बोल्ड किया तो कपिल सात चौकों और तीन छक्कों के साथ 38 गेंदों पर 72 रन बना चुके थे. एकदिवसीय क्रिकेट के बारह वर्षों के इतिहास में इतनी विध्वंसक पारी शायद ही देखने को मिली थी.
कर्नल का छक्का और स्कोर ढाई सौ पार
लेकिन वेस्ट इंडीज़ की राहत वक्ती साबित हुई.
कपिल की जगह क्रीज़ पर आये दिलीप ‘कर्नल’ वेंगसरकर ने भी विंस्टन डेविस को छक्का जड़ दिया. जिमी ने 30 और यशपाल शर्मा ने 23 की उपयोगी पारियां खेली और कर्नल 18 रन पर नाबाद लौटे. निर्धारित 47 ओवर की समाप्ति पर स्कोरबोर्ड भारतीय टीम का स्कोर बता रहा था – 282/5, जो तब तक एकदिवसीय मैचों में भारतीय टीम का सर्वाधिक स्कोर था.
लेकिन बड़ी बात ये थी कि बारह वर्षों के एकदिवसीय इतिहास में विश्वविजेता वेस्टइंडीज़ टीम के खिलाफ स्कोरबोर्ड पर इतने रन कोई टीम नहीं टांग सकी थी.
पहला विकेट संधू को फिर 62/3
वेस्टइंडीज़ के ओपनर्स ग्रीनिज़ और हेन्स पारी की शुरुआत करने उतरे. कपिल ने सन्धू से कहा – “इनमें से एक ओपनर को आउट करो और बाक़ी मुझ पर छोड़ दो.”
सन्धू की अन्दर आती गेंद पर हेन्स पगबाधा आउट हुए. थोड़ी देर बाद कपिल ने अपनी गेंद पर ग्रीनिज़ का मुश्किल रिटर्न कैच लपका – हालांकि इस प्रयास में उनके अंगूठे, बाजू और कंधे पर चोट लगी. कुछ ओवर बाद मदनलाल की गेंद पर क्लाइव लॉयड अमरनाथ के हाथों कैच कर लिए गए. स्कोर हो गया 62/3. भारतीय टीम अब उम्मीद बांधने लगी थी.
रिचर्ड्स के इरादे कुछ और थे
लेकिन क्रीज़ पर मौजूद मास्टर ब्लास्टर – विवियन एलेग्जेंडर रिचर्ड्स – के प्लान कुछ और ही थे.
उन्होंने भारतीय आक्रमण की बखिया उधेड़कर रख दी. देखते-देखते रिचर्ड्स अर्ध-शतक बना चुके थे. जिस आक्रामक तरीके से रिचर्ड्स खेल रहे थे, ऐसा प्रतीत होता था वे मैच को दस ओवर शेष रहते ही ख़त्म कर देने के ख्वाहिशमन्द थे. इसी बीच मदनलाल की बाहर की ओर जाती प्रतीत हो रही एक गेंद अन्दर की ओर आई और रिचर्ड्स कुछ समझ पाते, इससे पहले उनके स्टंप्स बिखेर गई.
सिर्फ 51 गेंदों पर 11 चौकों और एक छक्के की मदद से 64 रन बना चुके रिचर्ड्स का ये विकेट भारतीय टीम के लिए दिन का सबसे कीमती विकेट था.
आखिर में मिली जीत
खेल अभी ख़त्म नहीं हुआ था. फाउद बेकस और लैरी गोम्स ने अगले विकेट के लिए अर्ध-शतकीय साझेदारी की. लेकिन रवि शास्त्री ने पहले गोम्स को और फिर अर्ध-शतक लगा चुके फाउद बेकस को आउट कर मैच पर भारतीय टीम की पकड़ ढीली नहीं पड़ने दी. कीपर जेफ़ दूजों एक छोर से रन बनाते रहे लेकिन दूसरे छोर पर विकेट नियमित अंतराल पर गिरते रहे.
आखिरकार दूजों के अविजित अर्ध-शतक (53*) के बावजूद विंडीज़ टीम निर्धारित 47 ओवर में 255 रन ही जुटा सकी. भारतीय टीम 27 रनों से मैच जीत गई. 38 गेंदों पर 72 रन की विस्फोटक पारी के अलावा दो विकेट और दो कैच लेने के कारण कपिल देव को ‘मैन ऑफ़ द मैच’ घोषित किया गया.
वेस्टइंडीज़ की टीम को पहली बार एकदिवसीय मैचों में भारतीय टीम ने शिक़स्त दिया था, वो भी उन्ही के घरेलू मैदान पर. दो बार की विश्वविजेता वेस्टइंडीज़ के अभेद्य माने जाने वाले कवच में दरार ढूंढ ली गई थी. अगला विश्वकप मुश्किल से ढाई महीने बाद था
पहली क़िस्त : वो साल था तिरासी – उभरना कपिल देव का क्रिकेट के आकाश पर
तीसरी कल इसी समय
विश्वरंजन हैं तो क़ानून के प्रोफेशनल लेकिन मन रमता है खेलों और क्राइम फिक्शन में। कई किताबें लिखी हैं और ढेरों लेख।