सआदत खां जिन्होंने 1857 में इन्दौर को आज़ाद कराया था
भारत देश का हैसियदार व्यक्ति हो या साधारण, देश की आज़ादी का जज़्बा सभी के मन में पल रहा था। उसमें न तो उम्र की कोई पाबन्दी थी और न ही धर्म या ज़ात का कोई बन्धन। प्रत्येक भारतवासी अपने देश से फ़िरंगी दरिन्दगी, हैवानियत, पक्षपात और लूटमार को ख़त्म करना चाहता था। सआदत ख़ां भी उन्हीं देश प्रेमियों में से एक थे, जिन्होंने आज़ादी के संघर्ष में हिस्सा लेकर फांसी की सज़ा पाई।
तुकोजी राव होल्कर के तोपची सआदत ख़ां
जोधपुर और दिल्ली के बीच मेवात के इलाक़े में एक ख़ूबसूरत नौजवान सआदत खां वैसे तो रोज़गार के तलाश में इन्दौर पहुँचे, परन्तु कुदरत को उनसे देश सेवा का बड़ा काम लेना था। सआदत खां एक होनहार सपूत होने साथ-साथ कई प्रतिभाओं के मालिक थे।
सआदत खां एक माहिर घुड़सवार और शानदार तौपची थे।उन्हें इन्दौर में तुकोजी राव होल्कर (द्वितीय) के शासन में तोप ख़ाने में प्रमुख तोपची के पद पर नौकरी मिल गई थी। सआदत खां को सआदत खां मेवाती भी कहा जाता है।
उस दौर में राजा और प्रजा के बीच नज़दीकियाँ होती थी। राजा या नवाब विशेषकर अपनी सेना के महत्त्वपूर्ण ओहदों पर पदस्थ सैनिकों के बारे में जानरी रखता ही था, तुकोजी राव अपने प्रमुख तोपची सआदत खां की ईमानदारी और वफादारी से बहुत प्रभावित थे।
सआदत खां अपने राजा के प्रति वफादार थे, वे देश प्रेमी भी थे। वह मन ही मन में देश को अंग्रेजों की ग़ुलामी से छुटकारा दिलाने की योजनाएँ बनाते रहते थे। उन्हें कोई ऐसा मौका नज़र नहीं आ रहा था कि वह अपनी योजनाओं के अनुरूप कोई कार्य कर सकें।
समय गुज़रता रहा, देश प्रेमी अपने स्तर से और एक साथ मिलकर भी अंग्रेजों के ख़िलाफ आवाज़ उठाते रहे। सज़ाएँ झेलते रहे। यहाँ तक कि देशवासियों का सब्र और सहनशक्ति का बाँध 1857 के स्वतंत्रता संघर्ष में फूट पड़ा। यह वही मौका था जिसका सआदत खां को इन्तिजार था। सआदत खां ने देशप्रेम में इस समय में खामोश होना स्वीकार्य नहीं किया।
1857 की ग़दर में सआदत ख़ां ने कराया इंदौर को आज़ाद
18 जून 1857 को इन्दौर में भी क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आज़ादी के संघर्ष की कार्यवाही शुरू कर दी। इन्दौर के क्रान्तिकारियों का नेतृत्व स़आदत खां द्वारा किया गया। वारिस मुहम्मद खां भोपाली, मौलवी असद, रहमतुल्ल्ताह, जमादार शेर खां, हवलदार दुर्गादास और तोपख़ाने का जमादार मुहम्मद अली ने प्रमुख तोपची सआदत खां से मिलकर अंग्रेजों को घेरने की योजना बनाई।
सआदत खां एक फ़ौजी अधिकारी वंशगोपाल के साथ अपने राजा तुकोरावजी होल्कर से भेंट के लिए पहुँच गए। उन्होंने आज़ादी के संघर्ष में शामिल होने के लिए राजा को अपनी योजनाएँ बताई। सेना सहित स्वयं भी इस संघर्ष में भाग लेने की उन्होंने अनुमति चाही।
तुकोजी राव भी आन्दोलनकारियों से हमदर्दी रखते थे इस कारण वह भी सहमत नज़र आए। सआदत खां के देश प्रेम के जोश को राजा साहिब का इशारा ही काफ़ी था। इतने पर ही वह आज़ादी की लड़ाई के लिए मैदान में कूद पड़े।
सआदत खां ने सैनिकों को इकठ्ठा किया और कहा- ‘तैयार हो जाओ सभी। आगे बढ़ो। अंग्रेजों को मार डालो। यह महराजा का हुक्म है।’ कर्नल ड्यूरेन्ड रेज़ीडेंट पर हमला करने के लिए रेज़ीडेंसी पहुँच गए। उसे चारों ओर से घेर लिया। उन दिना वहाँ कर्नल ट्रेवर्स भी मौजूद थे।
विद्रोहियों के तेवर देखकर रेज़ीडेट ड्यूरेन्ड समझ गया अब जान बचाना मुश्किल है। उसने अपनी जान बचाने के लिए रेज़ीडेंसी के दरवाज़े पर पहुँचकर आन्दोलनकारियों से चापलूसी की बातें करनी शुरू कर दीं। सआदत खां उसकी बातों को ताड़ गए। वह समझते थे कि अंग्रेजों से बदला लेने का यह अच्छा मौका मिला है।
उन्होंने उस अवसर को ग़नीमत जानकर ड्यूरेन्ड की मक्कारी की बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपने राइफल से उस पर गोली दाग दी। जिसने ड्यूरेन्ड का एक कान और गाल का कुछ भाग उड़ गया। वह घायल हालत में भागकर कहीं छुप गया। फिर क्या था, इन्दौर में विद्रोह और भी ज्यादा भड़क उठा।
सआदत खां को कि क्रान्तिकारियों के नेता थे उन्होंने भी अपने तोपखाने को गोले बरसाने के आदेश दे दिये। गोलाबारी में कई अंग्रेज मौत के घाट उतर गए। ड्यूरेन्ड यह हाल देखकर अपने परिवार के साथ भाग खड़ा हुआ। वह छिपते-छिपते सिहोर जा पहुँचा। विद्रोहियों ने मैदान साफ देखकर लूट-पाट शुरू कर दी।
अंग्रेजों के बंगलों में तोड़-फोड़ मचा दी। अंग्रेजी सेना के समान तोप, गोले बारुद, सरकारी घोड़े, हाथी आदि सब अपने कब्जे में ले लिया। रेज़ीडेंसी की कोठी पर भी विद्रोहियों का कब्जा हो गया। आन्दोलनकारियों ने ख़जाने में रखें लाखों रूपये लूट कर अपने कब्जे में ले लिया।
इस तरह अंग्रेजों और अंग्रेज शासन का विद्रोहियों द्वारा भारी नुकसान किया गया। 1 जुलाई 1857 को सुबह इंदौर को आज़ाद करा लिया गया।
फतेह मंसूर के नाम से याद किये जाते है सआदत ख़ां
विद्रोहियों के हौसले बुलन्द थे। वह लूट के सामान के साथ 4 जुलाई 1857 को अंग्रेजों के मुक़ाबले के लिए देवास की ओर बढ़े। विद्रोहियों का यह उत्साह और फ़िरंगियों का खून-खराबा और लूट-मार बहुत लंबे समय तक नहीं चल सका। अंग्रेजों ने अपनी चालबाजियों से सहायता प्राप्त करके धीरे-धीरे स्वतन्त्रता संघर्ष को काबू में ले लिया।
इसके बाद इन्दौर में भी गिरफ्तारियों का सिलसिला शुरू हुआ। सआदत खां अंग्रेजों के हाथ नहीं लग सके। वह भूमिगत होकर जीवन गुज़ारने लगे। वह छुपकर एक छोटी-सी नौकरी कर अपना गुजारा कर रहे थे।अंग्रेजों ने वीर सआदत खां पर इनाम का एलान कर रखा था। सआदत खां अलवर में अकबर खान के नाम से साढ़े सोलह साल तक छिपते रहे।
उनके ही एक रिश्तेदार ने इनाम के लालच में आकर ग़द्दारी कर दी। उसकी मुखबिरी पर सआदत खां को लगभग बीस वर्ष के बाद 1877 में झालावाड़ा में गिरफ्तार कर लिया गया। जिस वक्त सआदत खां को गिरफ्तार किया गया, उनका अंत भी वैसे ही हुआ जैसे विद्रोह के बाकी वीर सिपाहियों का हुआ था।
अंग्रेजों द्वारा उन्हें गिरफ्तार करके इन्दौर ही लाया गया। उनपर मुकदमा चलाया गया। उन्होंने न ही माफ़ी मांगी, न ही अपने किए पर कोई दुख प्रकट किया। आखिरकार फ़िरंगी अदालत ने उन्हें मौत की सज़ा सुना कर फांसी पर लटका दिया गया, 1 अक्टूबर 1877 की सुबह उनको फांसी के फंदे पर लटका कर शहीद कर दिया गया।
सआदत खां को इन्दौर रेज़ीडेंसी में ही दफ़ना दिया गया। जहाँ आज उनका एक स्मारक बना हुआ है, फतेह मंसूर अर्थात दुश्मनों का सामना करने वाल तोप वह आज भी वहाँ पर मौजूद है।
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