शैख़ रज़ब अली, जिनकी शहादत को भुला दिया गया
औपनिवेशिक हिन्दस्तान में शायद ही कोई ऐसा दिल रहा होगा जिसको ग़ुलामी का अँधेरा रास आता होगा। वैसे तो प्रत्येक हिन्दुस्तानी दिल में, चाहे वह शैख़ का हो या ब्राह्मण का, पठान का हो या राजपूत का, हिन्दू का हो या मुसलमान का सभी के दिलों में आज़ादी की शामें रौशन थीं। देश प्रेमी दिलों में आज़ादी की रौशनी ज्योति की तपिश ने ग़ुलामी की मोटी-मोटी बेड़ियों को पिघला कर रख दिया। इस तरह भारत ने ग़ुलामी की लानत से छुटकारा पाकर आज़ादी की नेमत को हासिल किया।
महान एंव प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों के सम्बंध में तो लोग कुछ न कुछ जानते ही हैं, लेकिन वतन के गुमनाम शहीदों के कारनामें तो दूर की बात है, उनके नाम से भी कोई परिचित नहीं है। स्वतंत्रता सेनानी शै़ख रजब अली, उन स्वतंत्रता सेनानियों में है, जिनको भुलाया जा चुका है।
बचपन से ही देश को आज़ाद कराने के लिए जागरूक थे शैख़ रज़ब अली
शैख़ रज़ब अली, जिला आज़मगढ़ मुहम्मदाबाद तहसील, ग्राम बहौर के निवासी थे। देश के बेहद ग्रामीण इलाके में शैख़ रज़ब अली ने जन्म लिया और बचपन से ही देश को आज़ाद कराने जागरूकता मौजूद थी। शैख़ रज़ब अली भारत देश के एक छोटे से गाँव के गुमनाम शहीदे वतन थे, जिन्होंने भारत देश की आज़ादी की 1857 की लड़ाई में अपनी वीरता के कारनामें दिखाए।
उनके साथी शैख़ मुब्बन, शैख़ बचई और ठाकुर परगन सिंह ने आस-पास के कई गांवों में घूम-घूम कर इन्क़लाबियों को जमा किया। आजमगढ़ के आस-पास के इलाकों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध शैख़ रज़ब अली का संगठन काफी सक्रिय था।
उनके दिलों में आज़ादी की ज्योंति को रोशन किया और लोगों को देश की आज़ादी पर मर मिटने के लिए तैयार किया। इसका नतीजा यह हुआ कि उन सभी सरफ़रोशों ने अपने-अपने क्षेत्र में क्रांति के आन्दोंलनों में भाग लेकर अंग्रेजों में हड़कंप मचा दी।
फ़िरंगी यह समझने लगे कि ज़िला आज़मगढ़ में भी उन्हें दमन चक्र की नीति लागू करनी पड़ेगी। योजना के तहत अंग्रेजों ने विद्रोहियों पर बल का प्रयोग शुरू कर दिया।
शैख़ रजब अली ने गिरफ्तार हुए साथियों को हवालात तोड़कर किया आज़ाद
मिस्टर बेनीबुल्स ने शैख़ रजब अली के बहुत से साथियों को गिरफ्तार कर लिया। उस समय साथियों की गिरफ्तारीयों के कारण शैख़ रजब अली चिन्ता में पड़ गए। हालांकि वह पहले से ही समझते थे कि ताक़तवर अंग्रेजों के ख़िलाफ़ विद्रोह का नतीजा तो यह होना ही था। रजब अली ने अपने अन्य साथियों की हिम्मत बंधाई। उन्होंने अगला कदम उठाने के लिए आपस में सोच-विचार किया।
कुछ समय बाद स्वतंत्रता सेनानी रजब अली ने अपने साथियों शैख़ मुब्बन, शैख़ बचई, चमरू, इज़्ज़त आदि के साथ आज़मगढ़ की कोतवाली पर ज़ोरदार हमला कर दिया। उन्होंने हवालात का ताला तोड़कर उसमें बंद विद्रोहियों को रिहा कराने का बड़ा कारनामा अंजाम दे डाला। मिस्टर बेनीबुल्स तमाम कोशिश के बाद उनको दुबारा पकड़ने में असफल रहा।
अंग्रेज शासन के लिए यह बड़ी चुनौती थी। ब्रिटिश अधिकारियों के गुस्से का पारा सीमाओं के पार कर गया। इस दौरान रज़ब अली अंग्रेजों के पंजों से बचकर अगली राजनीति बनाने के लिए ममरूवापुर गाँव में खामोशी से जाकर छुप गए। उधर ब्रिटिश सेना के अधिकारियों ने क्रांतिकारी नेता शैख़ रज़ब अली को शीघ्र गिरफ्तार करने का हुक्म जारी कर दिए।
चारों ओर युद्ध स्तर पर तलाश शुरू हो गई। गाँव का कोई भी टपरा नहीं बचा, जिसकी अंग्रेज सिपाहियों ने तलाशी न ली हो। रजब अली कहीं नज़र नहीं आए। जैसे-जैसे समय गुज़र रहा था, ब्रिटिश अधिकारियों के गोरे चेहरे गुस्से से लाल होते और कभी उनके माथों पर लकीरों की संख्या बढ़ती जाती थी।
परेशान सैनिक अधिकारियों ने आस-पास के सभी इलाकों में सी.आई.डी. का जाल बिछा दिया। पूरे क्षेत्र में खौफ और परेशानी का महौल बन गया। वह गाँव वाले भी जो शैख़ का पता नहीं जानते थे, परेशान थे। जो जानते थे वह हैरान कि देखों अब क्या होता है।
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जब ब्रिटिश सैनिक शैख़ रज़ब अली की बहादुरी देख आश्चर्य चकित रह गए
कुछ समय बाद सी.आई.डी. ने उनके छुपने के ठिकाने का पता चल गया और उनके ठिकाने पर पूरी ताकत के साथ धावा बोल कर पूरे गाँव को घेर लिया गया। शैख़ रज़ब अली को यह मालूम हो गया कि वह चारों जानिब से अंग्रेज़ सेना के घेरे में आ चुके है।
शैख़ रज़ब अली, अपने मन में ठान रखी थी कि अपने देश के लिए जीना है और अपने देख के लिए ही मरना है। कुछ देर सोचने के बाद फ़िरंगियों से डरे बिना उनके घेरे में अकेले ही कूद पड़े और अंग्रेजी फौज के घेरे को चीरते-तौड़ते बाहर निकल गए।
सैनिक शैख़ रज़ब अली की बहादुरी देख आश्चर्य चकित रह गए। सैनिकों ने उनका पीछा किया, शैख़ रज़ब अली आगे-आगे स्वयं को बचाते और फ़िरंगियों को थकाते रहे। जब उनको यह अन्दाज़ा हो गया कि वह अब सेना के पकड़ में आ सकते है तो उसने वहाँ बह रही टोंस नदी में बिना झिझके छलांग लगा दी।
ब्रिटिश सैनिक बहादुर शैख़ रज़ब अली की करतब देखकर हैरान थे। सैनिकों ने उनको नदी में कूदता देख नदी के चारों ओर घेरा बंदी कर ली। क्रांतिवीर रज़ब अली कुछ समय तक तो नदी में तैरते रहा। मौका पाकर नदी से बाहर निकलकर भागने की कोशिश की। उस समय वहाँ तांक में बैठे एक फ़िरंगी सैनिक की गोली का वह शिकार हो गये।
और अन्त शैख़ रज़ब अली का
स्वतंत्रता सेनानी शैख़ रज़ब अली की लाश हाजीपुर घाट पर तड़पने लगी उफ़िरंगी सैनिक ने उस शहीदे वतन रज़ब अली की लाश को चारों ओर से घेर लिया। ज़ालिमों ने उस शहीद के बदन को जगह-जगह छेद कर ज़ख्मी कर डाला। उसना सर काटकर बदन से अलग कर दिया।
शैख़ रज़ब अली के गाँव का घर जलाकर राख कर दिया। उनकी जमीन-जायदाद ज़ब्त कर ली गई।
गुमनाम स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिवीर शैख़ रज़ब अली शहीद हो गए। बस लोगों के ज़ेहन में उनकी शहादत जीवित है। शहीद
क्रांतिकारीयों के इतिहास में उनका नाम समय के साथ कमोबेश खो चुका है।
संदर्भ
डां विश्वमित्र उपाध्याय, सन सत्तावन के भूले-बिसरे शहीद भाग 2, सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार, 2004, पेज नं-85
नोट: शेख़ रजब अली की तस्वीर उपलब्ध नहीं है, लेख में उनकी सांकेतिक तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है।
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