स्वदेशी के लिए शहादत देने वाले बाबू गैनू सय्यद को भूल गया देश
अंग्रेज़ी शासन का इतिहास भारत की लूट का इतिहास भी है। इंग्लैड में चलने वाली फैक्ट्रियों का उत्पादन बढ़ाने के लिए ज़रूरी कच्चा माल के लिए भारत के संसाधनों का दोहन किया जाता था। अंग्रेजों की इस चाल को विफल करने के लिए महात्मा गांधी ने स्वदेशी अपनाने और विदेशी माल के बहिष्कार करने का अभियान चलाया था जो देश की अस्मिता और स्वावलंबन का प्रतीक बन गया था। गैनू सय्यद इसी आंदोलन के लिए शहीद होने वाले अमर देशभक्त थे।
कौन थे बाबू गैनू सय्यद
बाबू गैनू सय्यद ने पूरी शक्ति से इस स्वदेशी आंदोलन में भाग लिया। बाबू गैनू सय्यद एक जोशीले नौजवान थे जिन्होंने देश की आज़ादी के संघर्ष में सच्चे जज़्बे से अपनी शहादत दी। 1908 में पूणे शहर में महाँनगुले गाँव में एक साधारण से परिवार में बाबू गैनू सय्यद का जन्म हुआ।
उनके शिक्षक गोपीनाथ पंत उनको रामायण, महाभारत और छत्रपति जैसे वीर यौद्धाओं के क़िस्से सुनाया करते थे। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली और बंबई चले आए। यहाँ वह तानाजी पाठक के दल में सम्मिलित हो गए। वह वड़ाला के नमक पर छापा मारने वाले स्वयं सेवकों के साथ गए। पकड़े भी गए और कठोर कारावास का दंड भी मिला।
यरवदा जेल से छूटकर माँ से मिलने गाँव गए तो लोगों ने उनके बहादुरी की तारीफ़ की।माँ की आज्ञा लेकर वह फिर बंबई चले गए जहाँ एक सूती कपड़ा मिल में नौकरी करके अपना पेट पालते थे और घर-घर जाकर स्वदेशी का प्रचार करते थे। उनका दिल देशप्रेम के जज़्बे से भरा हुआ था। देश के बड़े नेता आज़ादी के लिए जब भी कोई आन्दोलन छेड़ते, बाबू गैनू सय्यद उसमें काफी दिलचस्पी लेते थे। इस कारण से अंग्रेज अधिकारी उनसे नफ़रत किया करते थे।
यह कहना ग़लत नहीं होगा कि बाबू गैनू सय्यद आज़ादी के मतवाले थे। उस समय देश भर में आज़ादी के लिए कोई न कोई आन्दोलन, सत्याग्रह, जलसे जुलूस, विदेशी माल का बहिष्कार आदि की कार्यवाहियाँ चलती ही रहती थीं। एक बार फिर बाबू गैनू सय्यद को न्यायमूर्ति दस्तूर ने छ: माह की सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई।
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और फिर शहादत ..
1930 में गांधीजी ने नमक सत्याग्रह आन्दोलन शुरू किया। देश भर में उन्हें समर्थन मिल रहा था। हज़ारों लोग आन्दोलन में शरीक थे, फिर बाबू गैनू सय्यद कैसे पीछे रहते?
दिसंबर 1930 में विदेशी कपड़े का विरोध भी ज़ोरों पर था। लोगों द्वारा विदेशी कपड़ों की दुकानें बंद करवाई जा रही थी। जहाँ अंग्रेज़ों के विरोध में यह कार्यवाहियाँ हो रही थीं, वहीं उसके पक्षधर भी मौजूद थे। मुबंई के मूलजी जेठा मार्केट में विदेशी कपड़ों से भरा हुआ एक ट्रक आया। आन्दोलनकारियों द्वारा उस ट्रक को रोकने का प्रयास किया गया। कुछ व्यक्ति ट्रक ड्राईवर को गुस्से में आंखें दिखा रहे थे, तो कुछ खुशामद करके उसे वापस जाने के लिए कह रहे थे। ट्रक ड्राइवर विदेशी कपड़ों के ट्रक को वापस ले जाने को तैयार नहीं था।
बाबू गैनू सय्यद ख़ामोशी से खड़े उस विवाद का हल सोच रहे थे। अचानक उनके मन में वतन प्रेम का जज़्बा जोश मारने लगा। वह आन्दोलनकारियों को समर्थन देने के लिए मैदान में कूद पड़े। उन्होंने ट्रक वाले को चेतावनी भरे अन्दाज़ में ट्रक वापस ले जाने के लिए कहा। जब ट्रक डाईवर इसके लिए राजी नहीं हुआ तो बाबू गैनू सय्यद ने गुस्से में कहा कि ट्रक अगर बाज़ार में गया तो मेरे सीने पर चढ़ाते हुए ले जाना पड़ेगा। यह कहते हुए वह जोश में आकर ट्रक के सामने बीच सड़क पर लेट गए। उनकी इस कार्यवाही से लोगों को भरोसा हो गया कि ट्रक अब मार्केट में आगे नहीं जा सकता। उसे वापस लौटना ही पड़ेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अंग्रेज अधिकारी मिस्टर फ्रेजर को पहले से इस तरह के घटना होने की भनक थी। उसने भारी संख्या में पुलिस बल ही बुलवा रखा था। पहले एक-एक करके उनके साथी को पुलिस खींचकर परे करने का काम करने लगी और पीटने लगी। लेकिन जब गैनू नहीं माने तो अंग्रेज अफसर ने चिढ़कर ट्रक ड्राईवर को कहा- “लारी चलाओ ये हरामखोर मर भी गया तो कोई बात नहीं।”
नारे लगते रहे और ड्राईवर ने लारी को रोके रखा। गुस्से में आकर अंग्रेज अफसर ने ड्राइवर को पीछे धकेल कर खुद लारी चलाने लगा और उसने बाबू गैनू सय्यद पर लारी चढ़ा दी। यह घटना दिन के ग्यारह बजे की थी, 12:30 बजे बाबू गैनू सय्यद को अस्पताल लाया गया और शाम 4:50 में उनकी मौत हो गई। बाबू गेनू अमर रहे के नारे चारों तरफ गूँजने लगे और एक अनाम मज़दूर जन-जन का श्रद्धेय बन गया।[i]
ट्रक डाईवर और पुलिस की क्रूरता से शहीद हो गए बाबू गैनू सय्यद और देश के घर-घर में लोकप्रिय हो गए। बाबू गैनू अमर रहे के नारे गूँजने लगे। महानुगले गाँव में उनकी मूर्ति लगाई गई और जहाँ बाबू वह शहीद हुए, उस गली का नाम गैनू स्ट्रीट रखा गया। कस्तूरबा गांधी उनके घर गई और उनकी माँ को पूरे देश के तरफ से सांत्वना दी। एक साधारण मज़दूर द्वारा दी गई यह सर्वश्रेष्ठ शहादत थी, जिसे आज देश ने भुला दिया है।
बाबू गैनू सय्यद की शहादत इस बात कि मिसाल बन गई कि आज़ादी के संघर्ष में साधारण मजदूर भी अपनी भूमिका या कर्तव्य निभा सकता है, बस देश प्रेम और देश भक्ति के जज़्बे से। देश की आज़ादी में उनकी शहादत ने बाबू गैनू सय्यद को अमर कर दिया और आम मज़दूरों को आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने की प्रेरणा भर दी।[ii]
संदर्भ
[i] Bombay Samachar,15 December 1930(Source Material for a History of the Freedom Movement in India, Vol .xxi, Government of Maharashtra, Mumbai, 2007)
[ii]मेवाराम गुप्त सितोरिया, हिंदुस्ताने के जंगे आजादी के मुसलमान मुजाहिदीन, किताबघर, मुम्बई, 1988 एंव 2012,पेज नं 100
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