जब नर्तकी अज़ीज़न ने अग्रेजों पर बरपा दिया था कहर
1857 की जन-क्रांति के समय अज़ीज़न कानपुर में नर्तकी थी। उनका वैभव घुघरुओं की रुनझुन और संगीत के सुमधुर स्वर लहरी के बीच रहने वाली अज़ीज़न नर्तकी का हृदय देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत था। वह एक वारंगना न होकर एक वीरांगना थी। वह त्याग और देश-प्रेम का एक अभूतपूर्व उदाहरण थी उसके कार्यों ने उसे महान बना दिया।
श्री विनायक दामोदर सावरकर ने अज़ीज़न के विषय में लिखा है-
अज़ीज़न एक नर्तकी थी परंतु सिपाहियों को उसने बेहद स्नेह था। अज़ीज़न का प्यार साधारण बाज़ार में धन के लिए नहीं बिकता था। उनका प्यार पुरस्कार स्वरूप उस व्यक्ति को दिया जाता था जो देश से प्रेम करता था।
अजीनन के सुंदर मुख की मुस्कुराहट भरी चितवन युद्धरत सिपाहियों को प्रेरणा से भर देती थी। उनके मुख पर भृकुटी का तनाव युद्ध से भागकर आये हुए कायर सिपाहियों को पुन: रण क्षेत्र की ओर भेज देता था।
गंगा के पवित्र पानी को साक्षी मानकर अज़ीज़न 1857 की क्रांति में शामिल हुई
कानपुर 1857 की क्रांति का मुख्य केन्द्र था। नाना धुधूपत और अजीमुल्ला खाँ के संदेश वाहक देश के कोने-कोने में जाकर क्रांति की अलख जगा रहे थे। क्रांति के लिए देश को तैयार करने के लिए नाना धुधूपत ने भारत भ्रमण किया। समस्त देश में उत्साह था। देशवासी अग्रेजों को अपने देश से निकाल देने के लिए कृत-सकल्प थे।
इस वातावरण में सुंदरी नर्तकी अज़ीज़न के हृदय को परिवर्तित कर दिया और उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों को न्यौछावर कर देने का निर्णय लिया। कानपुर में शमशुद्दीन खाँ सिपाहियों के नेता थे तथा सूबेदार टीकासिंह के यहाँ गुप्त मत्रणाएं हुआ करती थी।
1 जून 1857 को गंगा नदी के किनारे एक गुप्त सभा हुई। गुप्त सभा में शमशुद्दीन खाँ, सूबेदार टीकासिंह के साथ नानासाहब, उनके भाई बालासाहब व अजीमुल्ला खाँ भी उपस्थित थे। इस सभा में अज़ीज़नन ने भी भाग लिया। क्रांति के सूत्रधार नाव में बैठे गंगा की बीच धारा के निकट पहुँच गए। गंगा के पवित्र पानी को साक्षी बनाकर उन्होंने देश से अग्रेजों को बाहर खदेड़ देने की योजना बनाई।
अगले दिन शमशुद्दीन खाँ अज़ीज़न के यहाँ गये और उन्हें आश्वासन दिया कि अब अग्रेजों के राज्य का अंत हो जाएगा और पेशवा नानासाहब के राज्य का शुभारंभ होने का पुनीत दिन आ पहुंचा है। सुंदरी अज़ीज़न का ह्रदय देशप्रेम की भावना से भरपूर था। यह समाचार सुनकर उसका ह्रदय उत्साह से भर उठा।
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नर्तकी अज़ीज़न सम्पूर्ण उत्साह से 1857 के क्रांति का हिस्सा बनी
जून 1857 में नाना धुधूपत को बिठूर का शासक घोषित कर दिया गया। नर्तकी अज़ीज़न सम्पूर्ण उत्साह के साथ देश कार्य में लग गई। इतिहासकार चिक के अनुसार, कोतवाल सलामतुत्ला ने हरा झंडा लेकर एक जुलूस निकाला। शशिभूषण चौधरी जैसे विख्यात इतिहासकार ने स्वीकार किया है कि घोड़े पर बैठकर अज़ीज़न जुलूस के साथ-साथ चल रही थी।
अज़ीज़न ने स्वयं कहा है कि अजीमुल्ला खाँ ने हरा झंडा कानपुर की एक नहर के पास फहरा दिया। उस समय वहाँ पर अजीमुल्ला खाँ ने हरा झंडा कानपुर की एक नहर के पास फहरा दिया। उस समय वहाँ पर हज़ारों व्यक्ति एकत्रित थे। अज़ीज़न ने स्त्रियों की एक सेना एकत्रित कर ली थी।
महिलाएं पुरुषों के वेश में, हाथ में तलवार लिये, घोड़ा पर चढ़कर लोगों को स्वतन्त्रता के लिए प्रेरित करती थी। वे घायल सिपाहियों की सेवा करती थी। चारों ओर गोलियों की बौछारों में आगे बढ़कर अज़ीज़न और उनकी सहयोगिनी स्त्रियां सिपाहियों को फल, मिठाई और रसद बाँटती थी।
अग्रेज सेनाधिकारी कर्नल विलियम ने कानपुर के एक व्यापारी से अज़ीज़न के विषय में पूछताछ की। व्यापारी जानकी प्रसाद ने बताया- जिस समय कानपुर में स्वतन्त्रता का प्रतीक हरा झण्डा फहराया गया वह पुरुष वेश में घोड़े पर वहाँ उपस्थित थी। वह तमगों तथा गोलियों के पट्टे से सुसज्जित थी। मैने तथा हजारों व्यक्तियों ने उन्हें देखा।
और अंत नर्तकी अज़ीज़न
कानपुर में नानासाहब की पराजय के उपरांत अज़ीज़न को बंदी बना लिया गया। अग्रेज सेनाधिकारी हैवलॉक अज़ीज़न की सुदरता को देखकर स्तब्ध रह गये। श्रीनिवास बालाकी हार्डिकर ने अपनी पुस्तक 1857 की चिनगारिया में अज़ीज़न की मृत्यु का मार्मिक वर्णन किया है।
उन्होंने लिखा है कि जनरल हैवलॉक यह विश्वास नहीं कर सके कि यह अलौकिक सौन्दर्य रणचण्डी का रूप धरकर लड़ाई के मैदान में भी हुंकार लगा सकती है।
जनरल हैवलॉक ने वीरता की प्रतिमूर्ति अज़ीज़न से कहा कि यदि वह अपराधों के लिए माफ़ी मांग ले तो उसे क्षमा कर दिया जाएगा। अज़ीज़न ने माफ़ी माँगने के स्थान पर हुंकार लगायी-
मैं अंग्रेजो का विनाश चाहती हूं। सौन्दर्य की देवी अज़ीज़न को गोलियों से भून दिया गया। मरते समय उसके मुख से यह अन्तिम शब्द निकले नानासाहब की जय। अज़ीज़न के बलिदान ने उन्हें महान बना दिया था।
1857 के विद्रोह में आम तौर पर महिलाओं को न ही याद किया जाता है न ही उनके त्याग और वीरता की बात होती है पर अज़ीज़न एक मिसाल है उन महिलाओं के लिए जिनके अंदर देशप्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है।
संदर्भ
उषा चंन्द्रा, सन स्त्तावन के भूले-बिसरे शहीद, प्रकाशन विभाग, सूचना और प्रसारण मन्त्रालय, भारत सरकार, 1986, पेज- 36-38
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में