कैसे छूटी सरदार पटेल की सिगरेट की आदत
सरदार पटेल आज़ादी के लड़ाई में कांग्रेस के अग्रणी नेताओं में शामिल थे। अपनी अच्छी-खासी जमी-जमाई वकालत को छोड़कर सरदार पटेल आज़ादी के संघर्षो में शामिल हुए थे। आज़ादी के लड़ाई शामिल होने के बाद उन्होंने अपने वैभवपूर्ण जीवन का भी त्याग कर दिया था।
बैरिस्टर बनने के बाद वल्लभाई पटेल 13 फरवरी 1913 को स्वदेश लौटे। बंबई (अब मुंबई) पहुँचने पर उन्होंने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर स्कांट से भेंट की। सर स्कांट ने उनकी योग्यता देखते हुए उन्हें न्यायाधीश का पद देने की पेशकश की। लेकिन पटेल ने यह कहकर विनम्रतापूर्वक मना कर दिया कि उनका इरादा अपनी खुद की वकालत करने का है।
वल्लभाई पटेल एक सीधे-साधे भारतीय के रूप में लंदन गए थे। लेकिन जब वह लौटे तो पूरी तरह पश्चिमी रंग में रंग गए थे। वह वहाँ से बहुत बढ़िया किस्म के सूट लेकर आए थे। उनके साथ ही उम्दा किस्म का फैल्ट हैट भी लाए थे, जिसे पहनना उस जमाने के सभ्रांत वर्ग में आम रिवाज़ था।
वल्लभाई पटेल को लंदन में सिगरेट और सिगार पीने की आदत भी पड़ गई थी। वह उस ज़माने की बढ़िया ब्रांड माने जाने वाली 555 ब्रांड की सिगरेट पिया करते थे; मज़ेदार यह है कि पंडित नेहरू और सुभाषचंद्र बोस भी इसी ब्रांड की सिगरेट पीते थे। साथ ही अब उनको विहस्की पीने से भी परहेज न था; जबकि उन दिनों गुजरातियों से, खासतौर पर उनकी जातिवालों में, मांस-मदिरा का सेवन अपवाद-स्वरूप भी न था।
वल्लभाई पटेल विलायत से बैरिस्टरी पास करके आए थे। जब वे नए-नए बैरिस्टर बने थे तो उस समय युवा ही थे। उन्हें फैशनेबल कपड़े पहनने का शौक था। इसलिए वे अकसर फैशनेबल पोशाक, महंगा हैट पहनते थे। ऐसे कपड़े पहनकर उनका व्यक्तित्व निखर जाता था। उनका आत्मविश्वास देखने योग्य था।
एक वकील के रूप में वह खूब सफल थे। उनके हर शब्द में आत्मविश्वास की झलक मिलती थी।
वल्लभाई पटेल स्वयं तो विशेष पश्चिमी पहनावे में सज-धजकर रहते ही थे, उन्होंने अपना दफ़्तर भी बहुत आधुनिक साज-सज्जावाला बनाया था।
अदालत के पास ही एक क्लब था, जिसके सदस्य अधिकतर वकील थे। इसलिए बहुत से स्थानीय लोग इसे वकीलों का क्लब कहकर पुकारते थे।
वल्लभाई पटेल भी इसके सदस्य थे। शाम को अदालती कारवाई से मुक्त होने के बाद वह अपना समय उस क्लब में गुजारते और आमोद-प्रमोद से अपनी थकान मिटाते।
जी.वी. मावलंकर, जो पहली लोकसभा के अध्यक्ष बने, उनके घनिष्ठ मित्रो में से थे। उन्होंने उस दौर के वल्लभाई पटेल का व्यक्तित्व का शब्दचित्र बहुत सटीक और दिलचस्प अंदाज़ में खीचा था-
एक चुस्त युवक, शानदार सूट में सजा-धजा। एक खास कोण का फेनेट पहने। वह स्वभाव में थोड़ा कठोर व अल्पभाषी। आंखे चमकीली व पैनी, मानो अंदर तक भेद जाएंगी। अभिवादन का उत्तर देता है, पर बातचीत उससे आगे नहीं बढ़ाता। सारी दुनिया को जैसे अपनी उत्कृष्टता की ऊंचाई से नीचे देखता है। इसी श्रेष्ठता की भावना से जब कभी कुछ बोलता है तो उसके हर शब्द में आत्मविश्वास की झलक मिलती है। ऐसा है वह अहमदाबाद में आया नया बैरिस्टर वल्लभभाई पटेल।
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ब्रिज खेलने में माहिर थे सरदार पटेल
वल्लभाई पटेल को ब्रिज खेलने का बहुत शौक था। वह इस खेल में माहिर थे। इसके बारे में एक क़िस्सा बेहद दिलचस्प है।
क्लब में एक मिस्टर वाडिया थे। उन्हें भी अपनी ब्रिज की महारत पर बड़ा नाज था। जैसा कि क्लबों में कई बार हो जाता है, उन्होंने वल्लभाई पटेल को चुनौती दे डाली।
उन्हें सबक सिखाने के लिए सरदार पटेल से कहा कि वह पैनी-पैनी का खेल पसंद नहीं करते। 100 पाइंट के लिए 5 पाउंड की शर्त हो तो चुनौती मंज़ूर है। 5 पाउंड उस जमाने में बहुत बड़ी रक़म होती थी, पर वाडिया को अपनी ब्रिज की महारत पर पूरा भरोसा था तो वह राजी हो गए।
ब्रिज का दौर शुरू हुआ। सारा क्लब बड़ी उत्सुकता से यह मैच देख रहा था। क्लब के बाहर भी इसकी चर्चा थी। पहले दिन मिस्टर वाडिया 20 पाउंड हारे। अगले दिन उन्होंने और ज़ोर लगाया, लेकिन नतीजा उल्टा ही निकला और वह 30 पाउंड हार गए।
पति की लगातार हार से परेशान श्रीमती वाडिया तीसरे दिन क्लब में आई और वल्लभ भाई से अनुरोध किया कि मुक़ाबले की शर्तों को भुलाकर खेल यहीं खत्म कर दें। वह हंस पड़े और तुरंत खेल बंद कर दिया।
जब गांधी के रंग में ढल गए, सरदार पटेल
गांधीजी के संसर्ग में आने के बाद उनकी ये सारी आदतें छूट गई और वे पूरी तरह उनके रंग में ढल गए। अनेक आंदोलनों के नेता होने के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। प्रारंभ में उन्हें जेल में बहुत कठिनाई हुई क्योंकि वह अच्छे रहन-सहन और खान-पान के आदी थे।
साथ ही उन्हें सिगरेट पीने की भी आदत थी। यही आदत उन्हें जेल में सबसे ज़्यादा परेशान कर रही थी। उन्होंने किसी तरह खान-पान पर तो काबू कर लिया था, लेकिन सिगरेट की आदत नहीं छोड़ पाए थे।
जब जेल के सुपरिंटेंडेंट को यह बात पता चली, तो उन्होंने उनके पास सिगरेट पहुँचाई। सिगरेट को सामने देखकर वल्लभभाई पटेल से स्वयं से ही प्रश्न किया, मैं यह क्या कर रहा हूँ, जब जीवन देश हित में समर्पित कर दिया है, तो फिर उसके आगे यह छोटी-सी आदत क्यों नहीं छूट पा रही है।
बस, उन्होंने उसी समय मन में निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, अब सिगरेट-बीड़ी के ओर देखेंगे भी नहीं। इसके बाद जब भी जेल सुपरिटेंडेंट ने उन्हें सिगरेट देने का प्रयास किया, तो उन्होंने विनम्रतापूर्वक मना कर हुए कहा, सर जेल में सिगरेट पीना मना है। इसलिए मैंने अब सिगरेट पीना ही छोड़ दिया है।
वल्लभाई पटेल की बात सुनकर जेल के सुपरिटेंडेंट उनके आगे नतमस्तक हो गए। इस तरह वल्लभाई पटेल ने जेल के जीवनकाल के दौरान धूम्रपान का त्याग कर दिया और स्वयं को पूरी तरह से देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया।
संदर्भ
सुशील कुमार, लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल, विद्या विहार प्रकाशन, दरियागंज, दिल्ली, पेज 15-21
डॉ एन.सी.मेहरोत्रा और डां रंजना कपूर, सरदार वल्लभभाई पटेल, व्यक्तित्व एंव विचार, आत्माराम एंड संस, 45-46
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में