क्यों किताब ‘मदर इंडिया’ के आलोचक थे लाला लाजपत राय
बीसवीं सदी के दूसरे दशक की सामाजिक, राजनैतिक और साहित्यिक गतिविधियों के बीच मिस मेयो कैथरीन की किताब ‘मदर इंडिया‘ (मई, 1927) प्रकाशित हुई। किताब प्रकाशित होते ही हिन्दू सुधारकों और लेखकों के बीच भयंकर कोलाहल मच गया था। हिन्दू सुधारक और लेखक जिन बातों पर पर्दा डालते आ रहे थे और अपनी धर्म संस्कृति का पवित्र हिस्सा मानते थे मेयो कैथरीन ने उस हिन्दू पवित्रता को उघाड़ कर रख दिया।
लाला लाजपत राय ने भी एक किताब ‘अनहैप्पी इंडिया‘ लिखकर इसका विरोध किया। असल में मिस मेयो की किताब ‘मदर इंडिया’ सामाजिक विषमता, अंधी परंपराओं, भयानक अशिक्षा और गरीबी में जकड़े भारत की वह तस्वीर दिखाती है जिसे देखकर कोई भी संवेदनशील व्यक्ति विचलित हो सकता है।
क्यों एक विवादित किताब थी मेयो कैथरीन की किताब ‘मदर इंडिया’
मेयो कैथरीन ने ‘मदर इंडिया’ में स्त्रियों और अछूतों की दयनीय अवस्था की जो तसवीर पेश की थी, उससे हिन्दी के लेखक और संपादक बेहद खफ़ा दिखे। बड़ी दिलचस्प बात यह है कि जो हिन्दू सुधारक और लेखक स्त्री समर्थक होने का दावा करते थे, वही मिस मेयो की ‘मदर इंडिया’ के ख़िलाफ़ अपनी पत्र-पत्रिकाओं में मोर्चा खोलते नज़र आये।
साल 1928 में इस किताब का पहला हिन्दी अनुवाद ‘मदर इंडिया’ शीर्षक से इलाहाबाद, हिंदुस्तानी प्रेस, प्रयाग से प्रकाशित हुआ था।
इस अनुदूत किताब की एक लंबी भूमिका नवजागरण काल की जानी मानी लेखिका श्रीमती उमा नेहरू ने लिखी थी। करीब सौ साल बाद ‘मदर इंडिया’ (2018) का दलित चिंतन कंवल भारती द्वारा अनुदित दूसरा हिन्दी अनुवाद ‘फॉरवर्ड प्रेस‘ ने प्रकाशित किया है।
उमा नेहरू का मानना था कि मिस कैथरीन की ‘मदर इंडिया’ किताब का प्रकाशित होना हमारे राजनैतिक जीवन की महत्वपूर्ण घटना है।इस किताब के हवाले से अंग्रेज़ों ने मिस कैथरीन जैसी चित्रकार से भारत का चित्र उतरवाकर संसार के सामने भारत बंधुओं और सुधारकों को बदनाम किया है।
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क्यों लाला लाजपत राय और महात्मा गांधी को आपत्ति थी किताब ‘मदर इंडिया’ से
लाला लाजपत राय ने तो मदर इंडिया के जवाब में ‘दुखी भारत’ जैसी किताब भी लिखी थी। महात्मा गांधी ने भी यंग इंडिया में कैथरीन की बड़ी तीखी आलोचना कर मदर इंडिया को सिरे से ख़ारिज़ कर दिया था। बड़ी दिलचस्प बात यह है कि हिन्दी लेखक भले ही इस किताब को कोरी कल्पना बता रहे थे लेकिन मदर इंडिया में स्त्री और अछूतों की दयनीय स्थिति के परिपेक्ष्य में कैथरीन ने जो तर्क और प्रमाण दिए थे, उन्हें हिन्दी लेखक झुठला नहीं सके थे।
अमेरिकी इतिहासकार कैथरिन मेयो ने 1927 में एक विवादित पुस्तक ‘मदर इंडिया’ की रचना की। इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय समाज, धर्म और संस्कृति पर आपत्तिजनक बातें लिखीं। इस पर टिप्पणी करते हुए महात्मा गांधी ने कहा कि, “यह एक नाली निरीक्षक की रिपोर्ट है (It is the report of a drain inspector) और मैं इसे नहीं पढ़ूंगा।
लाला लाजपत राय को यह पुस्तक ठीक नहीं लगी और उन्होंने इसके जवाब में 1928 में Unhappy India नाम से एक पुस्तक लिख दी। पुस्तक की लेखिका कैथरीन का कहना था कि वह गांधी और चीतों के अलावा भारत के बारे में कुछ नहीं जानती थी, इसलिए 1925-1926 की सर्दियों के तीन महीने भारत के दौरे पर आ गयी। इस दौरान उन्होंने जो कुछ भी देखा, उसे अपने पूर्वाग्रहों और निजी नजरिए से इस पुस्तक के रूप में पेश कर दिया।
कैथरीन की पुस्तक के कुछ अंश इस प्रकार से थे, “वैष्णव तिलक के पीछे एक अश्लील अर्थ छुपा है”, “हिन्दू धर्म में जीवित रहने के लिए प्रेरणा नहीं होती”, असंख्य योनियों का हिन्दुओं में जिक्र मिलता है और निसंदेह इनके पतन का यह भी एक कारण है”, और “हिन्दू महिलाओं के ज्ञान की सीमा केवल यहां तक सीमित होती है कि घर में देवताओं की पूजा किस तरह की जाए?”
कैथरीन, कलकत्ता के कालीघाट स्थित देवी काली के मंदिर भी गयी, जहां उन्होंने देवी की आध्यात्मिक शक्ति के स्थान पर सिर्फ गंदे फूल, पशु हत्या, पागल आदमी, गन्दी नालियां, भिखारी को ही अपनी पुस्तक में जगह दी।
यही नहीं, उन्होंने तो यहां तक लिखा कि भारत के मंदिरों में अश्लील मूर्तियाँ होती हैं, जिसके कारण भारतीय युवाओं में भी अश्लीलता बढ़ रही है। दरअसल, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय सहित सभी कांग्रेस नेताओं का मानना था कि कैथरीन ने भारत और यहां रहने वाले हिन्दुओं की नकारात्मक छवि ब्रिटिश सरकार के कहने पर जानबूझकर प्रचारित की थी।
उस समय देश की जनता कांग्रेस के बैनर तले ब्रिटिश सरकार से स्वशासन और स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रही थी। जबकि ब्रिटिश शासन इस मांग को लेकर असहज था। इसलिए हमेशा यही कुतर्क दिया जाता था कि भारत के लोग स्वशासन करने के लिए सक्षम ही नहीं है। अतः दुनियाभर में भारत की कमजोर छवि बनाने के हरसंभव प्रयास किये गए, जिसमें से एक हथकंडा यह एक पुस्तक भी थी।
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लाल लाजपत राय ने कहा ‘मदर इंडिया’ किताब झूठ का पुलिंदा थी
लाल लाजपत राय के अनुसार कैथरीन ने न सिर्फ भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं की गलत व्याख्या की बल्कि हिन्दू देवी-देवताओं का भी अपमान किया। साथ ही उन्होंने इसे झूठ का पुलिंदा करार दिया।
अपनी पुस्तक ‘अनहैप्पी इंडिया’ में वे लिखते है, “मिस मेयो की भारत यात्रा स्वतः स्फूर्त नहीं थी। उन्हें निहित स्वार्थ वाले अंग्रेजों द्वारा भारत आने का आग्रह किया गया था। जो सोचते हैं कि भारत में स्वशासन उनके लिए एक खतरा है।
महात्मा गांधी ने भी यंग इंडिया 15 सितम्बर 1927 को लाजपत राय का यह कहते हुए समर्थन किया कि कैथरीन के मन में पहले ही धारणा बनी हुई थी और उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा समर्थन दिया गया था।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजों के नस्लवाद को भी उजागर करते हुए लिखा कि –
मेयो की मानसिकता एशिया” के काले या भूरे लोगों के खिलाफ श्वेत जातियों की मानसिकता दिखाती है। पूर्वी देशों की जागृति ने यूरोप और अमेरिका दोनों को डरा दिया है। इसलिए इतनी प्राचीन और इतनी सुसंस्कृत संस्कृति के खिलाफ जानबूझकर कुख्यात प्रचार किया गया है।”
संदर्भ
Lala Lajpat Rai, Answer to the “Mother India” of Ms. Katherine Mayo, SHARDA PRAKASHAN, 2021
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में