भगत सिंह की किताब रखना गुनाह नहीं है : मेंगलूरू सेशन कोर्ट
भगत सिंह जब ज़िंदा थे तो ब्रिटिश सरकार ने उनपर हत्या और राजद्रोह का अभियोग चलाया। अँग्रेज़ी साम्राज्य के शत्रु थे वह तो यह स्वाभाविक था।
लेकिन भारतीय जनता उन्हें अपना हीरो मानती थी और मानती है। जब उनके लेख प्रकाश में आए तो लोगों ने हाथोंहाथ लिया। नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी में रखी उनकी जेल डायरी कई भाषाओं में छपी और उनके लेख भी प्रो. चमनलाल जैसे शोधकर्ताओं ने जब एक जगह इकट्ठा किए तो घर-घर में पढ़े गए।
ये लेख और किताबें आसानी से ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं और ढेरों पुस्तिकाओं में भी मौजूद हैं।
ऐसे में आश्चर्यजनक है कि आज़ाद हिंदुस्तान की सरकारों में लोगों को इस बिना पर गिरफ़्तार किया जाए कि उनके पास शहीद-ए-आज़म शान-ए-हिंदुस्तान भगत सिंह की किताबें ‘बरामद’ हुई हैं। अगर यह अपराध है तो हम जैसे लाखों लोग अपराधी हैं जो न केवल उनकी हर किताब सहेज कर रखते हैं बल्कि उन पर लिखी हर किताब भी खरीदते हैं। ‘क्रेडिबल हिस्ट्री’ तो हमने उनके जन्मदिन पर ही शुरू किया था और यहाँ आपको उनके कई लेख पढ़ने को मिल जाएंगे।
मेंगलूर में पत्रकारिता के विद्यार्थी विट्ठल मालेकुड़िया और उनके पिता लिंगप्पा मालेकुड़िया को भगत सिंह की किताबें तथा कुछ लेख ‘बरामद’ किए और उन पर नक्सल होने का आरोप लगाकर 2012 में गिरफ़्तार कर लिया था।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ। गौरी लंकेश ने अपने एक संस्मरण में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाक़ों में इस आधार पर लोगों की गिरफ़्तारी का जिक्र किया था। इसके अलावा भी ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं।
जो भगत सिंह अँग्रेज़ी राज में खतरनाक थे, उनकी किताबें आज़ाद भारत में गिरफ़्तारी का आधार बनें तो उनका यह कथन याद आना लाज़िमी है कि ‘आज़ादी का मतलब सिर्फ़ यह नहीं है कि गोरे अंग्रेज़ चले जाएँ और उनकी जगह काले अंग्रेज़ सत्ता में आ जाएँ। ‘
कल अपने एक फ़ैसले में मेंगलूर सेशन कोर्ट के जज बी बी जकाती ने भगत सिंह की किताबें रखना गुनाह मानने से इंकार करते हुए उन्हें रिहा तो कर दिया लेकिन जेल में गुज़ारे 12 साल तो उन्हें कोई वापस नहीं कर सकता। उम्मीद बस इतनी की जा सकती है कि कोर्ट का यह फ़ैसला नज़ीर बने तथा आगे ऐसा कृत्य दुहराया न जाए।
मुख्य संपादक, क्रेडिबल हिस्ट्री