[जाने-माने हेरिटेज एक्सपर्ट सोहेल हाशमी दिल्ली के बहाने शहरों के बनने की कहानी सुना रहे हैं। पढिए उसकी चौथी क़िस्त]
शहर कैसे बनते हैं?
तो आबादियों के शहर बनने में प्रवासियों और लेन-देन के बुनियादी योगदान की बात तो हो गई, अब आबादी को शहर बनने की तीसरी ज़रूरी शर्त समय की बात हो जाए।
बहुत-सी चीज़ों को समझने के लिए समय और स्थान दोनों का एक साथ होना कितना ज़रुरी है वो इस छोटे से लेख में हम रेखांकित करने की कोशिश करेंगे।
आमतौर पर यह कहा जाता है कि दिल्ली आठ बार बसी और सात बार उजड़ी, या यह भी कहा जाता है कि अलग-अलग वक़्त में दिल्ली में आठ शहर बसे हैं।
आठ दिल्लियाँ
जिन आठ जगहों का नाम लिया जाता है, वो हैं-
1. लाल कोट, जिसे कुछ लोग किला राय पिथोरा भी कहते हैं,2. सिरी3. तुग़लक़बाद,4. जहां-पनाह5. फिरोज़बाद या फिरोज़शाह का कोटला6. दीन-पनाह शेर-गढ़ या पुराना किला7. शाहजहानाबाद जिसे नई दिल्ली बनने के बाद पुरानी दिल्ली कहा जाने लगाऔर फिर8. नई दिल्ली।
इस ज़ंजीर की पिछली तीन कड़ियों के ज़रिए जो प्रस्तावनाएँ हमने आपके सामने रखी थीं, आप अगर उन्हें याद करें और फिर इन राजधानियों को देखें तो यह फ़ैसला करना मुश्किल नहीं होगा कि इन आठों में कितनी आबादियाँ ऐसी थी जिनकी क़िस्मत में बड़ा हो कर शहर बनना लिखा था और कितनी ऐसी थी जो शहर बनने की हसरत लिए-लिए ही इस संसार से कूच कर गई।
इस जंजीर की पहली कड़ी में हमने इस बात का ज़िक्र किया था कि सिर्फ लाल कोट और शाहजहानाबाद को यह मौक़ा मिला कि वो शहर बन पाते और ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इन दो जगहों को आबादी से शहर बनने का वक़्त मिला बाकी सब बेचारी बस्तियाँ राजधानी तो बन गई मगर उन्हें उतना वक़्त नहीं मिला कि वो शहर बन जातें।
इन बाक़ी सब को किसी बादशाह ने बनवाया, उसके या उसके उत्तराधिकारियों के मरने के बाद वो जगह उजड़ गई, बाद में आने वाले शासक ने नई राजधानी बना ली।इन नई आबादियों में से एक ‘सिरी’ तो शायद पूरी तरह राजधानी भी नहीं थी और बुनियादी तौर पर एक छावनी ही थी, अब अगर उसे राजधानी मान भी लिया जाए तो वो अलाउद्दीन ख़िलजी के काल के बाद चंद बरसों तक ही आबाद रही और फिर जब तुग़लक़ आए तो उन्होंने यह इलाका छोड़ कर दूसरे इलाके आबाद किए।
तुग़लक़ वंश : 8 बादशाह चार राजधानियाँ
तुग़लक़ वंश में 8 सुल्तान हुए। पहले तीन सुल्तानों ने अलग-अलग राजधानियाँ बनायीं और आखिरी 5 सुल्तानों ने तीसरे तुग़लक़ की राजधानी से ही जैसे-तैसे 25 बरस हुकूमत की।
पहले सुल्तान ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने तुग़लक़बाद से 1321 से 1325 तक यानी 4 बरस राज किया, उसके बेटे मोहम्मद बिन तुग़लक़ ने 1325 से 1351 तक तक राज किया।पहले 4 बरस अपनी पहली राजधानी जहां-पनाह से, अगले 7 बरस आज के महाराष्ट्र में देव-गिरी से जिसे उसने दौलताबाद का नाम दिया और फिर आखिरी 15 बरस फिर जहां-पनाह से।मोहम्मद बिन तुग़लक़ के बाद उसके भतीजे फिरोज़ तुग़लक़ और उसके उत्तराधिकारियों ने फ़िरोज़ाबाद से 1351 से 1398 तक अगले 47 बरस राज किया।
तुग़लक़ों के बाद लोधी आये मगर वो राजधानी आगरा ले गए। लोधियों को बाबर ने हराया और राजधानी आगरा में ही रखी।
बाबर का बेटा हमायूँ राजधानी को दिल्ली ले आया और उसने दीन पनाह के नाम से अपनी राजधानी बनवाई मगर दस बरस राज करने के बाद वो शेर शाह सूरी से हार गया।
शेर शाह और उसके बेटे ने 15 बरस राज किया, फिर हमायूँ ने सूरी के बेटे को हरा कर शेर गढ़ पर कब्ज़ा किया, मगर वो 11 महीने में ही चल बसा।
अकबर से अंग्रेज़ों तक
अकबर 1556 में राजधानी को फिर आगरा ले गया। अब 122 बरस के बाद एक बार फिर दिल्ली 1648 में राजधानी बनी और 1857 तक- 209 बरस राजधानी रही। अगले 54 बरस अंग्रेजों ने कलकत्ता को राजधानी बनाया और 1911 में दिल्ली आठवीं बार राजधानी बनी।
तो इल्तुतमिश द्वारा 1211 में राजधानी लाहौर से दिल्ली लाये जाने के बाद से 1321 तक यानी लगभग 100 बरस राजधानी लाल कोट में रही और 1648 से 1857 तक लगभग 200 बरस शाहजहाँनाबाद को यह रुतबा मिला।ज़ाहिर है 100 बरस का वक़्त तो किसी आबादी को शहर बनाने के लिए काफ़ी नहीं होता मगर फिर भी हम लालकोट के इलाके के आसपास दिल्ली के पहले शहर स्थापित होने के विचार को सही मानते हैं मगर आज से 110 बरस पहले स्थापित होने वाली राजधानी, नई दिल्ली को शहर नहीं मानते।
हम ऐसा क्यों मानते हैं, महरौली और शाहजहाँनाबाद किस तरफ अलग-अलग राह पर सफ़र कर के शहर बनीं और नई दिल्ली क्यों शहर नहीं बन पाई, इन सवालों के जवाबों की तलाश इस कहानी की अगली क़िस्तों में की जाएगी।
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इस शृंखला के पिछले लेख
1- पहली कड़ी
2- दूसरी कड़ी
3- तीसरी कड़ी
जाने-माने हेरिटेज एक्टिविस्ट, दिल्ली के इतिहास पर विशेष काम।