पेरियार और ब्लैक शर्ट आंदोलन
[आज रामास्वामी पेरियार की पुण्यतिथि है। इस अवसर पर उनके क्रांतिकारी आंदोलनों में से एक ब्लैक शर्ट आंदोलन पर संजय जोठे की शीघ्र प्रकाशित पुस्तक ‘पेरियार:जीवन तथा विचार’ से एक हिस्सा]
ब्लैक शर्ट आंदोलन पेरियार की द्वारा शुरू किए गए एक महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक है। यह भारत में जाति व्यवस्था के संपूर्ण उन्मूलन के लिए छेड़ा गया द्रविड़ अस्मिता की मुक्ति का आंदोलन था। पेरियार ने युवाओं को बड़ी संख्या में इकट्ठा किया, और उन्हें काली शर्ट पहनने के लिए तैयार किया जो कि विद्रोह और बदलाव की प्रतीक है।
ब्लैक शर्ट मूवमेंट ने बड़ी संख्या में उत्साही द्रविड युवाओं की एक ‘द्रविड़ फ्रीडम फोर्स’ की रचना की थी जो काली शर्ट पहनती थी (G.O. 1948b, 15)। पेरियार के अनुसार काली शर्ट द्रविड़ लोगों के आत्मसम्मान को पुनर्जीवित करने का प्रतीक है, काली शर्ट पहन कर हम अपनी प्राचीन संस्कृति और सभ्यता के पुनर्जीवन का संकल्प व्यक्त करते हैं। काली शर्ट आंदोलन वाले लोग एक अलग ही किस्म के अनुशासन सम्मान तार्किक विचार और जुझारूपन वाले व्यक्ति थे।
ब्लैक शर्ट आंदोलन ने बहुत शुरुआत से ही आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक बदलाव के लिए अपनी एक अलग शैली में काम शुरू कर दिया। ब्लैक शर्ट आंदोलन के जरिए समाज प्रबोधन का एक नया ही काम शुरू हुआ। पेरियार ने ब्लैक शर्ट कॉन्फ्रेंसेस का आयोजन करके अपने समर्पित काडर को ही नहीं बल्कि जन सामान्य को भी किस विचारधारा से परिचित कराया। इन सम्मेलनों के माध्यम से समाज प्रबोधन में भी बहुत महत्व है।
ब्लैक शर्ट कान्फ्रेंसेस
पहली ब्लैक शर्ट कॉन्फ्रेंस मदुरई में सन 1946 में आयोजित की गई। इसके आयोजन के साथ ही पेरियार एवं उनके पहली पंक्ति के नेताओं ने समाज से विशेष अपील की। उन्होंने लोगों से निवेदन किया कि ‘द्रविडिस्तान’ के लिए लड़ाई लड़ें। इस तरह की मांग में पहले से उठाते आ रहे थे।
एंटी हिंदी आंदोलन के दौरान उन्होंने इस दिशा में अपने विचारों को कहीं अच्छे से संगठित करके पेश किया। धीरे-धीरे उनके सहयोग एवं समर्थकों में पृथक द्रविड़-स्थान के लिए भावनाएं मजबूत होने लगी। सन 1945-46 के आते-आते ब्रिटेन पूरी तरह कमज़ोर होकर टूट चुका था, और भारत आज़ाद होने की कगार पर था। इस समय पेरियार एवं उनके सहयोगी समझ चुके थे कि भारत अब आज़ाद होने को है। ऐसे आज़ाद भारत में द्रविड़ समाज के लिए द्रविड़ संस्कृति सभ्यता और इतिहास के लिए बेहतर क्या होगा इस विषय में वे लोग चिंतित थे।
द्रविडनाडु सेपरेशन कॉन्फ्रेंस
भारत से हिंदी हिंदू और ब्राह्मणवादी अंधविश्वास का आधिपत्य फिर से दक्षिण भारत पर हावी न होने लगे इस बात के लिए विशेष रूप से परेशान रहते थे। इसीलिए उत्तर भारत और द्रविडनाडु को अलग-अलग देखना चाहते थे।
इसी नज़रिये से उन्होंने 14 सितंबर 1947 को अलग द्रविडनाडु के लिए ‘द्रविडनाडु सेपरेशन कॉन्फ्रेंस’ का आयोजन किया। इस कॉन्फ्रेंस में एक अलग स्वतंत्र एवं स्वयंभू द्रविड़नाडु राज्य की कल्पना एवं उसके निर्माण के तौर-तरीकों पर विचार किया गया। इस बीच आधुनिक भारत के इतिहास की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी। जब पेरियार स्वतंत्र द्रविडनाडु की कल्पना को आकार दे रहे थे, और पूरे दक्षिण भारत में द्रविड़ संस्कृति और सभ्यता को पुनर्जीवित करने का प्रयास दोनों पर था उसी समय 30 जनवरी 1948 को एक ब्राह्मण उग्रवादी नाथूराम गोडसे द्वारा गांधी की हत्या कर दी गई। पेरियार कांग्रेस छोड़ने के बाद जीवन भर गांधी के कट्टर विरोधी रहे। लेकिन एक सहज मानवीय मैत्री और शिष्टाचार की भावनाओं में कूट-कूट कर भरी हुई थी।
गांधी की हत्या की खबर सुनते ही उन्होंने इस घटना की ज़ोरदार निंदा की और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एवं राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को संवेदना में भीगे पत्र लिखें। इस अवसर पर उन्होंने अपने विशेष अंतर्दृष्टि को भी उजागर किया। वे जानते थे कि गांधी की हत्या की खबर सुनकर बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हो सकते हैं और पूरे देश में दंगा भड़क सकता है। इस हत्या का इल्जाम किसी मुसलमान पर ना लग जाए इसलिए उन्होंने पूरी दुनिया के सामने घोषणा की गांधी के हत्या एक ‘महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण’ ने की है (Kudi Arasu, 31 January 1948, 9)।
पेरियार गांधी की हत्या होने के बाद केवल संवेदना से भरे पत्र भेजने तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू और राजेंद्र प्रसाद को प्रस्ताव भेजा। प्रस्ताव में कहा गया है कि भारत का नाम ‘गांधीस्तान’, हिंदू धर्म का नाम ‘गांधी धर्म’, और ईसाई कालखंड का नाम का नाम ‘गांधी-कालखंड’ रख देना चाहिए (Kudi Arasu, 31 January 1948, 3)। गांधी की हत्या के बाद सरकार बहुत असुरक्षित महसूस कर रही थी। एक तरफ़ हिंदू अतिवादी संगठनों पर गांधी की हत्या का शक गहराता जा रहा था। ऐसे में सरकार चारों तरफ़ से दबाव में थी और किसी भी तरह के काडर आधारित सामाजिक राजनीतिक सांस्कृतिक संगठन को शक्तिशाली होने से रोकना सरकार की पहली बन गई थी।
ब्लैक शर्ट आंदोलन पर हमले
इसके बाद 10 अक्टूबर 1945 को पेरियार ‘द्रविड़ फ्रीडम फोर्स’ का आधिकारिक तौर पर उद्घाटन किया। इस अवसर पर उन्होंने द्रविड़ फोर्स के सदस्यों को फोर्स की वर्दी के रूप में काले रंग की शर्ट पहनाई। इस समय सभी लोगों ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक द्रविड़ लोगों की सामाजिक आर्थिक स्थिति नहीं सुधरेगी तब तक वह काली कमीज के अलावा अन्य कोई वस्त्र नहीं पहनेंगे।
यह एक खतरनाक प्रतिज्ञा थी, उद्घाटन दिवस के अवसर पर लगभग 150 लोगों ने यह प्रतिज्ञा ली थी। इस प्रतिज्ञा को और इस बैठक में द्रविड फ़्रीडम फोर्स को अधिक आक्रामक बनाने के निर्णय को ब्राह्मणवादी लोग एक खतरे के रूप में देख रहे थे। कई लोग प्रश्न उठा रहे थे कि जब भारत आज़ाद हो ही चुका है तो फिर से एक पृथक फोर्स की आवश्यकता किसे है? इस प्रकार बहुत सारी वैचारिक असहमति और असुरक्षा की भावनाएं चारों तरफ़ मंडरा रही थी। लेकिन इन सबके बीच ब्लैक शर्ट आंदोलन महान द्रविड़ सभ्यता और संस्कृति के पुनर्जागरण का संकल्प लिए आगे बढ़ रहा था।
अक्टूबर 1945 में कुडी अरासू में सभी कार्यकर्ताओं को कहा गया कि वे पूर्णकालिक कार्यकर्ताओं से स्वतंत्रता बल में शामिल होने की अपील करें। लेकिन जैसा कि हर आंदोलन के साथ होता है, जल्द ही इस आंदोलन के खिलाफ़ दुष्प्रचार शुरू हो गया।
इस आंदोलन को एक उग्रवादी और सशस्त्र आंदोलन के रूप में बदनाम किया जाने लगा। पेरियार को जल्द ही पता चल गया कि जन सामान्य में उनके ब्लैक शर्ट आंदोलन को आशंका के नजरिए से देखा जा रहा है। वे इसका कारण और संभावित परिणाम जानते थे, वे जानते थे कि भारत के ब्राह्मण द्रविड़ों के किसी भी बड़े आंदोलन को सफल नहीं होने देंगे। जल्द ही ब्लैक शर्ट आंदोलन की बदनामी रोकने के लिए उन्होंने हस्तक्षेप किया। उन्होंने ब्लैक शर्ट मूवमेंट के बारे में समझ बढ़ाने के लिए एवं सहानुभूति निर्माण के लिए एक लंबा चौड़ा स्पष्टीकरण तैयार किया।
उन्होंने लोगों को इस आंदोलन के महान उद्देश्यों के बारे में जागरूक किया। अपने मूवमेंट के बारे में बताते हुए उन्होंने स्पष्टीकरण दिया कि ब्लैक शर्ट मूवमेंट किसी भी तरीक़े से एक उग्रवादी एवं सशस्त्र आंदोलन नहीं है, और ना ही भविष्य में यह ऐसी कोई दिशा लेगा। उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य द्रविड़ समाज और संस्कृति का पुनरुत्थान मात्र है। उन्होंने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस आंदोलन का काम इतना भर है कि सोए हुए और कमज़ोर द्रविड़ लोगों को जगा कर अपना हक लेने के लिए तैयार कर दिया जाए।
इन ब्लैक शर्ट वाले लोगों की फ्रीडम फोर्स एक बड़ी शक्ति बनकर उभरने लगी। ब्राह्मणों एवं ब्राह्मणवादी शक्तियों को इस बात से बड़ी परेशानी महसूस हुई। उन्होंने ब्लैक शर्ट मूवमेंट को ब्राह्मणों ने एक उग्रवादी संगठन कहकर इसकी निंदा की। भारत सरकार से अपील की गई कि इस संगठन पर पाबंदी लगाई जाए। इसलिए 1948 में सरकार में भारत सरकार ने ‘द्रविड़ फ्रीडम फोर्स’ पर पाबंदी लगा दी (G.O. 1948a)।
संजय जाने-माने दलित चिंतक, शोधकर्ता और एक्टिविस्ट हैं।