थिक न्हात हान : एक मानवतावादी का अवसान
पुरे विश्व को बौद्ध धर्म के एक नए आयाम ‘बौद्ध धर्म की सामाजिक संलग्नता’ से अवगत कराने वाले ‘थिक न्हात हान’, हमारे समय के महान बौद्ध शिक्षकों में से एक, आध्यात्मिक विचारक, कवि तथा शांति कार्यकर्ता रहे हैं। बीते शुक्रवार के मध्य रात्रि को ठीक 12 बजे वियतनाम के तू ह्यू शहर के एक बौद्ध विहार में 95 वर्ष के उम्र में उनका निधन हो गया।
इसी स्थान पर उन्हें सोलह वर्ष की उम्र में बौद्ध धर्म की पब्बजा प्राप्त हुआ था। पब्बजा बौद्ध धर्म का एक संस्कार है, जो संघ में प्रवेश लेने के लिए अनिवार्य होता है। कोई भी व्यक्ति आठ वर्ष पूरा कर लेने के बाद कुछ शर्तों मसलन- बाल मुंडवाना, चीवर धारण करना आदि के साथ संघ में प्रवेश कर सकता है।
बचपन और उपसम्पदा
वियतनाम के मध्य में स्थित ह्यू शहर में 11 अक्टूबर 1926 को उनका जन्म हुआ था। बचपन का नाम ‘गुयेन जुआन बाओ’ था।
25 साल के उम्र में महायान पंथ की वियतनामी परंपराओं के साथ-साथ वियतनामी थिएन (ज़ेन या ध्यान सम्प्रदाय) में प्रशिक्षित हुए तथा इसी साल यानी 1951 में एक भिक्खु के रूप उपसम्पदा प्राप्त किए। ‘फादर ऑफ़ माइंडफुलनेस’ के रूप में प्रसिद्ध ‘थिक न्हात हान’ को उनके छात्र प्यार से ‘थाई’ ‘(Thay)’ कहते थे। जिसका अर्थ होता है- शिक्षक।
उन्हें ‘बौद्ध धर्म की समाजिक संलग्नता आन्दोलन’ का जनक भी कहा जाता हैं। वर्तमान विश्व में व्याप्त असंतोष और समस्याओं- चाहे वह आध्यात्मिक हो या सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक या पर्यावरणीय- के समाधान के लिए बौद्ध शिक्षा का प्रयोग ही इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य रहा है।
वियतनाम युद्ध और मानवीय कार्य
1960 के दशक में अपने देश में जारी वियतनामी युद्ध के दौरान उन्होनें दुनिया के सामने एक अलग पहचान बनाई।
दरअसल तत्कालीन वियतनाम दो हिस्सों में बंटा हुआ था। एक था उत्तरी वियतनाम, जहाँ कम्युनिस्ट समर्थित शासन था। तो वहीं दूसरा भाग यानी देश के दक्षिणी भाग में कैपिटलिस्ट सरकार थी। साठ के दशक के मध्य दोनों भागों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसे विश्व के आधुनिक इतिहास में विश्व युद्ध के बाद दूसरी सबसे बड़ी युद्ध मानी जाती है। इस युद्ध में किसी एक भाग की पक्षधरता से इत्तर तीसरा रास्ता यानी सामान्य लोगों का पक्ष अपनाते हुए थाई हान ने युद्ध में घायल सैनिकों व आमजनों की सहायता के लिए काम किए।
‘स्कूल ऑफ यूथ एंड सोशल सर्विस’ की स्थापना
वियतनाम के साइगॉन शहर में 1960 के दशक की शुरुआत में थाई हान ने ‘स्कूल ऑफ यूथ एंड सोशल सर्विस’ की स्थापना की, जो बौद्ध शिक्षा के अहिंसा और करुणा सिद्धांतों पर आधारित दस हजार स्वयंसेवकों का एक संगठन था/है। जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की स्थापना, स्वास्थ्य क्लीनिक बनाने और गांवों के पुनर्निर्माण में मदद करना था/है।
बाद के दिनों में थाई हान एक फ़ेलोशिप पर तुलनात्मक धर्म का अध्ययन करने के लिए प्रिंसटन यूनिवर्सिटी चले गए और उसके बाद कोलंबिया विश्वविद्यालय में बौद्ध धर्म के लेक्चरर के रूप में नियुक्त हुए। वे कई भाषा के जानकार थे। अपने स्थानीय भाषा के अलावा जापानी, चीनी, संस्कृत, पाली और अंग्रेजी में पारंगत थे।
डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर से मुलाक़ात
1966 की एक यात्रा के दौरान उनकी पहली मुलाकात डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर से हुई। इस मुलाकात में उन्होंने किंग लूथर से वियतनाम युद्ध की निंदा करने के लिए अनुरोध किया। डॉ किंग ने अगले ही वर्ष उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए एक भाषण के दौरान युद्ध में अमेरिका की भागीदारी पर सवाल उठाया था।
साथ ही, उन्होंने यह कहते हुए ‘थिक न्हात हान’ को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया कि “मैं व्यक्तिगत रूप से वियतनाम के इस सौम्य बौद्ध भिक्षु की तुलना में नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य किसी और को नहीं जानता हूँ”।
इसी वर्ष शांति स्थापना और वियतनाम में शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान करने के लिए एक बार फिर यू.एस. और यूरोप की यात्रा की।
वियतनाम से निष्कासन
उन्होंने वाशिंगटन में एक शांति प्रस्ताव दिया, जिसमें अमेरिकियों से वियतनाम पर बमबारी बंद करने का आग्रह किया गया था। जिसके परिणामस्वरूप वियतनाम से उन्हें निर्वासित कर दिया गया। बाद में उन्हें फ्रांस में शरण मिला, जहां वे वियतनामी बौद्ध शांति प्रतिनिधिमंडल के अध्यक्ष बने। उनका यह निष्कासन 40 वर्षों से अधिक का रहा।
1975 में उन्होंने पेरिस के दक्षिणी-पूर्वी भाग में ‘स्वीट पोटैटो कम्युनिटी मैडिटेशन सेंटर’ की स्थापना की।
1982 में फ्रांस के दक्षिण पश्चिम भाग में सिस्टर चां खोंग के साथ ‘प्लम विलेज’ की स्थापना की, जो एक बौद्ध विहार और ज़ेन केंद्र के रूप में दुनिया भर में प्रसिद्धि पाई। ‘थिक न्हात हान’ के आध्यात्मिक नेतृत्व के तहत ‘प्लम विलेज’ एक छोटे से ग्रामीण फार्मस्टेड से विकसित होकर अब पश्चिमी दुनिया का सबसे बड़ा और सक्रिय बौद्ध मठ बन गया है, जिसमें दो सौ से अधिक मठवासी और हर साल दस हजार से अधिक लोग विजिट करते हैं। ‘प्लम विलेज’ सभी उम्र, लिंग और धर्मों के लोगों के लिए खुला है, जहां वे हर तरह के ध्यान सम्बन्धी अभ्यास सीख सकते हैं।
वापसी और फिर बीमारी
वियतनाम सरकार ने 2005 में उनका निर्वासन समाप्त कर दिया। जिसके बाद कुछ समय के लिए उन्होंने वियतनाम का दौरा किए लेकिन एक विवाद के स्थिति में उन्हें वापिस लौटना पड़ा।
11 नवंबर 2014 को तेजी से गिरते स्वास्थ्य के बाद थिक न्हात हान को गंभीर आघात लगा और शरीर का दाहिना भाग पैरालाइज्ड हो गया। जिसके कारण वे अपने आखिरी वक़्त तक बोलने में असमर्थ रहें। बाद के वर्षों में उन्होंने अपने देश वियतनाम लौटने की इच्छा जाहिर की और 2018 से आखिरी समय तक ते ह्यू शहर के एक बौद्ध विहार में रहें, जहाँ वे सोलह वर्ष की उम्र में पब्ब्जित हुए थे।
95 वर्ष के अपने जीवनकाल में उन्होंने 130 पुस्तकों की रचना की। जिनका देश-दुनिया के अनेक भाषाओं में अनुवाद किया गया है। मैडिटेशन पर सरल शिक्षाओं से लेकर बच्चों की किताबों, कविता और ज़ेन अभ्यास (प्रैक्टिस), प्रकृति से प्रेम आदि उनके लेखनी का क्षेत्र रहा है।
हाल में प्रकाशित उनकी आखिरी पुस्तक है- ‘जेन एंड द आर्ट ऑफ सेविंग द प्लैनेट’। इसे अक्टूबर 2021 में हार्पर कॉलिन्स द्वारा प्रकाशित की गई थी। उनकी प्रसिद्ध पुस्तकों में ‘द मिरेकल ऑफ़ माइंडफुलनेस’, ‘पीस इज़ एव्री स्टेप’, ‘हाउ टू लव’, ‘लव लेटर टू द अर्थ’, ‘द सन माय हार्ट’, ‘द आर्ट ऑफ़ लिविंग’, ‘एट होम इन द वर्ल्ड’ आदि हैं।
2016 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘एट होम इन द वर्ल्ड’ में अपनी मृत्यु को संबोधित करते हुए उन्होंने लिखा हैं:
मेरा यह शरीर छिन्न-भिन्न हो जाएगा, लेकिन मेरे कार्य मुझे जारी रखेंगे… यदि आप सोचते हैं कि मैं केवल यह शरीर हूँ, तो आपने मुझे वास्तव में नहीं देखा है। जब आप मेरे दोस्तों को देखते हैं, तो आप मेरी निरंतरता देखते हैं। जब आप किसी को मैडिटेशन और करुणा के साथ चलते हुए देखते हैं, तो आप जानते हैं कि वह मेरी निरंतरता है। मुझे नहीं पता कि हमें क्यों चाहिए कि ‘मैं मर जाऊंगा’, क्योंकि मैं पहले से ही आप में, अन्य लोगों में और आने वाली पीढ़ियों में खुद को देख सकता हूं।
जब बादल नहीं होता तब भी यह बर्फ या बारिश के रूप में जारी रहता है। बादल का मरना असंभव है। यह बारिश या बर्फ बन सकता है, लेकिन यह संभव नहीं है कि यह कुछ भी न हो। बादल को जारी रखने के लिए आत्मा की आवश्यकता नहीं है। कोई शुरुआत नहीं है और कोई अंत भी नहीं। मैं कभी नहीं मरूंगा। इस शरीर का विघटन होगा, लेकिन इसका अर्थ मेरी मृत्यु नहीं है।”
दिल्ली यूनिवर्सिटी में बुद्धिस्ट स्टडीज़ में शोध कार्य और अध्यापन। क्रेडिबल हिस्ट्री की संपादकीय टीम से सम्बद्ध