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जलियाँवाला बाग़ : कुछ अनजाने तथ्य और दस्तावेज़

6 अप्रैल, 1919 को Rowlatt Act के खिलाफ़  पूरे भारत में विरोध की कॉल दी गई थी।

 

दिल्ली और बंबई (अब मुंबई) में इन प्रदर्शनों पर गोलियाँ चलीं तो हिन्दू-मुसलमानों ने एक होकर पूरे देश में इसका विरोध किया। इसी सिलसिले में 13 अप्रैल, 1919 को पंजाब में अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में लोग इकट्ठा हुए थे।

पंजाब में इसके पहले ही वहाँ के गवर्नर माइकल ओ ड्वायर ने मार्शल लॉ लगा दिया था।

उसके आदेश पर जनरल डायर ने बाग़ का इकलौता दरवाज़ा बंद कर दिया। मशीन गनें लगा दी गईं और कोई 2500 औरत, मर्द और बच्चों का क्रूर  नरसंहार हुआ। पंजाब को बाक़ी देश से काट दिया गया। महीने भर यह सूचना बाहर नहीं पहुँच सकी और आतंक का राज बना रहा।

जानते हैं उस हत्यारे डायर का अफ़सोस क्या था?

नहीं, उसे इन हत्याओं का कोई अफ़सोस नहीं था। अफ़सोस था तो यह कि संकरी गली के कारण वह नीच हथियारबंद गाड़ी अंदर न ले जा सका था।

Crawling Lane जहाँ घिसटते हुए जाना पड़ता था लोगों को

जलियाँवाला बाग़ से लगी एक गली से जाने वालों को घिसटते हुए जाने का आदेश दिया गया। आरोप लगाया गया कि इस गली में किसी ब्रिटिश महिला के साथ अभद्रता हुई थी। गली से गुज़रने वाले हर बूढ़े, जवान, बच्चे, मर्द, औरत को पेट के बल घिसट के निकलना पड़ता था। यह आदेश लोगों का मनोबल तोड़ने के लिए दिया गया था।

कैसूर नामक एक क़स्बे में सड़क पर जेल बना दी गई जहाँ जिस पर भी शक होता था उसे घंटों अप्रैल-मई की सख्त गर्मी में क़ैद रखा जाता था। खुले में ही लोगों को नंगा करके बांध दिया जाता था और उनकी पिटाई होती थी।

जब बाहर पहुँची ख़बर

कोई महीने भर बाद जब यह ख़बर बाहर पहुँची तो तहलका मच गया।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि लौटा दी। महात्मा गांधी ने कहा कि जो ब्रिटिश शासन इंग्लैंड में लोकतान्त्रिक है वह भारत में क्रूर और दमनकारी। कांग्रेस ने अमृतसर में ही उस साल अपना वार्षिक अधिवेशन किया और वहाँ सरोजिनी नायडू ने इस घटना पर अपनी एक कविता पढ़ी। तीसरे कम्युनिस्ट इंटरनेशनल में लेनिन ने इस घटना का जिक्र करते हुए इसे अंग्रेज़ों की क्रूरता का प्रतीक बताया।

जब नेहरू मिले डायर से

जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस की तरफ़ से इस हत्याकांड की रिपोर्ट तैयार करने के लिए भेजा गया था। लौटते हुए ट्रेन के जिस डब्बे में वह थे, उसके बगल में जनरल डायर हंटर कमेटी के समक्ष बयान देने के बाद अपने साथियों के साथ यात्रा कर रहा था। नेहरू ने पूरी रात उनकी बातें सुनीं जिसमें डायर किसी अफ़सोस की जगह शेखियाँ बघार रहा था।

नेहरू लिखते हैं कि उस रात उन्हें यह भरोसा हो गया कि ब्रिटिश शासन में भारत का कोई भला नहीं हो सकता।

 

 

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