संघ के पूर्व प्रचारक की नई किताब में क्या है?
भारत अपनी गंगा-जमुनी संस्कृति एंव साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए जाना जाता है। परंतु, शुरुआत से ही कुछ असमाजिक शक्तियां इसको नफ़रत के महौल में बदल देना चाहती है, आज ये कोशिशें चरम पर हैं।
युगल किशोर शुक्ल अपनी किताब संघी आतंकवाद किताब में विघटनकारी मानसिकता को बहुत करीब से पहचानने का प्रयास किया है। पेश है उनकी किताब का एक अंश-सं.
कुछ वर्षों पहले उड़ीसा प्रान्त की कन्धमाल घटनाओं से पर्दा उठ गया है, जिसमें स्वामी लक्ष्मणानन्द की हत्या के बाद संघ परिवार के लोगों को बहकावे में डालकर दस हज़ार से अधिक आदिवासी ईसाइयों के घरों को आग के हवाले कर दिया था। सैकड़ों आधिवासियों को ज़िन्दा जलाया गया था।
संघ परिवार ने झूठा प्रचार किया था कि स्वामी लक्ष्मणानन्द की हत्या ईसाइयों ने की है। सच्चाई यह सामने आई कि नक्सलियों ने उन्हें गोली से उड़ा दिया था। लक्ष्मणानन्द लम्बे समय से लोगों में नफ़रत के बीज बो रहे थे। उन्होंने तमाम आदिवासियों के जंगल और ज़मीन को ताक़त के बल पर हथिया लिया था। नक्सलियों ने यह स्वीकार कर लिया था कि उपर्युक्त कारणों से हत्या की गयी। उनका यह आरोप था कि लक्ष्मणानंद धार्मिक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि उनका जीवन शैतानियत से भरा था।
हिंदू धर्म अथवा हिंन्दुओं को किसी ने आतंकवादी नहीं कहा है, परंतु आतंकवादी गतिविधि को आतंकवाद कहा गया है। 6 सितंबर 1992 को जब बाबरी मस्जिद गिराई गई तो देश के सुप्रीम कोर्ट ने विश्व हिंदू परिषद, आर.आर.एस और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को दोषी ही नहीं, बल्कि अपराधी प्रवृत्ति वाले एवं देश के साथ धोखा देने वाले कहा (ए.आई.आर., 1995, एस.सी. 605, डा. एम इस्माईल फ़ारूक़ी बनाम यूनियन आंफ़ इंडिया, 24 अक्टूबर, 1994)
13 दिसंबर, 2001 में संसद पर आतंकवादी हमला करने वालों को हमारे सुरक्षा बलों ने मौत के घाट उतार दिया था। मुबंई कांड के विरुद्ध पूरा देश खड़ा था, केवल संघ के लोग नहीं। मुबंई में भी सभी आतंकवादी मार दिए गये थे, क़साब को मृत्युदंड दिया जा चुका है।
असीमानन्द ने अदालत के समक्ष 164 के समक्ष 164 सी.आर.पी.सी के अन्तर्गत बयान दिया है कि वह देश में हुए बम विस्फोटों का दोषी है। यह बयान असीमानंद को सज़ा देने के लिए काफ़ी है। ऐसे ही बम विस्फोटों में एक धर्म विशेष के नौजवानों को पकड़ा गया और पुलिस के समक्ष दिये बयान के आधार पर उन्हें आतंकवादी कहा गया। जबकि 161 सी.आर.फी.सी के तहत दिये बयान पर किसी को सज़ा नहीं हो सकती।
आर.एस.एस की विडम्बना यह है कि पुलिस के सामने दिये बयान पर मुसलमान नौजवानो को फाँसी पर लटकाना चाहता है और मजिस्ट्रेट के सामने दिये इक़बालिया बयान पर संघियों को दोषमुक्त करना चाहता है।
संदर्भ स्त्रोत
युगल किशोर शरण शास्त्री, संघी आतंकवाद, फ़रोज प्रकाशन
जनता का इतिहास, जनता की भाषा में