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कैथरीन मरियम हेमिलमैन: गांधीजी की सरला बेन
महात्मा गांधी के दो अंगेज बेटियों में से पहली नाम मीराबेन और दूसरी सरला बेन का नाम आता है। भारत के आजाद होने के बाद मीराबेन के तरह सरला बेन ने भी गढ़वाल और कुमाओं में भारत के पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसलिए मीरा और सरला बेन दोनों को ही परिस्थिकी तंत्र का अभिभावक कहा जाता है। जब यह पूरी दुनिया पर्यावरण संरक्षण के लिए जागृत नहीं थी, गांधीजी ने अपनी दोनों बेटियों के सामने पर्यावरण संरक्षण के महान आर्दश रखा और मीरा बेन के साथ सरला बेन ने अपने जीवन में इन गांधीवादी आदर्शों का पालन करके दुनिया को दिखा दिया। आज 5 अप्रैल को सरला बेन यानि कैथरीन मरियम हेमिलमैन का जन्मतिथी है।
भारत पर औपनिवेशिक शासन के दौरान, भारतीयों पर अपने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष करने की जिम्मेदारी थी। उस दौर में भारत में कई विदेशी महिलाएं आई जिन्होंने भारत के लिए काम किया। उनमें ही एक थी, कैथरीन मरियम हेमिलमैन यानी सरला बेन। जिन्होंने जर्मन पिता के बेटी होने के कारण अपने ही देश लंदन में बालपन से ही बहिष्कार झेला।
आरंभिक जीवन संघर्ष-यात्रा में महात्मा गांधी से प्रेरित
कैथरीन मरियम हेमिलमैन का जन्म 5 अप्रैल 1901 को लंदन के वेस्टर्न इलाके में हुआ था। जर्मन पिता और अंग्रेज मां के घर में हुआ। पारिवारिक पृष्ठभूमि के वज़ह से, पहले विश्वयुद्ध के दौरान कैथरीन को बहिष्कार के पीड़ा से गुजरना पड़ा। स्कूल में फैलोशिप नहीं मिलने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा। परिवार और घर छोड़कर कुछ समय तक काम भी किया। काम करते हुए कैथरीन ने इतिहास, भूगोल, फ्रेंच और जर्मन भाषा की पढ़ाई की।
1920 में लंदन में कुछ भारतीय अधिकारियों से महात्मा गांधी और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में सुना। गांधीजी से कैथरीन इतनी अधिक प्रभावित हुई कि जनवरी 1932 को कभी ना वापस लौटने के ख्याल से भारत आ गई।
उन्होंने भारत को अपना घर बना लिया। गांधीजी और उनके नीतियों को न केवल समझा। भारत के पर्यावरण संरक्षण के संघर्ष में उसका इस्तेमाल भी किया।
महात्मा गांधी से समझा बुनियादी विचार
भारत आने के बाद कैथरीन मरियम हेमिलमैन अलग-अलग इलाकों की यात्रा करते हुए पहले उदयपुर पहुंची और कुछ समय के लिए एक स्कूल में काम किया। उसके बाद वर्धा आश्रम पहुंची और उनकी मुलाकात विनोभा भावे और महात्मा गांधी से हुई।
महात्मा गांधी ने उनको सरला बेन का नाम दिया और अपनी बेटी माना। वर्धा के सेवाग्राम आश्रम में वह आठ साल तक रही। खादी बुनना सीखा, गांधीजी के नई तालीम या बुनियादी शिक्षा के विचारों को गहराई से समझा। सेवाग्राम में महिलाओं को सशक्त बनाने और पर्यावरण की रक्षा पर काम किया। गर्मी और मलेरिया से कुछ समय तक सेवाग्राम में पीड़ित भी रही।
बाद में गांधीजी के सहमति के बाद 1940 में संयुक्त प्रांत के अल्मोड़ा जिले में कौसनी के अधिक आकर्षक मौसमों में जा पहुंची। वही अपना घर बनाया, आश्रम की स्थापना की और कुमाऊं में पहाड़ियों की महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम किया। 1946 में सरला बेन ने कस्तूरब महिला उत्थान मंडल स्कूल की शुरुआत भी की जो आज लक्ष्मी आश्रम के नाम से भी जाना जाता है।
स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ी रही और जेल भी गई
महात्मा गांधी ने जब भारत छोड़ो आंदोलन छेड़ा था। उस दौर में ब्रितानी सरकार कांग्रेस से जुड़े हर व्यक्ति को गिरफ्तार कर रही थी। सरला बेन को भी नजरबंद रखा गया। सरला बेन के कुमाऊं जिले में आंदोलन को संगठित करने और नेतृत्व करने में मदद की।
उन्होंने राजनीतिक कैदियों के परिवारों तक पहुंचने के लिए क्षेत्र में बड़े पैमाने पर यात्रा की।सरला बेन स्वतंत्रता आंदोलन में लगे लोगों की मदद किया करती थी। वह खाने के साथ-साथ दवाइयां एंव संदेश पहुंचाने और कानूनी सलाह देने का काम किया करती थी।
सरला बेन को ब्रितानी महिला होने की वजह से गिरफ्तार नहीं किया गया था। लेकिन सरकार ने उनपर निगाह बनाए रखी और सरकार के आदेश न मानने की वजह से उन्हें भी जेल भेजा गया। पहले उन्हे अल्मोड़ा जेल में और बाद में लखनऊ जेल में सो साल रखा गया।
सरला बेन ने कहा था कि- मानवता के लिए कोई रंग, नस्ल और राजनीति नहीं है।अगर सरकार सही उदेश्यों के लिए संघर्ष करने वालों को सज़ा देना चाहती है तो मुझे कुछ नहीं कहना है। वो लोग जो कठिन दौर में विरोध प्रदर्शन करते हैं, उन्हें इसके परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब मेरे आसपास लोग बीमारी और गरीबी से जूझ रहे हैं तो मैं आश्रम में नहीं बैठ सकती, मैं ब्रितानी सरकार को सुनने की बजाए, अपनी अंतरआत्मा को सुनूंगी।[i]
आजाद भारत में पहली पर्यावरण कार्यकर्ता
आजादी के बाद सरला बेन ने अपनी, पूरी ऊर्जा ग्रामीण महिलाओं के कल्याण और पर्यावरण संरक्षण में लगा दिया। उन्होंने पहाड़ में जंगल बचाने के लिए अभियान चलाया और बाद में चिपकों आंदोलन से भी जुड़ी। 1975 में धरमधर में हिमदर्शन कुटीर की स्थापना की।
उनके सामाजिक कार्यों को देखते हुए वर्ष 1978 में जमुना लाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उतराखंड में पर्यावरण संरक्षण, ग्राम स्वराज के साथ-साथ सामाजिक कुरितियों के खिलाफ समाज को जागरुक करने में सरला बेन का अहम योगदान रहा।
लैंगिक भेदभाव मिटाने और विनोवा भावे के भूदान आंदोलन में भी सक्रिय रही। बहुत कम लोग जानते है कि सुंदरलाल बहुगुणा, विमला बहुगुणा और राधा भट्ट जैसे सामाजिक कार्यकर्ता को सरला बेन ने गांधीजी को अनुसरण के अनुसार तैयार किए।[ii] 6 जुलाई 1982 को उनकी मृत्यु हुई, अपने पीछे उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का महान उद्देश्य विरासत में देशवासियों को सौप दिया।
संदर्भ-स्त्रोत
[i] सरला देवी, व्यावहारिक वेदान्त एक आत्मकथा, Samaya Sakshya’s; 3 संस्करण (1 जनवरी 2016)
[ii] वही
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जे एन यू से मीडिया एंड जेंडर पर पीएचडी। दो बार लाडली मीडिया अवार्ड। स्वतंत्र लेखन।
संपादक- द क्रेडिबल हिस्ट्री