क्या था नेहरू का Idea of India
नेहरू के भारत विजन को लेकर अगर हम नए सिरे से विमर्श कर रहे हैं तो यह उनकी दूरदृष्टिता का ही कमाल है जो हमें सोचने के लिए एक नई और व्यापक दृष्टि प्रदान कर रहा है ।
महात्मा गांधी ने 1929 में लाहौर में नेहरू को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने से पहले लोगों से यह कहकर उनका परिचय कराया था कि “ वह निस्संदेह एक चरमपंथी हैं, जो अपने वक्त से कहीं आगे की सोचते हैं, लेकिन वह इतने विनम्र और व्यवहारिक हैं कि रफ़्तार को इतना तेज नहीं करते कि चीज़ें टूट जाएं, वह स्फटिक की तरह शुद्ध हैं, उनकी सत्यनिष्ठा संदेह से परे है. वह एक ऐसे योद्धा हैं जो भय और निंदा से परे हैं,राष्ट्र उनके हाथों में सुरक्षित है।”1
कई असमानताओं और असहमतियों में गांधी-नेहरू एक-दूसरे के बरक्स खड़े दिखते हैं
गांधी और नेहरू के विचारों में काफी अंतर भी है जो उन्हें कभी – कभी एक दूसरे के बरक्स भी खड़ा करता हैं । गांधी राजनीति में धर्म का समावेश करना चाहते थे वही नेहरू इसके विरोधी थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए गांधी जी ने कई धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल किया जिसकी आलोचना नेहरू के द्वारा लगातार की गई|
गांधी के बारे में एक और धारणा प्रचलित थी कि वे आधुनिकता के विरोधी थे और यह भी कहा जाता है कि वे सनातन धर्म से प्रेरणा ग्रहण करते है । वहीं नेहरू आधुनिकता से प्रभावित थे,उसी के साथ साथ वे भारतीय संस्कृति और सभ्यता की एक अलग व्याख्या भी करते है जिसे उनकी किताब “भारत एक खोज” से समझा जा सकता है।
गांधी और नेहरू में कई असमानताओं और असहमतियों को देखा जा सकता है लेकिन भारत देश को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में देखना और सभी धर्मों की साझी विरासत संस्कृति को संजोए रखने का उनका सपना एक था। गांधी ने जिस कांग्रेस पर अपना विश्वास जताया था उसे बरकरार रखने में नेहरु को काफी आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
नेहरु और अपने बीच मतभेदों के लिए गांधी जी ने 15 जनवरी 1941 को कहा था “कुछ लोग कहते हैं कि पंडित नेहरू और मेरे बीच नाराजगी है लेकिन,हम दोनों को अलग करने के लिए केवल मतभेद काफी नहीं हैं । जब से हमने साथ काम करना शुरू किया है,मतभेद तो हमारे बीच तभी से हैं । इसके बावजूद मैं पहले भी कहता रहा हूं और अब फिर कहता हूं कि जवाहरलाल ही मेरे उत्तराधिकारी होंगे” ।2
जिंदगी की आखरी सांस तक सांप्रदायिकता से लड़ता रहूंगा
1952 के पहले आम चुनाव के बाद प्रसिद्ध भारतीय लेखक नीदर सी.चौधरी ने एक मशहूर पत्रिका में जवाहर लाल नेहरू पर लेख लिखा । अपने लेख में चौधरी लिखते है कि “नेहरू का नेतृत्व भारत की एकता के पीछे की सबसे बड़ी नैतिक शक्ति है । वह सिर्फ कांग्रेस पार्टी के ही नेता नहीं है, बल्कि हिंदुस्तान की जनता के नेता हैं और महात्मा गांधी के सही उत्तराधिकारी हैं”।3
चौधरी के लेख में कही गई बात कई मायनों में महत्वपूर्ण है । भारत का पहला आम चुनाव नेहरू के नेतृत्व में हुआ और वो भी तब जब संसाधनों का पर्याप्त अभाव था और सुदूर क्षेत्रों में पंहुचने के साधन भी नहीं थे । भारतीय आवाम मतदान की प्रकिया से भी अनभिज्ञ थी । आवाम की भारी संख्या को मतदान की प्रक्रिया में प्रशिक्षित करना और चुनाव के महत्व तथा चुनाव की प्रक्रिया लोकतंत्र व लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने में क्यों आवश्यक हैं इस समझ को विकसित करना भी जटिल कार्य था ।
इस कार्य के लिए तीस हजार सिनेमाघरों में मतदान की प्रक्रिया और मतदाताओं के कर्तव्य पर एक डॉक्युमेंट्री दिखाई गई।ऑल इंडिया रेडियो के माध्यम से लाखों करोड़ों लोगों तक सूचनाएं प्रेषित की गयीं । भारत का पहला आम चुनाव लोकतंत्र को विकसित करने की एक मुहिम के तौर पर देखा जा सकता है जो एक लोकतांत्रिक उत्सव भी था ।
इन चुनावों के समय विभाजन के जख्म भी ताजा थे जिससे सांप्रदायिक संगठनों का प्रभाव आवाम पर आसानी से पड़ सकता था लेकिन नेहरू ने अपने चुनाव प्रचार के भाषणों में “सांप्रदायिकता के खिलाफ एक आर-पार की लड़ाई छेड़ने का आह्वान किया”4
उन्होंने सांप्रदायिक संगठनों की आलोचना की,जो हिंदू और मुस्लिम संस्कृति के नाम पर मुल्क में फिरकापरस्ती फैला रही थी । नेहरू ने कहा कि ये “शैतानी सांप्रदायिक तत्व अगर सत्ता में आ गए तो मुल्क में बर्बादी और मौत का तांडव लाएंगे । लाखों लोगों की जनसभा में नेहरू ने लोगों से आह्वान किया कि “वे अपने दिमाग की खिड़की खुली रखें और पूरी दुनिया की हवा उसमें आने दें”।5
नेहरू ने अपनी विभिन्न जनसभाओं में सांप्रदायिकता को सबसे बड़ा दुश्मन करार दिया और कहा इसके लिए मुल्क में कोई भी जगह नहीं रहने दी जाएगी और हम अपनी पूरी ताकत के साथ इस पर प्रहार करेंगे । उन्होंने आगे कहा कि अगर कोई आदमी किसी दूसरे आदमी पर धर्म की वजह से हाथ उठता है तो मैं सरकार का मुखिया होने के नाते और सरकार से बाहर भी, जिंदगी की आखरी सांस तक उससे लड़ता रहूंगा ।
सांप्रदायिक सौहार्द के लिए नेहरू गांधी के मार्ग पर चलते रहे
दिल्ली में 2 अक्टूबर की दोपहर गांधी जी के जन्मदिन के अवसर पर जनसभा की गई जिसमें नेहरू ने कहा कि “ सरकार छुआछूत और जमींदारी को मिटाने के प्रति कृतसंकल्प है”।6 नेहरू के करिश्माई व्यक्तित्व ने उनकी तार्किक बातों ने लोगों का यकीन जीता और 1952 के पहले आम चुनाव में कांग्रेस भारी मतों से विजयी हुई ।
ये सिर्फ लोगों का यकीन ही था जो गांधी के बाद नेहरू ने हासिल किया था सांप्रदायिक ताकतों से कांग्रेस भी अछूती नहीं थी इसलिए नेहरू को देश में सांप्रदायिक सौहार्द को कायम रखने के लिए अपनी ही पार्टी के नेताओं और पार्टी की आलोचना करनी पड़ी और वे बेखौफ सत्य और अहिंसा के गांधी के मार्ग पर चलते रहे ।
नेहरू ने कई प्रेस वक्तव्य जारी किए जिसमें उन्होंने कहा कि वे इस बात से दुखी हैं कि “सांप्रदायिक और पुनरुत्थानवादी भावनाओं ने धीरे-धीरे कांग्रेस पर हमला कर दिया है और कभी कभी वे सरकार की नीतियों को प्रभावित करने में सफल भी हो जाते हैं । लेकिन पाकिस्तान के विपरीत भारत एक सेक्यूलर राष्ट्र है”।7
कांग्रेस पार्टी में बढ़ते हिंदूकरण के चलते कई युवा नेताओं ने कांग्रेस पार्टी को छोड़कर सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना कर ली । 1951 में गांधीवादी नेता जे.बी.कृपलानी ने भी कांग्रेस पार्टी को छोड़कर ‘किसान मजदूर प्रजा पार्टी’ की स्थापना कर ली ।
सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं की तरह ही कृपलानी ने आरोप लगाया कि पुरुषोत्तम दास टंडन के नेतृत्व में कांग्रेस एक अति पुरातनपंथी पार्टी बन गई है ।
आजकल नेहरू पर ये आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि वे कांग्रेस के अध्यक्ष फिर से बनना चाहते थे इसलिए वे पुरुषोत्तमदास टंडन की आलोचना कर रहे थे साथ ही ये आरोप भी लगा रहे हैं कि जे.बी.कृपलानी ने नेहरू के कारण पार्टी को छोड़ा जबकि कृपलानी नेहरू की बात की ही पुष्टि कर रहे थे और पुरुषोत्तमदास टंडन को इसका जिम्मेदार ठहरा रहे थे ।
इन सभी घटनाओं के बाद बेंगलोर अधिवेशन में नेहरू पार्टी अध्यक्ष चुने गए और प्रतिक्रियावादी रास्ते पर चल पड़ी पार्टी को एक सर्वसमावेशी और लोकतांत्रिक मार्ग पर चलने वाली पार्टी बनाने के लिए प्रयत्नशील रहे । नेहरू आजीवन सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ लड़ते रहे ।
यह वेबसाईट आपके ही सहयोग से चलती है। इतिहास बदलने के खिलाफ़ संघर्ष में
वेबसाइट को SUBSCRIBE करके
भागीदार बनें।
नेहरू जनता, शासक वर्ग, हिंदुस्तान और पूरे विश्व के बीच पुल के तरह थे
चौधरी अपने आलेख में आगे लिखते हैं कि “नेहरू सरकारी तंत्र और जनता को साथ लेकर चल रहे हैं जिसके बिना इन कठिन क्षणों में हिंदुस्तान शायद स्थायी सरकार से वंचित हो जाता । उन्होंने सिर्फ इन दोनों के बीच में तारतम्य ही स्थापित नहीं किया है, बल्कि वास्तविक सांस्कृतिक,आर्थिक और राजनीतिक संघर्षों को भी टाला है”।8
1951 में जब राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन समारोह में जाने का निर्णय लिया तब भी नेहरू ने उन्हें सलाह दी कि वे सोमनाथ मंदिर के भव्य उद्घाटन समारोह में हिस्सा न लें,जिसके दुर्भाग्यजनक रूप से कई मतलब निकाले जाएंगे ।
व्यक्तिगत रूप से मैं ये सोचता हूं कि सोमनाथ में विशाल मंदिर बनाने पर जोर देने का यह उचित समय नहीं है। मैं सोचता हूं कि बेहतर यही होगा कि आप उस समारोह की अध्यक्षता न करें । राजेन्द्र प्रसाद ने नेहरू की सलाह को नही माना वे समारोह में शामिल हुए । लेकिन उन्होंने अपने भाषण को गांधी जी के अंतर्धार्मिक भाईचारे के सिद्धांत पर ही केंद्रित रखा ।
देश के प्रथम प्रधान सेवक नेहरू का यह विचार था कि “जनसेवक को कभी भी आस्था या पूजास्थलों से अपने आपको नहीं जोड़ना चाहिए”।9 नेहरू की सेकुलर दृष्टि को इस कथन से देखा जा सकता है जिसके विकास के लिए वे आजीवन प्रतिबद्ध रहे । एक तरफ देश के भीतर नेहरू सार्वभौम जनता और मध्यवर्गीय शासक वर्ग के बीच के सेतु हैं, तो दूसरी तरफ वे हिंदुस्तान और पूरे विश्व के बीच भी पुल का काम कर रहे हैं।
पश्चिम और भारतीय लोकतंत्र के बीच के कड़ी रहे है नेहरू
नेहरू की पढ़ाई केंब्रिज से हुई थी । केंब्रिज से 1912 में भारत लौटने पर वे उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन में शामिल हो गए । उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन के शीर्ष नेताओं में से एक तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सबसे अहम शख्सियत के साथ ही वे पश्चिम के महान लोकतंत्रों के बीच भारत के और भारत में पश्चिमी लोकतंत्र के प्रतिनिधि भी थे ।
नेहरू ने प्रधानमंत्री के लंबे कार्यकाल में विदेश मंत्री की भूमिका का बखूबी निर्वहन भी किया । नेहरू के पास वैश्विक और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण था जिसका लाभ भारत को मिला । स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भी नेहरू अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों खासकर दोनों महायुद्धों के समय होने वाली गंभीर बहसों पर नज़र जमाए हुए थे और कभी-कभी उनमें हिस्सा भी ले रहे थे ।
नेहरू के व्यक्तित्व में आम जनता को अपनी ओर आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता थी जो उन्हें शीर्ष के बाकी नेताओं से अधिक लोकप्रिय बनाती थी । नेहरू की लोकप्रियता भारत तक ही सीमित नहीं थी । विदेश में भी नेहरू की लोकप्रियता और प्रसिद्धि अधिक थी । नेहरू की आत्मकथा 1936 में लंदन से प्रकाशित हुई जो व्यवसायिक रूप से काफी सफल भी रही इससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है ।
नेहरू की निगाह में भारत की आज़ादी एक वृहत एशियाई पुनर्जागरण का अभिन्न हिस्सा थी ।पिछली शताब्दियां भले ही यूरोपियनों या श्वेत नस्ल के लोगों की रही हों,लेकिन अब वक्त आ गया है कि गैर-श्वेत और पूर्व में शोषण का शिकार रहा जनसमुदाय दुनिया में अपना उचित हिस्सा प्राप्त करें । आधुनिक भारत के निर्माता जिन्होंने सोलह साल तक भारत के पहले राजनीतिक केंद्र का नेतृत्व किया ।
राष्ट्र निर्माण की जिस परियोजना का सूत्रपात नेहरू ने किया था उसके मुख्य सात आयाम थे । राष्ट्रीय अखंडता, संसदीय लोकतंत्र, समाजवाद,सेकुलरवाद, वैज्ञानिक चेतना,उद्योगीकरण और गुटनिरपेक्षता ।नेहरू ने इन आयामों को भारतीय संस्कृति और इतिहास का अभिन्न अंग बताया जो समस्त भारतवासियों की सहमति और स्वेच्छा पर आधारित है । यह परियोजना एक राष्ट्र के रूप में भारत के बचे रहने के लिए अनिवार्य है ।
भारत के प्रत्येक नागरिग को वैज्ञानिक मानस से परिपूर्ण देखना चाहते थे
इन विभिन्न आयामों पर अलग अलग और विस्तृत रूप से विमर्श की दरकार है लेकिन वर्तमान समय में सेकुलरवाद और वैज्ञानिक चेतना (साइंटिफिक टेंपरामेंट) की अवधारणा को जानना समझना आवश्यक है जो कई और विमर्शों को अपने में समाहित किऐ हुए है ।
नेहरू भारत के प्रत्येक नागरिक को वैज्ञानिक मानस से परिपूर्ण देखना चाहते थे । वैज्ञानिक मानस से उनका आशय अंधविश्वासों से मुक्ति, बुद्धिसंगत व्यवहार,तथ्यों पर यकीन और निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना था ।
वैज्ञानिक चेतना का विकास शिक्षा के माध्यम से ही आमजन में किया जा सकता है । इसलिए नेहरू ने उच्च कोटि के शिक्षण संस्थानों का निर्माण कार्य किया । नेहरू को विज्ञान की सीमाओं का भी एहसास था । वे वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय विकास के नाम पर यांत्रिक मनुष्य और समाज बनाने के पक्षधर कभी नहीं रहे । विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल आवश्यकता आधारित होना चाहिए न कि ऐसी कि मनुष्य और समाज उससे संचालित होने लगे ।
भारतीय संविधान के भाग चार में भारत के प्रत्येक नागरिक के लिए मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान भी रखा गया हैं जिसमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण,मानवतावाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है । नेहरू आधुनिकता से प्रभावित थे और आधुनिक विचारों के चलते ही वे वैज्ञानिक चेतना के समर्थक थे ।
वे आधुनिकता और आधुनिक विचारों से प्रभावित होने के बावजूद भी भारतीय संस्कृति और सभ्यता की एक अलग व्याख्या करते है,जो उन्हें अन्य दार्शनिकों से अलग बनाती है । धर्म एक निजी सरोकार है जिसके ज़रिए व्यक्ति ईश्वर से तादात्म्य स्थापित करने का प्रयास करता है लेकिन धर्म को भी तथ्यपरक और अंधविश्वासों से मुक्त होना चाहिए ।
नेहरू ने वैज्ञानिक चेतना से संपन्न मानव व राष्ट्र को निर्मित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है उनके कई निर्णयों ने उन्हें अन्य कद्दावर नेताओं से अलग थलग भी किया और उन्हें असहमतियों और आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा था ।
असहमतियों का स्वागत करने वाले नेहरू
नेहरू असहमतियों का स्वागत करते थे । उनका स्पष्ट मानना था कि “संसदीय लोकतंत्र विपक्ष की मौजूदगी के बिना विकसित नहीं हो सकता है ” । उनके कार्यकाल में विपक्ष बहुत जीर्ण अवस्था में था फिर भी वे विपक्ष से लगातार सलाह मशवरा किया करते थे साथ ही विपक्ष को सरकारी कार्यों की निगरानी करने में भी शामिल किया करते थे ।
नेहरू ने कई अवसरों पर विपक्ष की भूमिका का निर्वहन स्वयं किया । अपनी तथा अपने साथियों की खुलकर आलोचना की, इसी के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता को बरकरार रखने के लिए अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्रियों को लताड़ा भी । ये नेहरू की वैज्ञानिक और तार्किक सोच का परिणाम था जो असहमतियों को अपनी आलोचना को सुनने का साहस प्रदान करती है ।
इसी वैज्ञानिक चेतना का विकास लोगों में नेहरू करना चाहते थे जिससे अवाम को जोम्बी बनने से बचाया जा सके । लोगों की भीड़ जब नेहरू को देखकर ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाती थी तो नेहरू उस भीड़ से पूछते थे कि यह भारत माता कौन है ? जिसकी जय आप सब बोल रहे हैं दरअसल वे इस सवाल के जरिए लोगों को समझा रहे थे कि भारत माता कौन है ।
नेहरू लोगों को संबोधित कर कहते हैं कि ‘जब हम भारत माता की जय’ बोलते हैं, तो हम भारत के 30 करोड़ लोगों की जय बोलते हैं, उन 30 करोड़ लोगों को आजाद कराने की जय बोलते हैं । इस तरह हम सब भारत माता का एक-एक टुकड़ा हैं और हमसे मिलकर ही भारत माता बनती हैं तो जब भी हम भारत माता की जय बोलते हैं तो हम अपनी ही जय बोल रहे होते हैं और जिस दिन हमारी ग़रीबी दूर हो जाएगी,हमारे तन पर कपड़ा होगा,हमारे बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा मिलेगी,हम खुशहाल होंगे,उस दिन भारतमाता की सच्ची जय होगी ।10
श्याम बेनेगल ने नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ पर एक धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ बनाया जिसकी पहली कड़ी में भारत माता की जय के मायने समझाने की कोशिश भी की गई है । नेहरू अपनी जनसभाओं में सांप्रदायिकता, जातिगत भेदभाव,ऊंच-नीच,पर्दाप्रथा,छुआछूत जैसे और भी कई अन्य विषयों पर अपनी बात रखते थे ।
नेहरू की जनसभा में कारखानों के मजदूर,खेतों में कार्य करने वाले श्रमिक,किसान,चरवाहे और सभी जाति की महिलाएं बहुसंख्या में सम्मिलित होती थीं इनके अतिरिक्त नेहरू के आलोचक भी सभाओं में शामिल होते थे । नेहरू के प्रति लोगों का जो विश्वास था वो लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति और धर्मनिरपेक्षता के प्रति अपनी आस्था को व्यक्त करता है |
वैज्ञानिक चेतना का विकास शिक्षा के माध्यम से ही आमजन में किया जा सकता है । इसलिए नेहरू ने उच्च कोटि के शिक्षण संस्थानों का निर्माण कार्य किया । नेहरू की वैज्ञानिकता परक सोच,तार्किकता,साहस और धर्मनिरपेक्षता के प्रति उनकी निष्ठा के साथ जिम्मेदारी की भावना हमें उनका कायल बनाती है।
अपने सक्रिय राजनीति के सार्वजनिक जीवन के 45 वर्षों में 10 वर्ष नेहरू ने भारत की स्वतंत्रता के लिए जेल में बिताए और बाकी के वर्षों में उन्होंने राष्ट्रीय जीवन को इतनी गहराई से प्रभावित किया,आज भी उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में बहस जारी है । न उनके प्रशंसकों की कमी है और न ही आलोचकों की,आज भी इनके द्वारा कई कुतर्कों का सहारा नेहरू की छवि को धूमिल करने के प्रयास जारी है ।
नेहरू के सेक्यूलर राष्ट्र के विजन ने उन्हें हमेशा सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध खड़ा किया । आवाम में सांप्रदायिक ताकतों से लड़ने के लिए नेहरू साइंटिफिक टेंपरामेंट विकसित करने की कोशिश करते हैं । नेहरू के सेक्यूलर राष्ट्र के विजन और आवाम में वैज्ञानिक चेतना से परिपूर्ण मानस को विकसित करने का प्रयास आज भी सांप्रदायिक ताकतों की चिढ़ का कारण बना हुआ है इसीलिए वे ताकतें लगातार नेहरू के व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों और कृतित्व की आलोचना करती रहतीं हैं ।
आलोचनाओं से नेहरू और निखरते है और साथ ही नेहरू का व्यक्तित्व या कृतित्व इतना बौना भी नहीं है कि वह आलोचनाओं से प्रभावित हो । गांधी की सेकुलर राष्ट्र की संकल्पना के स्वप्न को फलीभूत नेहरू के द्वारा ही किया गया है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता है । आज के समय में गांधी नेहरू के विचारों को जानना समझना आवश्यक हो गया है ताकि हम भी अपने दिमाग की खिड़कियों को खोल धर्म,जाति, रंग, नस्ल,लिंग से परे मनुष्य को सिर्फ मनुष्य समझकर व्यवहार करें जो प्रकृति का नियम है प्रेम का नियम है।
वर्तमान समय में नेहरू के राष्ट्र विजन की प्रासंगिकता को शिद्दत से महसूस किया जा रहा है । इसलिए नेहरू की लिखी किताबों और नेहरू पर लिखी किताबों की ओर पढ़ने के लिए लोग प्रेरित हो रहे हैं जो आज के समय में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं |
संदर्भ सूची :-
- मॉरिस फ्रेंक (2015 ).जवाहरलाल नेहरु : ऑटोबायोग्राफी. जैको पब्लिशिंग हाउस मुंबई – 400001.भारत. पृष्ठ क्र.152
- दुबे अभय कुमार (संपा.) (2013).समाज विज्ञान विश्व कोष. राजकमल प्रकाशन नयी दिल्ली-110002.भारत. खंड 2 पृष्ठ क्र.535.
- गुहा रामचंद्र (2011).भारत गांधी के बाद.(अनु.)सुशांत झा.पेंगुइन बुक्स इंडिया प्रा.लि.गुडगांव-122002 भारत. पृष्ठ क्र.187
- वही. पृष्ठ क्र.173
- वही. पृष्ठ क्र.173
- वही. पृष्ठ क्र.174
- वही. पृष्ठ क्र.160
- वही. पृष्ठ क्र.187
- वही. पृष्ठ क्र.162
10.अग्रवाल पुरुषोत्तम (संपा.)(2021).कौन हैं भारत माता.(अनु.)पूजा श्रीवास्तव.राजकमल प्रकाशन प्रा.लि. नयी दिल्ली – 110002. भारत.
सहायक प्रोफेसर,
गांधी और शांति अध्ययन विभाग
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय,क्षेत्रीय केंद्र कोलकाता